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सीबीआई करेगी कालबुर्गी की हत्या की जांच

१ सितम्बर २०१५

कर्नाटक सरकार ने प्रसिद्ध कन्नड लेखक एमएम कालबुर्गी की हत्या की जांच सीआईडी को सौंप दी है. सरकार ने हत्या की जांच के लिए केंद्रीय सीबीआई को भी लिखा है. कालबुर्गी की रविवार को अज्ञात लोगों ने उनके घर में हत्या कर दी थी.

तस्वीर: Getty Images/AFP/Strdel

हालांकि संपत्ति के विवाद की अटकलें हैं लेकिन कालबुर्गी के परिवार वालों की शिकायत है कि उन्हें सच कहने के लिए मारा गया है. कालबुर्गी के विचारों के कारण कट्टर दक्षिणपंथी उनसे नाराज थे और उन्हें एक महीने पहले तक पुलिस सुरक्षा भी दी जा रही थी. अब सरकार ने कहा है कि हत्या की जांच सीआईडी शुरू कर रही है और बाद में उसे सीबीआई को सौंप दिया जाएगा.

धार्मिक अंधविश्वास के खिलाफ बोलने वाले वे तीसरे भारतीय विद्वान हैं जिनकी पिछले तीन सालों में हत्या हुई है. दो लोग उनके घर आए, दरवाजे पर दस्तक दी और कालबुर्गी ने जैसे ही दरवाजा खोला, उन्होंने उनके सिर और छाती में गोली मार दी. उनकी हत्या से नागरिक समाज में धार्मिक चरमपंथ और असहिष्णुता को लेकर दहशत का माहौल है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने कहा है कि यह घटना निंदनीय है.

दवोलकर को अंतिम विदाईतस्वीर: Getty Images/AFP/Strdel

एमएम कालबुर्गी को पिछले साल मूर्ति पूजा और अंधविश्वास के खिलाफ बोलने के बाद उग्र दक्षिणपंथी गुटों की ओर से हत्या की धमकी मिली थी. उसके बाद मिली पुलिस सुरक्षा को 77 वर्षीय साहित्यकार के कहने पर हटा लिया गया था. कालबुर्गी की हत्या की व्यापक आलोचना हुई है. मशहूर अभिनेता गिरीश कर्नाड ने कहा है, "हर किसी को अपने विचार अभिव्यक्त करने का हक है. अगर ऐसा कर्नाटक में होता है तो हम मुश्किल में हैं." बंगलोर में एक थिंक टैंक चलाने वाले नीतिन पाई ने ट्वीट किया है कि उन्हें कालबुर्गी की हत्या पर सदमा पहुंचा है.

इस साल के शुरू में हमलावरों ने महाराष्ट्र के पुणे में अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने वाले वयोवृद्ध साम्यवादी नेता गोविंद पंसारे की हत्या कर दी थी. पुलिस अब तक हमलावरों का पता नहीं लगा पाई है. दो साल पहले 2013 में पुणे में ही डॉक्टर से एक्टिविस्ट बने 68 वर्षीय नरेंद्र दवोलकर को भी दो हमलावरों ने गोली मार दी थी जब वे टहल रहे थे. महाराष्ट्र सरकार ने उनकी हत्या के बाद धार्मिक शोषण और धोखाधरी करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कानून पास कर दिया था. कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह कानून सिर्फ पीड़ितों को शिकायत की अनुमति देता है, जिसकी वजह से कानून प्रभावी नहीं रह गया है.

एमजे/आईबी (एपी, डीपीए)

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