भारत और चीन के बीच सीमा पर गतिरोध को सुलझाने के लिए दोनों तरफ के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के बीच वार्ता होगी. इसी बीच सीमा विवाद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से बातचीत की है.
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भारत और चीन के बीच सीमा पर सैन्य गतिविधियों को लेकर गतिरोध अभी भी बना हुआ है. गतिरोध को सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच कूटनीतिक स्तर पर बातचीत पहले से चल रही थी, लेकिन अब तय हुआ है कि वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के बीच में भी वार्ता होगी. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक छह जून से दोनों देशों के बीच लेफ्टिनेंट जनरल स्तर पर बातचीत शुरू होगी, जिसमें भारत का प्रतिनिधित्व सेना की फोर्टीन्थ कोर इकाई के कोर कमांडर करेंगे.
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में इस योजना की पुष्टि की. साथ ही उन्होंने पहली बार भारत सरकार की तरफ से स्थिति के गंभीर होने की बात मानी. उन्होंने कहा कि चीनी सैनिक सीमा पर "अच्छी खासी संख्या" में आए हैं, लेकिन उन्होंने ये आश्वासन भी दिलाया कि इस तरह के गतिरोधों को सुलझाने की एक प्रक्रिया है और हम उस प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं. उनका कहना था कि बातचीत के जरिए यदि मुद्दा सुलझ जाता है तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है.
लदाख में दोनों देशों की सेनाओं के बीच सीमा पर पांच मई से तनातनी चल रही है. शुरू में दोनों तरफ के सिपाहियों के बीच हाथापाई भी हुई थी. दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच लगातार बातचीत भी चल रही है, लेकिन मीडिया में आई कुछ खबरों के मुताबिक इन से कुछ हासिल नहीं हो पाया है और अब गतिरोध को मिटाने के नए रास्ते तलाशे जा रहे हैं. इसी क्रम में मंगलवार दो जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से बातचीत की.
प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक वकतव्य में कहा की दोनों नेताओं के बीच कई विषयों पर चर्चा हुई, जिनमें भारत-चीन सीमा पर स्थिति भी शामिल थी. इस वक्तव्य को महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि क्योंकि ये दर्शाता है कि भारत ने चीन के साथ सीमा पर गतिरोध के समाधान के लिए दूसरे देशों से बातचीत शुरू कर दी है. राष्ट्रपति ट्रंप ने कुछ दिनों पहले खुद ही प्रस्ताव दिया था कि वो भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को "सुलझाने और उसमें मध्यस्थता करने के लिए तैयार और सक्षम हैं."
दो दिन पहले अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो ने कहा कि चीन ने अपने सैनिकों के वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास उत्तरी भारत के अंदर भेज दिया है और ये इस तरह का कदम है जिसे कोई तानाशाही उठाएगा. उसके बाद अमेरिकी संसद के हाउस ऑफ रेप्रेजेन्टटिव्स की विदेशी मामलों की समीति ने कहा कि वो भारत के खिलाफ चीन के आक्रामक रवैये को लेकर बहुत चिंतित है और वो चीन से बातचीत के जरिए इस गतिरोध का समाधान खोजने की अपील करती है.
समिति के अध्यक्ष एलियट एंगेल ने कहा, "मैं बहुत चिंतित हूं...चीन एक बार फिर दिखा रहा है कि वो मतभेदों को अंतर्राष्ट्रीय कानून से सुलझाने की जगह अपने पड़ोसी देशों को धौंस दिखाने में विश्वास रखता है."
साल 2019 में दुनिया भर का सैन्य खर्च 1,900 अरब डॉलर रहा. कुल मिला कर पूरी दुनिया के देशों ने अपनी अपनी सैन्य जरूरतों पर खर्च करने में 2019 में जितनी वृद्धि की, वो पिछले एक दशक में सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी.
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सालाना खर्च
स्वीडन की संस्था सिपरी की सालाना रिपोर्ट बताती है कि साल 2019 में दुनिया भर का सैन्य खर्च 1,900 अरब डॉलर रहा. पिछले साल के मुकाबले यह खर्च 3.6 प्रतिशत तक बढ़ा है. कुल मिला कर पूरी दुनिया के देशों ने अपनी अपनी सैन्य जरूरतों पर खर्च करने में 2019 में जितनी वृद्धि की, वो पिछले एक दशक में सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी. सीपरी के रिसर्चर नान तिआन ने बताया, "शीत युद्ध के खत्म होने के बाद सैन्य खर्च का यह चरम है."
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अमेरिका
सभी देशों में पहला स्थान अमेरिका का है, जिसने अनुमानित 732 अरब डॉलर खर्च किए. यह 2018 में किए गए खर्च से 5.3 प्रतिशत ज्यादा है और पूरी दुनिया में हुए खर्च के 38 प्रतिशत के बराबर है. 2019 अमेरिका के सैन्य खर्च में वृद्धि का लगातार दूसरा साल रहा. इसके पहले, सात साल तक अमेरिका के सैन्य खर्च में गिरावट देखी गई थी.
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चीन
दूसरे स्थान पर है चीन जिसने अनुमानित 261 अरब डॉलर खर्च किए. यह 2018 में किए गए खर्च से 5.1 प्रतिशत ज्यादा था. पिछले 25 सालों में चीन का खर्च उसकी अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ ही बढ़ा है. उसका निवेश उसकी एक "विश्व स्तर की सेना" की महत्वाकांक्षा दर्शाता है. तिआन का कहना है, "चीन ने खुल कर कहा है कि वो दरअसल एक सैन्य महाशक्ति के रूप में अमेरिका के साथ प्रतियोगिता करना चाहता है."
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भारत
तीसरे स्थान पर भारत है. अनुमान है कि 2019 में भारत का सैन्य खर्च लगभग 71 अरब डॉलर रहा, जो 2018 में किए गए खर्च से 6.8 प्रतिशत ज्यादा था. विश्व के इतिहास में पहली बार भारत और चीन दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले चोटी के तीन देशों की सूची में शामिल हो गए हैं. ऐसा पहली बार हुआ है जब रिपोर्ट में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले तीन देशों में दो देश एशिया के ही हैं.
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रूस
2019 में रूस ने अपना सैन्य खर्च 4.5 प्रतिशत बढ़ा कर 65 अरब डॉलर तक पहुंचा दिया. ये रूस की जीडीपी का 3.9 प्रतिशत है और सिपरी के रिसर्चर अलेक्सांद्रा कुईमोवा के अनुसार ये यूरोप के सबसे ऊंचे स्तरों में से है.
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सऊदी अरब
सऊदी अरब ने 61.9 अरब डॉलर खर्च किया. इन पांचों देशों का सैन्य खर्च पूरे विश्व में होने वाले खर्च के 60 प्रतिशत के बराबर है.
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जर्मनी
सिपरी के अनुसार, ध्यान देने लायक अन्य देशों में जर्मनी भी शामिल है, जिसने 2019 में अपना सैन्य खर्च 10 प्रतिशत बढ़ा कर 49.3 अरब डॉलर कर लिया. सबसे ज्यादा खर्च करने वाले 15 देशों में प्रतिशत के हिसाब से यह सबसे बड़ी वृद्धि है. रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, जर्मनी के सैन्य खर्च में वृद्धि की आंशिक वजह रूस से खतरे की अनुभूति हो सकती है.
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अब हो सकती है कटौती
सिपरी के रिसर्चर नान तिआन के अनुसार, "कोरोना वायरस महामारी और उसके आर्थिक असर की वजह से यह तस्वीर पलट भी सकती है. दुनिया एक वैश्विक मंदी की तरफ बढ़ रही है और तिआन का कहना है कि सरकारों को सैन्य खर्च को स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च की जरूरतों के सामने रख कर देखना होगा. तिआन कहते हैं, "हो सकता है एक साल से ले कर तीन साल तक खर्चों में कटौती हो, लेकिन उसके बाद के सालों में फिर से वृद्धि होगी."