रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा है कि भारत और चीन के बीच सीमा पर मौजूदा स्थिति के लिए पूरी तरह से चीन जिम्मेदार है. उन्होंने यह माना कि लद्दाख में जो स्थिति है वो देश के लिए एक चुनौती है.
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भारत और चीन के बीच महीनों से चल रहे सैन्य गतिरोध के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सीमा पर मौजूदा स्थिति के लिए पूरी तरह से चीन को जिम्मेदार ठहराया है. संसद के मानसून सत्र के दौरान "लद्दाख की पूर्वी सीमा पर हाल ही में हुई गतिविधियों पर" लोक सभा में बोलते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि चीन दोनों देशों के बीच की पारंपरिक और व्यावहारिक सीमा को नहीं मानता और कहता है कि दोनों पक्षों में सीमा को लेकर अलग अलग समझ है.
उन्होंने कहा कि अप्रैल 2020 में चीन ने 1993 और 1996 में दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षर किए गए समझौतों का उल्लंघन किया, सीमा पर अपनी फौज की तैनाती बढ़ा दी और "भारतीय सिपाहियों की सामान्य पैट्रोलिंग में बाधा उत्पन्न की...मई में चीनी सेना ने पश्चिमी सेक्टर के कई इलाकों में वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार करने की कोशिश की...इन कोशिशों को भारतीय सेना ने पकड़ लिया और इसके खिलाफ पर्याप्त जवाबी कार्रवाई की."
सिंह ने 15 जून को गलवान घाटी में हुई "हिंसक झड़प" के लिए भी चीन को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि इसके बाद 29 और 30 अगस्त को भी चीनी सेना ने पैंगोंग झील के दक्षिण की तरफ यथास्थिति बदलने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि इस समय चीनी सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अंदरूनी इलाकों में भी बड़ी संख्या में सिपाही और हथियार तैनात किए हुए हैं और पूर्वी लद्दाख में इस समय कई स्थानों पर टकराव की स्थिति बनी हुई है.
उन्होंने यह कहा कि इसके बाद भी भारत शांतिपूर्ण समाधान चाहता है, लेकिन सरकार और सेना हर परिस्थिति के लिए तैयार है. उन्होंने यह माना कि लद्दाख में जो स्थिति है वो देश के लिए एक चुनौती है. उन्होंने सभी सांसदों से एक साथ आकर सेना का मनोबल बढ़ाने की अपील भी की. इसके बाद कांग्रेस के सांसदों ने इस मुद्दे पर चर्चा की मांग की लेकिन मांग के ठुकरा दिए जाने पर कांग्रेस के सांसदों ने सदन का बहिष्कार कर दिया और सदन से बाहर चले गए.
जानकारों ने रक्षा मंत्री के बयान को लेकर अलग अलग राय है. वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने ट्विट्टर पर लिखा कि राजनाथ सिंह ने अपने बयान में जानबूझकर जमीन पर वास्तविक स्थिति के बारे में स्पष्ट तरीके से नहीं बताया लेकिन ऐसा उन्होंने क्यों किया यह समझा जा सकता है.
भारत कोरोना महामारी के बीच शनिवार को आजादी की 73वीं वर्षगांठ मना रहा है. इस मौके पर लाल किले की ऐतिहासिक प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन को चुनौती दी, तो महामारी से निपटने और डिजिटलाइजेश पर भी उनका जोर था.
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अहम भाषण
हर साल 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री का भाषण साल का सबसे अहम भाषण माना जाता है. इस बार आजादी की वर्षगांठ ऐसे समय में आई है जब देश एक तरफ कोरोना महामारी से जूझ रहा है तो दूसरी तरफ चीन से लगने वाली सीमा पर तनाव है.
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प्राथमिकता
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश को कोरोना के शिकंजे से निकालना उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है. भारत में कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों का आंकड़ा 25 लाख के पास जा पहुंचा है जबकि मरने वालों की संख्या 49 हजार से ज्यादा हो गई है. आम जनजीवन ही नहीं, बल्कि इस महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर डाला है.
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संप्रुभता सर्वोच्च है
मोदी ने इस मौके का इस्तेमाल पड़ोसी चीन और पाकिस्तान को चुनौती देने के लिए भी किया. जून के महीने में सीमा झड़प में बीस भारतीयों सैनिकों के मारे जाने के बाद से भारत और चीन के बीच तनाव है. पीएम मोदी ने कहा, "जो भी देश की संप्रभुता की तरफ आंख उठाया है, देश की सेना उसे उसकी भाषा में जवाब देगी." हालांकि उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया.
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निवेश पर जोर
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन प्रोजेक्ट में 100 ट्रिलियन रुपयों का निवेश किया जाएगा, जिसकी घोषणा पहले ही हो चुकी है. इसके तहत सात हजार परियोजनाओं की पहचान की गई है. इनके जरिए रोजगार के अवसरों और उद्योगों को बढ़ावा दिया जाएगा, ताकि देश में बुनियादी ढांचे का व्यापक विस्तार किया जा सके.
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डिजिटल हेल्थ मिशन
अपने भाषण में मोदी ने राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ मिशन की भी घोषणा की, जिसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाएगा और हर नागरिक को "हेल्थ आई़डी" दी जाएगी. इसमें व्यक्ति को अब तक हुई सभी बीमारियों, उनकी रोकथाम के लिए ली गई दवाओं और उसकी सेहत से जुड़ी सारी जानकारी होगी.
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महामारी के बीच जश्न
कोराना महामारी को देखते हुए कई जगहों पर अब भी लॉकडाउन है और संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इसलिए इस बार स्वतंत्रता दिवस के समारोह सीमति ही रहे. सोशल डिंस्टेंसिंग के तहत लाल किले पर भी उतने लोग नहीं थे जितने आम तौर पर होते हैं.