पूर्वी लद्दाख में विवादित सीमावर्ती इलाकों में दोनों देशों की सेनाएं वहां भारी सैन्य मशीनरी और शस्त्र भी ले जा रही हैं. सीमा पर इस तरह की स्थिति को बने अब 25 दिनों से ज्यादा हो गए हैं.
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भारत-चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर छिड़ा हुआ विवाद शांत होता नजर नहीं आ रहा है. ताजा रिपोर्ट्स के अनुसार, पूर्वी लद्दाख में विवादित सीमावर्ती इलाकों में दोनों देशों की सेनाएं ना सिर्फ एक दूसरे के सामने जमी हुई हैं, बल्कि दोनों सेनाएं वहां भारी सैन्य मशीनरी और शस्त्र भी ले जा रही हैं. हालांकि भारतीय सेना ने कहा है कि मतभेदों को शांत करने के लिए वहां दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच बातचीत चल रही है.
दो दिन पहले एक वीडियो सोशल मीडिया पर देखा गया था जिसमें दोनों देशों के सैनिकों के बीच में हाथापाई और पत्थरबाजी के दृश्य नजर आ रहे थे. एक तस्वीर भी सोशल मीडिया पर चल रही थी जिसमें कुछ भारतीय सैनिक घायल नजर आ रहे थे. लेकिन भारतीय सेना ने कहा है कि ये वास्तविक नहीं हैं और इस समय देश की उत्तरी सीमा पर जरा भी हिंसा नहीं हो रही है.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा है कि "चीन के साथ जो परिस्थितियां पैदा हुई हैं उन्हें सुलझाने की कोशिश जारी है" और "भारत की भी कोशिश है कि तनाव किसी भी सूरत में न बढ़े". हालांकि बताया जा रहा है कि जैसे चीन ने पहले वहां और सैनिक और भारी सैन्य मशीनरी तैनात कर दी थी, ठीक उसी तर्ज पर भारत ने भी अब वहां अतिरिक्त सैनिक और आर्टिलरी जैसे शस्त्र भी तैनात कर दिए हैं.
सीमा पर इस तरह की स्थिति को बने अब 25 दिनों से ज्यादा हो गए हैं. पांच मई को लद्दाख के पैंगोंग सो झील के पास दोनों देशों के सैनिकों के बीच में झड़प हुई थी, जिसकी भारतीय सेना ने पुष्टि की थी. तब से वहां दोनों सेनाओं के बीच तनातनी बनी हुई है. नौ मई को सिक्किम में भी दोनों तरफ के सिपाहियों के बीच हाथापाई होने की खबर आई थी. यूं तो गर्मी के मौसम में दोनों तरफ गश्त बढ़ जाने के कारण हर साल दोनों सेनाएं आमने सामने आ ही जाती हैं, लेकिन कई विशेषज्ञ इस बार के गतिरोध को असामान्य मान रहे हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि इन प्रकरणों के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के एसेंबली में ताइवान की भागीदारी को लेकर चीन की नाराजगी, कोरोना संक्रमण के शुरू होने में चीन की भूमिका पर अंतरराष्ट्रीय जांच का प्रस्ताव या सीमावर्ती इलाकों में भारत द्वारा सड़क आदि बनाने की गतिविधियों को लेकर चीन की नाराजगी. कुछ जानकार यह भी मानते हैं कि कोरोना वायरस से चीन के अंदर हुई हुई तबाही और कुछ अन्य राजनीतिक कारणों की वजह से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपनी ही पार्टी के अंदर आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ रहा है और इस वजह से वो अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए ये सब करवा रहे हैं.
भारत और चीन का सीमा विवाद दशकों पुराना है. तिब्बत को चीन में मिलाये जाने के बाद यह विवाद भारत और चीन का विवाद बन गया. एक नजर विवाद के अहम बिंदुओं पर.
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लंबा विवाद
तकरीबन 3500 किलोमीटर की साझी सीमा को लेकर दोनों देशों ने 1962 में जंग भी लड़ी लेकिन विवादों का निपटारा ना हो सका. दुर्गम इलाका, कच्चा पक्का सर्वेक्षण और ब्रिटिश साम्राज्यवादी नक्शे ने इस विवाद को और बढ़ा दिया. दुनिया की दो आर्थिक महाशक्तियों के बीच सीमा पर तनाव उनके पड़ोसियों और दुनिया के लिए भी चिंता का कारण है.
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अक्साई चीन
काराकाश नदी पर समुद्र तल से 14000-22000 फीट ऊंचाई पर मौजूद अक्साई चीन का ज्यादातर हिस्सा वीरान है. 32000 वर्ग मीटर में फैला ये इलाका पहले कारोबार का रास्ता था और इस वजह से इसकी काफी अहमियत है. भारत का कहना है कि चीन ने जम्मू कश्मीर के अक्साई चीन में उसकी 38000 किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर रखा है.
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अरुणाचल प्रदेश
चीन दावा करता है कि मैकमोहन रेखा के जरिए भारत ने अरुणाचल प्रदेश में उसकी 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन दबा ली है. भारत इसे अपना हिस्सा बताता है. हिमालयी क्षेत्र में सीमा विवाद को निपटाने के लिए 1914 में भारत तिब्बत शिमला सम्मेलन बुलाया गया.
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किसने खींची लाइन
ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने मैकमोहन रेखा खींची जिसने ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच सीमा का बंटवारा कर दिया. चीन के प्रतिनिधि शिमला सम्मेलन में मौजूद थे लेकिन उन्होंने इस समझौते पर दस्तखत करने या उसे मान्यता देने से मना कर दिया. उनका कहना था कि तिब्बत चीनी प्रशासन के अंतर्गत है इसलिए उसे दूसरे देश के साथ समझौता करने का हक नहीं है.
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अंतरराष्ट्रीय सीमा
1947 में आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन रेखा को आधिकारिक सीमा रेखा का दर्जा दे दिया. हालांकि 1950 में तिब्बत पर चीनी नियंत्रण के बाद भारत और चीन के बीच ऐसी साझी सीमा बन गयी जिस पर कोई समझौता नहीं हुआ था. चीन मैकमोहन रेखा को गैरकानूनी, औपनिवेशिक और पारंपरिक मानता है जबकि भारत इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा का दर्जा देता है.
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समझौता
भारत की आजादी के बाद 1954 में भारत और चीन के बीच तिब्बत के इलाके में व्यापार और आवाजाही के लिए समझौता हुआ. इस समझौते के बाद भारत ने समझा कि अब सीमा विवाद की कोई अहमियत नहीं है और चीन ने ऐतिहासिक स्थिति को स्वीकार कर लिया है.
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चीन का रुख
उधर चीन का कहना है कि सीमा को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ और भारत तिब्बत में चीन की सत्ता को मान्यता दे. इसके अलावा चीन का ये भी कहना था कि मैकमोहन रेखा को लेकर चीन की असहमति अब भी कायम है.
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सिक्किम
1962 में दोनों देशों के बीच लड़ाई हुई. महीने भर चली जंग में चीन की सेना भारत के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में घुस आयी. बाद में चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वापस लौटी. यहां भूटान की भी सीमा लगती है. सिक्किम वो आखिरी इलाका है जहां तक भारत की पहुंच है. इसके अलावा यहां के कुछ इलाकों पर भूटान का भी दावा है और भारत इस दावे का समर्थन करता है.
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मानसरोवर
मानसरोवर हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ है जिसकी यात्रा पर हर साल कुछ लोग जाते हैं. भारत चीन के रिश्तों का असर इस तीर्थयात्रा पर भी है. मौजूदा विवाद उठने के बाद चीन ने श्रद्धालुओं को वहां पूर्वी रास्ते से होकर जाने से रोक दिया था.
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बातचीत से हल की कोशिश
भारत और चीन की ओर से बीते 40 सालों में इस विवाद को बातचीत के जरिए हल करने की कई कोशिशें हुईं. हालांकि इन कोशिशों से अब तक कुछ ख़ास हासिल नहीं हुआ. चीन कई बार ये कह चुका है कि उसने अपने 12-14 पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद बातचीत से हल कर लिए हैं और भारत के साथ भी ये मामला निबट जाएगा लेकिन 19 दौर की बातचीत के बाद भी सिर्फ उम्मीदें ही जताई जा रही हैं.