सीरम इंस्टीट्यूट के कोवीशील्ड वैक्सीन ट्रायल में शामिल हुए एक व्यक्ति ने गंभीर दुष्प्रभावों का दावा किया है. उसने पांच करोड़ रुपए हर्जाना मांगा है, तो इंस्टीट्यूट ने भी उसे 100 करोड़ रुपयों का मानहानि का नोटिस भेजा है.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सीरम इंस्टीट्यूट जाने के दो ही दिन बाद आई यह खबर वैक्सीन के लिए अच्छी नहीं है. शायद इसीलिए इंस्टीट्यूट ने भी तुरंत इसका विरोध किया और दावा करने वाले व्यक्ति के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया. मीडिया में आई खबरों के अनुसार दुष्प्रभाव का दावा करने वाला व्यक्ति चेनाई में रहने वाला एक बिजनेस कंसल्टेंट है.
वो वैक्सीन के ट्रायल के तीसरे चरण में शामिल हुआ था और उसे एक अक्टूबर को चेन्नई के श्री रामचंद्रा इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च में वैक्सीन की एक खुराक दी गई थी. उसकी तरफ से उसके परिवार ने दावा किया है कि खुराक दिए जाने के 10 दिनों के बाद उसकी तबीयत काफी खराब हो गई और उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा.
वो लगभग 20 दिन अस्पताल में रहा जिस दौरान उसे भारी सिर दर्द, उल्टियां आना, लोगों को ना पहचान पाना और परिवर्तित मानसिक अवस्था में रहने जैसी शिकायतें रहीं. उसके परिवार का दावा है कि उसकी हालत अभी भी स्थिर नहीं है, उसे भारी मूड स्विंग होते हैं, चीजों को समझने और ध्यान लगाने में दिक्कत होती है और वो रोज के सरल से सरल काम भी नहीं कर पाते.
उस व्यक्ति और उसके परिवार ने एक लॉ फर्म के जरिए सीरम इंस्टीट्यूट को कानूनी नोटिस भेजा है और उसकी इस हालात के लिए वैक्सीन के ट्रायल को जिम्मेदार ठहराया है. कोवीशील्ड ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, ब्रिटिश-स्वीडिश कंपनी एस्ट्राजेनेका और सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा साझेदारी में विकसित की जा रही है.
लिहाजा कानूनी नोटिस आईसीएमआर के डायरेक्टर जनरल, ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाईजेशन, एस्ट्राजेनेका कंपनी के सीईओ, ट्रायल के मुख्य इन्वेस्टिगेटर प्रोफेसर एंड्रू पोलार्ड और श्री रामचंद्रा इंस्टीट्यूट के उप-कुलपति को भी भेजा गया है.
नोटिस में हर्जाने के अलावा यह मांग भी की गई है कि वैक्सीन के ट्रायल, उत्पादन और वितरण पर तुरंत रोक लगा दी जाए. पीड़ित व्यक्ति ने यह भी आरोप लगाया है कि सीरम इंस्टिट्यूट, ऑक्सफोर्ड, आईसीएआर और ड्रग्स कंट्रोलर में से किसी ने भी खुराक देने के बाद उनकी हालत जानने की कोशिश नहीं की और उनके द्वारा सबको इन दुष्प्रभावों के बारे में अवगत कराने के बावजूद उन्होंने ना ट्रायल को रोका और ना इस जानकारी को सार्वजनिक किया.
ड्रग्स कंट्रोलर और आईसीएमआर अब इन दावों की जांच कर रहे हैं. कोवीशील्ड को कोरोना वायरस महामारी की वैक्सीन के उम्मीदवारों में से सबसे आशाजनक माना जा रहा है, लेकिन यह वैक्सीन दूसरी बार इस तरह के विवादों में फंसी है. इससे पहले सितंबर में ऐस्ट्राजेनेका ने कई देशों में हो रहे वैक्सीन के ट्रायल को रोक दिया था क्योंकि ट्रायल में शामिल एक व्यक्ति में "रहस्मयी बीमारी" देखी गई थी.
उस समय भारत में भी ड्रग्स कंट्रोलर ने सीरम इंस्ट्यूट को ट्रायल को रोकने का आदेश दे दिया था, लेकिन कुछ ही दिनों में इस आदेश को हटा दिया गया और इंस्टीट्यूट ने ट्रायल फिर शुरू कर दिया.
भारत समेत दुनिया के कई देशों में कोविड-19 की वैक्सीन पर काम चल रहा है. अब तक कुछ सफलता जरूर मिली है लेकिन वैक्सीन के साइड इफेक्ट को ले कर चिंता भी जताई जा रही है.
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साइड इफेक्ट
इस वक्त पूरे दुनिया की उम्मीदें कोविड-19 की वैक्सीन पर टिकी हैं. लेकिन यह टीका कोई जादू का घोल नहीं होगा. हर दवा की तरह इसके भी साइड इफेक्ट हो सकते हैं. जरूरी नहीं कि ये हर व्यक्ति पर बुरा असर करे. लेकिन कुछ खास किस्म की एलर्जी रखने वालों को इससे खतरा हो सकता है.
ब्राजील में चीन की कंपनी सिनोवैक की वैक्सीन पर ट्रायल चल रहे थे जिन्हें 9 नवंबर को रोकना पड़ा. ब्राजील के स्वास्थ्य मंत्रालय ने "एक बेहद गंभीर घटना" को इसके लिए जिम्मेदार बताया है लेकिन इस पर और जानकारी नहीं दी है. इन ट्रायल के दौरान एक व्यक्ति की मौत होने के बाद से इस पर विवाद खड़ा हुआ.
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जॉन्सन एंड जॉन्सन
11 अक्टूबर को जॉन्सन एंड जॉनसन को भी अपने ट्रायल रोकने पड़े. इस वैक्सीन पर चल रहे शोध में हिस्सा लेने वाले 60 हजार वॉलंटियर में से एक की तबियत बिगड़ने के बाद यह फैसला लिया गया. हालांकि जॉन्सन एंड जॉन्सन ने यह भी बयान दिया कि यह ब्रेक भी उनके शोध का ही हिस्सा है.
यह वही कंपनी है जिसकी एंटीबॉडी कॉकटेल अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को उनके इलाज के दौरान दी गई थी. ट्रंप ने इसकी काफी तारीफ भी की थी लेकिन दूसरे चरण की टेस्टिंग के बाद इसे भी रोका गया. कंपनी ने "सुरक्षा कारणों" को इसकी वजह बताया था.
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ऑक्सफोर्ड एस्ट्रा जिनेका
इस वैक्सीन से काफी ज्यादा उम्मीदें लगाई गई थीं. भारत में भी इस पर ट्रायल चल रहे थे. लेकिन टेस्टिंग के दौरान एक वॉलंटियर ने कुछ अस्पष्ट लक्षणों के बारे में बताया, जिसके बाद ट्रायल को रोकना पड़ा.
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बायोनटेक+फाइजर
जर्मन कंपनी बायोनटेक और अमेरिकी कंपनी फाइजर ने दावा किया है कि उसने तीसरे चरण की टेस्टिंग को सफलतापूर्वक पूरा किया है और उन्हें 90 फीसदी से ज्यादा नतीजा मिला है. इस शोध में 43 हजार से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया और 28 दिनों में 93 फीसदी लोग वायरस से सुरक्षित पाए गए.
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स्पुतनिक
रूस की वैक्सीन स्पुतनिक शुरू से ही विवादों में रही, लेकिन फाइजर की खबर आने के बाद राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि उनकी वैक्सीन ने भी 90 फीसदी का असर दिखाया. उन्होंने कहा कि रूस में बनी हर वैक्सीन विश्वसनीय है. स्पुतनिक वैक्सीन पर भारत में भी टेस्ट किया जा रही है.
कोरोना वायरस से निपटने के लिए सब कंपनियां आनन फानन में नतीजों तक पहुंचने की कोशिश में तो लगी हैं लेकिन कोई भी वैक्सीन कितनी कारगर है यह समझने में सालों लगता है. बायोनटेक और फाइजर के टीके को लेकर भी अभी यह पता नहीं है कि अलग अलग लोगों पर इसके क्या अलग अलग असर देखने को मिलेंगे.
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लैब से बाजार
यूरोपीय संघ में जनवरी 2021 से लोगों को वैक्सीन देने की बात की जा रही है. लेकिन पहले वैक्सीन किसे मिलेगी, इस पर नियम तय होना बाकी है. अगर जनवरी से टीका बाजार में आता भी है, तो भी पूरी जनता तक पहुंचने में साल भर लग सकता है.