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सीरिया जाते जर्मन कट्टरपंथी

९ सितम्बर २०१३

जर्मनी के कई युवा सीरिया के विपक्ष को मदद देने जा रहे हैं और इस दौरान कट्टरपंथ का रास्ता अपना रहे हैं. जर्मनी की खुफिया एजेंसी ने यह जानकारी दी है. विशेषज्ञ इसे खतरनाक ट्रेंड मान रहे हैं.

तस्वीर: Sam Tarling/AFP/GettyImages

अंतरराष्ट्रीय समुदाय एक ओर 21 अगस्त को सीरिया में कथित रासायनिक हमलों के बाद सीरियाई सरकार के खिलाफ कदम उठाने के बारे में विचार कर रहा है. क्योंकि अंदेशा है कि ये हमले सीरिया की सरकार ने ही किए थे. वहीं कुछ कट्टरपंथी जर्मन युवा इस मामले में सीधे अपना हाथ डाल रहे हैं.

इन युवा जर्मनों में ऐसे लोग शामिल हैं, जो हजारों किलोमीटर का सफर तय कर हैम्बर्ग से सीरिया पहुंचे कि बशर अल असद के खिलाफ लड़ रहे विद्रोहियों का साथ दें. कुछ कार से आए हैं, तो कुछ तुर्की से होते सीरिया की सीमा में घुसे. उत्तरी जर्मन रेडियो एनडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 की शुरुआत से अब तक कई दर्जन युवा लड़ाई के लिए सीरिया गए हैं.

एनडीआर के लिए इस विषय पर शोध करने वाली पत्रकार कारोलिन फ्रोमे बताती हैं, "उनके बारे में सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक बात ये है कि वे बहुत ही युवा हैं. कुछ तो सिर्फ 18-19 साल के." वे यह भी कहती हैं कि इनमें से अधिकतर ऐसे हैं जो जर्मन नागरिक हैं लेकिन वे प्रवासी मूल के हैं.

संदिग्ध ताल्लुक

फ्रोमे के मुताबिक, "सुरक्षा अधिकारियों के जरिए हमें मालूम है कि वे हैम्बर्ग के युवा संगठनों में सक्रिय रहे हैं." उनके अनुसार कुछ हिज्बो तहरीर गुट से भी जुड़े थे, जबकि यह गुट जर्मनी में प्रतिबंधित है. बताया जाता है कि पैन इस्लामिक गुट जर्मनी में युवाओं की भर्ती करता है.

सीरिया में मारा गया जर्मन नागरिकतस्वीर: Reuters

जर्मनी के उत्तरी कील शहर की एक मस्जिद पर जर्मनी की सुरक्षा एजेंसी कई साल से नजर रखे है. हाल ही में इब्नू तायमिया मस्जिद सुर्खियों में आई थी जब जर्मन-चेचन्याई मूल के आसलानबेक एफ सीरिया में मारा गया. रिपोर्टें थीं कि आसलानबेक का कील की इस मस्जिद में जिहादी गुट से संपर्क बना और फिर वह इस नेटवर्क में भी शामिल हो गया.

जर्मनी की खुफिया एजेंसी की हैम्बर्ग शाखा के उप प्रमुख टॉर्स्टन फॉस ने जर्मनी में इस्लाम पर नजर रखी है. उन्होंने ऐसे चरमपंथियों पर बारीक नजर रखी है, "ये वो लोग हैं जो जिहाद का समर्थन करते हैं. वे लड़ाई जैसी कार्रवाइयों में शामिल हो कर कट्टरपंथी हो जाना चाहते हैं." उनके मुताबिक जिन पर नजर रखी जा रही है उनमें से कई इस्लामी गुटों को आर्थिक मदद भी देते हैं.

ज्यादा संख्या में

इस तरह के गुटों से जुड़ने वाले लोगों को हालांकि अभी इस्लामी कट्टरपंथी की श्रेणी में नहीं रखा जाता. फॉस मानते हैं कि कई युवा सीरिया इसलिए जा रहे हैं कि उनके दोस्त और फॉलोअर्स सोशल नेटवर्क पर उन्हें देखें. वे हथियारों के साथ तस्वीरें इसलिए लेते हैं कि हैम्बर्ग के कट्टरपंथी धड़े में उनकी नींव मजबूत हो.

जर्मनी की खुफिया एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक जो छह युवा सीरिया गए थे, वो कुछ ही सप्ताह में हैम्बर्ग लौट आए. हालांकि रास्ते में उन्होंने क्या किया ये साफ नहीं हुआ. यह भी साफ नहीं है कि ये सभी सीरिया तक पहुंचे या नहीं.

सुरक्षा एजेंसी ने जर्मनी में ऐसे 120 लोगों का रिकॉर्ड रखा है, जो सीरिया गए थे. उन पर संदेह है कि वे इस्लामिक गुटों को मदद दे रहे हैं. ऐसे लोगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है. जर्मनी के उत्तरी राज्य श्लेसविग होलस्टाइन के गृह मंत्री आंद्रेयास ब्राइटनर ने इस तरह के लोगों से पैदा होने वाले और बढ़ने वाले खतरे के प्रति चिंता जताई है. ब्राइटनर ने कहा कि इनमें से कुछ लोगों को आतंकी शिविरों में बाकायदा ट्रेनिंग भी मिली है.

जर्मनी की आंतरिक खुफिया एजेंसी प्रमुख हंस गेऑर्ग मासेन कहते हैं, "जब वो लौटते हैं तो उनका हीरो की तरह स्वागत किया जाता है. लौटने वालों में भावनाओं का गुबार इतना होता है कि वे जर्मनी में हमलों की तैयारी कर सकते हैं और बाकी लोगों को इसके लिए उकसा सकते हैं."

बढ़ते कट्टरपंथीतस्वीर: Getty Images

जर्मनी के खतरे ?

एनडीआर की पत्रकार फ्रोमे का मानना है कि जर्मनी में हमलों की कोई ठोस योजना तो नहीं है. लेकिन, "सीरिया से जो छह लोग हैम्बर्ग लौट कर आए हैं, उन्होंने हथियार चलाना सीखे हैं या फिर नए संपर्क भी बनाए हैं. और सुरक्षा अधिकारी अब उन पर बारीक नजर रखे हुए हैं."

जर्मन अधिकारी संदिग्ध कट्टरपंथियों को देश से बाहर जाने से रोक सकते हैं. चाहें तो यात्रा के लिए जरूरी दस्तावेज भी निलंबित कर सकते हैं. लेकिन कुछ लोग फिर भी देश छोड़ कर चले जाते हैं. तुर्की से होते हुए सीरिया जाना आसान है. कई लोग बिना पासपोर्ट सिर्फ आईडी कार्ड के साथ सीरिया चले जाते हैं.

रिपोर्टः आर्ने लिष्टेनबर्ग/एएम

संपादनः ए जमाल

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