जर्मनी में अब तक सीरिया से आए शरणार्थी स्कूल में दाखिला नहीं ले सकते थे. लेकिन अब एक नए कार्यक्रम से यह मुमकिन हो रहा है.
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16 साल की हेवा दाऊद उत्तरी सीरिया के हासाका शहर से हैं. 2011 में उनका परिवार सीरियाई विद्रोह से बचने के लिए भाग निकला. पहले तुर्की, फिर बल्गेरिया और फिर ग्रीस. आखिरकार वह जर्मनी पहुंचे.
जर्मनी में हेवा कुछ नहीं कर सकती थीं. स्कूल भी जा नहीं सकती थी. हेवा की साथी रामा हामिदा का परिवार भी सीरिया से जान बचाने के लिए भागा था. रामा बताती हैं, "चूंकि स्कूल जाना भी अब संभव नहीं इसलिए भी कई लोग सीरिया छोड़ रहे हैं. हमारे स्कूल खुले नहीं हैं. और हम वहां जा भी नहीं सकते थे." रामा अलेप्पो की रहने वाली हैं.
अंतरराष्ट्रीय पढ़ाई नहीं
हेवा दाऊद और रामा हामिदा को वैसे तो नवीं या दसवीं कक्षा में होना चाहिए था. लेकिन उन्हें जर्मन तो आती नहीं. इसलिए उन्हें एक ऐसी कक्षा में रखा गया है जहां दुनिया भर से आए बच्चे जर्मन सीखते हैं. लेकिन हाले में ऐसी बहुत कक्षाएं नहीं हैं. शरणार्थी के तौर पर आए कई बच्चे ऐसे हैं जो क्लास में तो बैठते हैं लेकिन कुछ समझ नहीं पाते क्योंकि पढ़ाई जर्मन में चल रही होती है.
तबाह होती सीरिया की ऐतिहासिक धरोहर
2011 में विद्रोह के साथ शुरू हुई लड़ाई सीरिया में गृह युद्ध की शक्ल ले चुकी है. इस हिंसक माहौल में हजारों जानों के साथ देश की ऐतिहासिक इमारतें भी नष्ट हो रही है. इस बारे में यूनेस्को ने हाल में एक रिपोर्ट जारी की...
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संस्कृति के बिना समाज अधूरा
पिछले चार हजार साल में बेबीलोन, मिस्र, पर्शियाई, ग्रीक और रोमन सभ्यताओं का प्रभाव सीरिया पर रहा. आज यहां इस काल की कई इमारतें गृह युद्ध के कारण खतरे में पड़ गई हैं. संयुक्त राष्ट्र के सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को ने इस बारे में ताजा रिपोर्ट जारी की है.
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अलेपो का ऐतिहासिक केन्द्र
इस साल जून में यूनेस्को ने कहा कि सीरिया की छह विश्व धरोहरें खतरे में हैं. इनमें अलेपो का केंद्र भी शामिल है. भूमध्यसागर इलाके में यह एक सांस्कृतिक केंद्र रहा है.
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खाक हुआ बाजार
अलेपो का यह बाजार सांस्कृतिक धरोहर में इसलिए शामिल किया गया क्योंकि यह मध्यपूर्व का सबसे बड़ा ढंका हुआ बाजार है. 350 हेक्टेयर के इलाके की कई गलियों में कई सौ दुकानें हैं. इस ऐतिहासिक बाजार के आसपास की पांच किलोमीटर लंबी दीवार भी इसे नहीं बचा पाई. 2012 में संघर्ष के दौरान यहां आग से भारी नुकसान हुआ.
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किले पर कब्जा
सीरिया में जारी गृह युद्ध के दौरान सांस्कृतिक धरोहर रणनीतिक ठिकाने के तौर पर इस्तेमाल की जा रही हैं. इसमें अलेपो के पास की पहाड़ी पर बना यह किला भी शामिल है. सिकंदर महान के बाद के सेल्युसिड साम्राज्य में यह किला बनाया गया था, वह भी ईसा पूर्व चौथी सदी में.
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धमाकों से उजड़ा दमिश्क
दमिश्क का पुराना शहर भी यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल था. असद सरकार के खिलाफ विद्रोह शुरू होने से पहले दुकानों, रेस्तरां, मस्जिद और गिरिजाघर वाला ये इलाका यहां का मुख्य आकर्षण था. जून में हुए धमाकों में पहली बार इस धरोहर को नुकसान पहुंचा.
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बुलेट से छलनी आर्क
रेगिस्तान में बसा पालमिरा का शहर भी खतरे से जूझ रहा है. यहां का मशहूर आर्क अभी खड़ा है. पालमिरा आर्किटेक्चर के लिए जाना जाता है. रोमन सम्राट सेप्टिमियस सर्वियस के दौर में बने इस आर्क और बाल मंदिर की दीवारों पर गोलियों के निशान हैं.
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विद्रोहियों का अड्डा?
मध्यकाल का क्राक दे कावालिए किला होम्स गैप में है और यह भी हिंसाग्रस्त इलाका है. येरुशलम की ओर जाने वाले धर्मयोद्धा पहली बार इस किले में 1099 में पहुंचे. इस वक्त यह किला सरकार और विद्रोहियों के विवाद में फंसा है. विद्रोहियों का दावा है कि इस पर सीरियाई वायुसेना ने बमबारी की. संदेह है कि विद्रोही इसे अपने अड्डे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं.
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बुसरा की रंगशाला अब खंडहर
किसी समय बुसरा में रोमन काल का यह थिएटर दुनिया भर में मशहूर था. संगीतकार इसकी वास्तु में बसी ध्वनि तकनीक के कायल रहे हैं. लेकिन हिंसा के दौरान इसे भी नुकसान पहुंचा है.
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ऐतिहासिक मृत शहर भी लुटे
'डेड सिटीज' यानी मृत शहर के नाम वाले ये इलाके संयुक्त राष्ट्र की विश्व धरोहर में शामिल हैं. उत्तरी सीरिया इन गांवों में बायजेन्टिन काल के कुछ घर हैं. तो जेरदा में भी कुछ पुरानी इमारते हैं. गृहयुद्ध शुरू होने से पहले ये अच्छे से संरक्षित थे. लेकिन अब कुछ आग से ध्वस्त हो गए हैं तो कुछ को लूट लिया गया है.
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लुटे संग्रहालय
सीरिया के संग्रहालय भी खतरे में हैं. 2011 से अब तक दमिश्क और अलेपो के कई प्रमुख संग्रहालयों से कीमती सामान सीरिया के केन्द्रीय बैंक में पहुंचाया जा चुका है. लेकिन कई अभी भी खतरे में हैं.
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सीरियाई धरोहरों का संरक्षण
यूनेस्को उन कीमती सामानों की लिस्ट बना रहा है जिनकी लूटपाट हुई है. कस्टम अधिकारियों और कला का व्यवसाय करने वाले लोगों को चेतावनी दी जा रही है कि इन सामानों की अंतरराष्ट्रीय तस्करी पर पैनी नजर रखें.
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हाले के एक स्कूल में इस साल कई सीरियाई बच्चों ने एडमिशन ली है. उवे बोएगे जैसे कुछ शिक्षकों ने सीरियाई बच्चों को एक्स्ट्रा क्लास देनी शुरू की लेकिन उन्हें अरबी नहीं आती थी इसलिए शिक्षकों और बच्चों में संवाद नहीं हो सका.
निजी कोशिशें
बोएगे ने पास के विश्वविद्यालय के जर्मन भाषा और ओरिएंटल इंस्टीट्यूट से संपर्क किया. वहां अरबी पढ़ने वाले छात्रों ने सीरियाई युवाओं को जर्मन सिखानी शुरू की. इससे बहुत तेजी से फर्क पड़ा. बोएगे की कोशिशों से 2013 में एक्स्ट्रा क्लास शुरू की गई. अब यहां करीब 18 सीरियाई बच्चे हैं जो 10 से 17 साल के बीच में हैं.
15 साल की रामा हामिदा को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसे कौन पढ़ा रहा है. वह बस इतना चाहती है कि जर्मनी में वह अच्छे से स्कूल खत्म करे और बढ़िया नंबरों से पास हो. एक सपना उनका जरूर है कि वह पढ़ाई खत्म करके सीरिया जाएंगी और फिर वहां यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करेंगी.