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सीरिया पर हमले से इलाके में शक्ति संतुलन बदला

कैर्स्टेन क्निप्प
१२ अक्टूबर २०१९

सीरिया में तुर्की की सेना के घुसने की अरब देश आलोचना कर रहे हैं. ईरान ने भी हमले की आलोचना की है. तुर्की के हमले ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जिससे पूरे मध्यपूर्व में शक्ति संतुलन बिगड़ सकता है.

BDTD Syrien Tal Abyad Militäroffensive der Türkei
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Kilic

तुर्की की सीमा से लगे सीरियाई शहरों पर तुर्की के लड़ाकू विमानों के हमलों के कारण हजारों लोग भाग रहे हैं. उत्तरी सीरिया में तुर्की की सैनिक कार्रवाई में वायुसेना के अलावा आर्टिलरी सैनिकों ने भी हिस्सा लिया है और कुर्दों के वाईजीपी संगठन के 181 ठिकानों पर हमला किया है. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तय्यप एर्दोवान का कहना है कि वे तुर्की के दक्षिण में कुर्दों के इलाके से आतंकवादी गलियारे को खत्म कर देना चाहते हैं और वहां शांति स्थापित करना चाहते हैं. इसमें कामयाबी संदेहास्पद है.

लेबनान के सैन्य विशेषज्ञ निजार अब्देलकादर का कहना है, "तुर्की की सैनिक कार्रवाई का असर पूरे पश्चिम एशिया में स्थिरता के अलावा क्षेत्रीय और स्थानीय राजनीतिक स्थिति पर भी होगा." उनका कहना है कि सैनिक कार्रवाई का नतीजा तकलीफ और बर्बादी होगा. "सीरिया संकट और जटिल हो जाएगा और सीरिया में राजनीतिक समाधान ढूंढना शायद ही संभव रह जाएगा."

सीरियाई कुर्दों का प्रदर्शनतस्वीर: Reuters/A. Lashkari

एक हमला और कई हारें

ब्रिटिश अखबार एलाफ का कहना है कि तुर्की की सैनिक कार्रवाई के असर का अंदाजा लगाना कठिन है. इसमें सिर्फ कुर्दों का नुकसान नहीं होगा. ये आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय संघर्ष में मिली कामयाबी को भी नुकसान पहुंचा सकता है. कुर्द इलाकों में कैद आतंकवादी संगठन आईएस के लड़ाके अफरातफरी का फायदा उठाकर भाग सकते हैं और पूरे इलाके में छुप सकते हैं. सीरिया पर हमला तुर्की को भी नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि सरकार लोगों पर कुर्दों के खिलाफ एक अंतहीन युद्ध थोप रही है. अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित कुर्द लड़ाकों और तुर्की की लड़ाई लंबे समय तक चल सकती है.

तुर्की की सैनिक कार्रवाई का शुरुआती असर दिखने लगा है. एर्दोवान ने मिस्र और सऊदी अरब की आलोचना पर कड़ी प्रतिक्रिया की है. राष्ट्रपति अल सीसी की कैबिनेट को निशाना बनाकर उन्होंने कहा कि मिस्र को तुर्की की सैनिक कार्रवाई की आलोचना करने का कोई हक नहीं है, सरकार ने खुद को देश में लोकतंत्र का हत्यारा साबित किया है. और सऊदी अरब की ओर इशारा करते हुए एर्दोवान ने कहा, "यमन को उसकी मौजूदा हालत में कौन लाया है?" वे यमन में हूथी विद्रोहियों के खिलाफ सऊदी अरब के नेतृत्व में चल रही लड़ाई और वहां की मानवीय दुर्दशा की ओर इशारा कर रहे थे.

रॉकेट हमले से भागती महिलाएंतस्वीर: Reuters

तुर्की की नई नीति

राष्ट्रपति एर्दोवान का बयान दिखाता है कि यमन के युद्ध पर उनका रवैया कितना बदल गया है. शुरू में उन्होंने सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन का स्वागत किया था तो अब वे उसके खिलाफ हो गए हैं. इसे सऊदी अरब के विरोधी ईरान की ओर एक हल्का का संदेश भी समझा जा सकता है. हालांकि ईरान ने भी असैनिक नागरिकों के लिए खतरे का हवाला देकर तुर्की की कार्रवाई की आलोचना की है और उसने तुर्की की सीमा पर बड़ा सैनिक अभ्यास भी किया है. ईरान के संसद प्रमुख लारीजानी ने अपना तुर्की दौरा भी रद्द कर दिया है. लेकिन साथ ही ईरान ने कहा है कि वह दक्षिणी सीमा पर सुरक्षा को लेकर तुर्की की चिंताएं समझता है. ईरान में कुर्द आबादी रहती है लेकिन वहां तुर्की जैसा विवाद पैदा नहीं हुआ है.

सीरिया में कुर्द पार्टी पीवाईडी से ईरान ने एक दूसरे कारण से दूरी बना रखी है. तुर्की के राजनीतिविज्ञानी गुरिज सेन कहते हैं, "सीरिया के गृहयुद्ध में पीवाईडी आतंकी संगठन आईएस के खिलाफ संघर्ष में ईरान का रणनीतिक सहयोगी बन गया था" आईएस के पराजित होने के बाद तेहरान सरकार ने कुर्द पार्टी की अमेरिका के साथ अच्छे रिश्तों का सामना हुआ. इसलिए वह सीरियाई कुर्दों और असद सरकार के बीच मेलजोल का समर्थन कर रही है. इस तरह वह सीरिया के ऊपर अपना नियंत्रण बढ़ाना चाहती है और सीरिया में अमेरिकी उपस्थिति को कमजोर करना चाहती है.

तुर्की सेना बंख्तरबंद गाड़ियांतस्वीर: Reuters/M. Sezer

कमजोर हुए खाड़ी के देश

तेहरान और अंकारा के संबंध भविष्य में जैसे भी विकसित हों, सीरिया में असद शासन के खिलाफ जिहादियों को समर्थन देने वाले संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे देशों को नुकसान झेलना होगा. उनका प्रभाव अब सैनिक कार्रवाई करने वाले तुर्की जैसा नहीं रह गया है. ऐसा इसलिए भी है कि खाड़ी के सल्तनतों का साथी अमेरिका पूरी तरह से न भी सही, लेकिन व्यापक रूप से उत्तरी सीरिया से वापस हट गया है. अरब प्रेस में अमेरिका के इस फैसले को कुर्दों के खिलाफ गद्दारी बताया जा रहा है जो आईएस के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका के करीबी साथी थे. अरब ऑनलाइन पत्रिका राइ अल यूम का कहना है कि यही काम वे दूसरों के साथ भी कर सकते हैं.

और इसकी वजह साफ है. अब अमेरिका खाड़ी के तेल पर निर्भर नहीं है. इस बीच वह खुद ज्यादा खनिज तेल का उत्पादन कर रहा है. इसके अलावा अमेरिका को अब ताकतवर होते जाते चीन पर ज्यादा ध्यान देना पड़ रहा है. इसके अलावा होरमुस कांड और सऊदी अरब के तेल कारखानों पर हुए ड्रोन हमलों के दौरान अमेरिका ने भी पाया कि उसके सुरक्षा हथियार उतने अच्छे नहीं हैं जितना समझा जाता है. ट्रंप के इरादे साफ हैं, "वे अपने साथियों को हथियार बेचना चाहते हैं, उनकी रक्षा नहीं करना चाहते." तो क्या सऊदी अरब को चिंता करने की जरूरत है? सउदी रणनीति विशेषज्ञ हसन जफर अल शहरी इसे नकारते हैं, "सल्तनत और अमेरिका के रिश्ते लंबे और गहरे हैं." सऊदी अरब इसलिए भी चिंतित नहीं है कि अमेरिका पीछे भी हट जाए तो मॉस्को, बीजिंग और यूरोपीय संघ कतार में हैं.

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