1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सीख है जर्मनी का फैसला

१२ नवम्बर २०१२

दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में एक परमाणु बिजली संयंत्र बन रहा है. हजारों स्थानीय लोग उसका विरोध कर रहे हैं. कुडनकुलम में माहौल कुछ वैसा ही है जैसा 1975 में जर्मनी के वूल आम काइजरश्टूल में था.

तस्वीर: AP

भारत में जिस ढंग से विरोध हो रहा है कुछ वैसे ही सुर 40 साल पहले जर्मनी में भी उठे. जर्मनी में परमाणु ऊर्जा बाजार और इसके विरोध की भावना साथ साथ खड़ी हुई. जर्मनी में पहला परमाणु बिजलीघर 1969 में ओब्रिग्हाइम में शुरू हुआ. छह साल बाद 30,000 प्रदर्शनकारी यहां से 200 किमी दूर वूलl में जमा हुए, नए परमाणु बिजलीघर का विरोध करने के लिए.

1970 और उसके बाद के दशकों में जर्मनी में परमाणु बिजलीघरों का विरोध देखा. वूल में हुआ विरोध सबसे अहम पड़ाव रहा. विरोध की वजह से प्लांट कभी बना ही नहीं. 1995 में प्लांट की जमीन को प्राकृतिक रूप से संरक्षित घोषित कर दिया गया.

विरोध का इतिहास

विशेषज्ञों के मुताबिक जर्मनी में परमाणु ऊर्जा का विरोध 1950 के दशक से ही शुरू हो चुका था. 1930 की शुरुआत में लोगों को शक हुआ कि यूरेनियम निकाल रहे खनिकों को लंग कैंसर हो रहा है. गहराते शक के चलते असंतोष उपजने लगा. छुट पुट विरोधों के बीच 1969 में परमाणु ऊर्जा के खिलाफ एक असफल विरोध फ्रांस में हुआ. जर्मन-फ्रेंच सीमा के करीब फेसेनहाइम के पास यह बिजलीघर बनाया जा रहा था. इसके छह साल बाद वूल और जर्मनी में अन्य तीन जगहों पर प्रस्तावित प्लांटों का विरोध शुरू हुआ.

निर्णायक बिंदु

तस्वीर: Reuters

कई परमाणु बिजलीघरों का विरोध वक्त के साथ धीरे धीरे शांत होता चला गया. 1981 तक जर्मनी में 17 संयंत्र बन चुके थे. 2010 तक जर्मनी दुनिया में परमाणु बिजली बनाने वाले छठा बड़ा देश बन गया. देश में 20 फीसदी से ज्यादा बिजली परमाणु बिजलीघरों से आने लगी. ऊर्जा का संकट पूरी तरह दूर हो गया. दो साल पहले ही सरकार ने परमाणु बिजलीघर चला रही कंपनियों का पट्टा आगे बढ़ा दिया.

लेकिन मार्च 2011 ने पूरी तस्वीर बदल दी. जापान में भूंकप और सूनामी के बाद परमाणु बिजलीघरों की जो हालत हुई, उससे जर्मनी भी चिंतित हो गया. फुकुशिमा के हादसे के बाद जर्मनी के चार बड़े शहरों में परमाणु बिजली के खिलाफ बड़े प्रदर्शन हुए. बर्लिन, हैम्बर्ग, म्यूनिख और कोलोन जैसे शहरों में हुए इन प्रदर्शनों में दो लाख से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया.

प्रदर्शन प्रांतीय चुनावों की पूर्व संध्या पर हुए लेकिन इनका असर चुनावी नतीजों पर भी दिखा. पर्यावरण की बात करने वाली ग्रीन पार्टी को भारी फायदा हुआ. बढ़ते दबाव के बीच में जर्मन सरकार ने एलान किया कि वह देश के सभी परमाणु बिजली संयंत्रों को 2022 तक बंद कर देगी. महीने भर बाद इस संबंध में कानून भी पास कर दिया गया.

भारत की दुविधा

परमाणु बिजली के रास्ते पर आगे बढ़ रहे भारत में हालात काफी अलग है. 1.2 अरब आबादी वाले भारत को हर हाल में बिजली चाहिए. जर्मनी से 14 गुना बड़े भारत के कई राज्यों में आए दिन घंटों बिजली गुल रहती है. 30 करोड़ लोगों तक अब भी बिजली नहीं पहुंची है. भारत के सामने चुनौती यह भी है कि वह पर्यावरण का ध्यान रखते हुए ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाए. फिलहाल देश की 65 फीसदी बिजली कोयला बिजलीघरों से आती है. दूसरे नंबर पर पनबिजली परियोजनाएं हैं, लेकिन ये दोनों भी मांग को पूरा करने में असमर्थ हैं. भारत चाहता है कि परमाणु संयंत्रों की मदद से बिजली की कमी दूर की जाए. भारत के छह परमाणु बिजलीघरों में फिलहाल 20 रिएक्टर लगे हैं. इनसे 2.5 फीसदी बिजली बनाई जा रही है. भारत चाहता है कि 25 साल के भीतर परमाणु बिजली 9 फीसदी मांग भरे. सात रिएक्टर फिलहाल बनाए जा रहे हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

इन्हीं में से एक संयंत्र कुडनकुलम में बन रहा है. रूस की मदद से यहां एक-एक गिगावाट के दो रिएक्टर लगाए जा रहे हैं. लेकिन इनके विरोध में पिछले साल से प्रदर्शन भी हो रहे हैं. लोगों का आरोप है कि सुरक्षा मानकों से समझौता किया जा रहा है. देश में परमाणु ऊर्जा के पक्ष और विपक्ष में बहस चल रही है. जर्मनी की ग्रीन पार्टी की सांसद और परमाणु नीति पर पार्टी की प्रवक्ता सिल्विया कोटिंश ऊल कहती हैं, "ऐसे देश जिन्होंने अब तक ऊर्जा सप्लाई का ठोस ढांचा नहीं बनाया है, उनके पास मौका है कि वे कोयला या परमाणु ऊर्जा के खतरनाक और खत्म होने वाले रास्ते से हट जाएं. वे शुरुआत से अक्षत ऊर्जा में निवेश कर सकते हैं."

भारत में सौर ऊर्जा, पवनऊर्जा और पनबिजली पैदा करने की अथाह संभावनाएं हैं. तमिलनाडु में पवनचक्कियों की बिजली को स्टोर करने के लिए पर्याप्त ग्रिड ही नहीं हैं. अनुमान लगाया जाता है कि तमिलनाडु में इतनी पवनबिजली बन सकती है कि पूरे राज्य की रिहायशी आबादी की मांग पूरी हो जाए. उत्तर भारत के कई राज्यों में तो अभी तक पवनबिजली की अता पता भी नहीं है. बीते कुछ सालों में गुजरात ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में ऊंची छलांग लगाई है.

रिपोर्ट: चारु कार्तिकेय/ओएसजे

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें