अमेरिका का कहना है कि अबु बक्र अल-बगदादी की मौत के बावजूद सीरिया में उसके आतंकी संगठन की क्षमता बरकरार है. क्या विश्व पर इस्लामिक स्टेट का खतरा अब भी बना हुआ है?
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राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर नजर रखने वाली अमेरिकी सरकार की एक स्वतंत्र संस्था ने कहा है कि तथाकथित इस्लामिक स्टेट के मुखिया अबु बक्र अल-बगदादी की मौत के बावजूद सीरिया में इस जिहादी संगठन की क्षमता बरकरार है. इस संस्था के साथ साथ अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के एक इंस्पेक्टर जनरल ने भी कहा कि अगर इराक से अमेरिकी सैनिक चले जाते हैं तो जिहादी अपनी गतिविधियों को फिर शुरू कर सकते हैं.
48 वर्षीय बगदादी 2014 से इस्लामिक स्टेट का नेतृत्व कर रहा था और वह दुनिया का सबसे वांछित व्यक्ति था. उसने अपने नेतृत्व में एक "खिलाफत" की घोषणा की थी जिसने एक समय इराक और सीरिया के एक बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया था. लेकिन अमेरिका के नेतृत्व में कई साल तक चली लड़ाई में पिछले साल आखिरकार उसका अंत हो गया. उसके बाद यह गुट भूमिगत हो गया और उसने गुरिल्ला रणनीति अपना ली जिससे वह नुकसान करता रहा.
बगदादी के मारे जाने के बाद संगठन ने अबु इब्राहिम अल-हाशिमी अल-कुरैशी को नेतृत्व सौंप दिया, लेकिन अबु इब्राहिम के बारे में कोई भी ज्यादा नहीं जानता. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के इंस्पेक्टर जनरल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बगदादी की मौत से संगठन पर कोई असर नहीं पड़ा.
अमेरिकी केंद्रीय कमांड (सेंटकॉम) से मिली जानकारी का हवाला देते हुए, इंस्पेक्टर जनरल ने कहा कि इस्लामिक स्टेट "अभी भी मजबूत है. उसके नियंत्रण का ढांचा और उसके गुप्त शहरी नेटवर्क बरकार हैं और उसके लड़ाके ग्रामीण सीरिया के ज्यादातर इलाकों में उपस्थित हैं."
रिपोर्ट में कहा गया है कि सेंटकॉम और डिफेन्स इंटेलिजेंस एजेंसी, दोनों ही इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि बगदादी की मौत का "आईएसआईएस की क्षमताओं को कोई तात्कालिक क्षति नहीं पहुंची."
अमेरिका और ईरान के बीच तनातनी पिछले महीने इराक तक पहुंच गई और युद्ध की चिंताओं ने जन्म ले लिया. लेकिन अब वो चिंताएं शांत हो रही हैं. अमेरिका ने ईरान की सेना के शीर्ष जनरल कासिम सुलेमानी को बगदाद में मार गिराया और ईरान ने पलटवार में एक इराकी सैन्य ठिकाने पर हमला कर दिया और दर्जनों अमेरिकी सिपाहियों को घायल कर दिया.
इराक में, सुलेमानी की हत्या के बाद अमेरिकी सैनिकों ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ अपनी गतिविधियां रोक दीं, ताकि इराक में मौजूद लगभग 5,200 अमेरिकियों को बचाने पर ध्यान दिया जा सके.
अमेरिकी नेतृत्व वाला गठबंधन 2014 के बाद से इस्लामिक स्टेट को हराने के लिए इराकी सैनिकों को प्रशिक्षण और हवाई समर्थन दे रहा है. सुलेमानी की मौत के बाद इराक की संसद में अमेरिकी सैनिकों को इराक छोड़ कर चले जाने के निर्देश देने के लिए मतदान भी हुआ. लेकिन अमेरिका ने ऐसा करने से मना कर दिया और इराकी सैनिकों ने जनवरी के अंत में गठबंधन की सेना के साथ मिलकर जिहादी विरोधी अभियान फिर शुरू कर दिए.
इंस्पेक्टर जनरल ने कहा, "ये स्पष्ट नहीं है कि अमेरिकी सैनिक इराक में रह पाएंगे या नहीं और अगर वे रह भी जाएं तो उनकी गतिविधियां पहली जैसी रह पाएंगी या नहीं." लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि, "इराक में अमेरिकी सैनिकों की उपस्थिति के बिना, आईएसआईएस की वापसी हो सकती है."
तथाकथित इस्लामिक स्टेट के लिए अमेरिकी सैन्य कार्रवाई में उसके मुखिया अबु बक्र अल बगदादी की मौत एक बड़ा झटका है. लेकिन अब भी कई देशों में यह गुट एक बड़ा खतरा बना हुआ है. एक नजर इन्हीं देशों पर.
तस्वीर: Reuters/Handout
इराक
अमेरिका समर्थित फौजों से लड़ाई में हारने के बाद इस्लामिक स्टेट के लड़ाके वापस गुरिल्ला वॉर के हथकंडों पर लौट आए हैं. दियाला, सलाहुद्दीन, अंबार, किरकुक और निवेनेह जैसे प्रांतों में अब भी आईएस की ईकाइयां चल रही हैं जो लगातार अपहरणों और बम धमाकों को अंजाम दे रही हैं. विश्लेषकों का कहना है कि इराक में आईएस के लगभग दो हजार लड़ाके हिंसक गतिविधियों में लगे हुए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Dabiq
सीरिया
सीरिया में अत्यधिक नुकसान झेलने के बावजूद इस्लामिक स्टेट ने पिछले साल उत्तरी इलाके में कई हमलों को अंजाम दिया है. उन्होंने अमेरिकी बलों को भी निशाना बनाया है. अमेरिका के साथ मिल कर आईएस को हराने वाले सीरियाई कुर्द बलों का कहना है कि आईएस लड़ाके पूर्वी सीरिया में फिर से पनप रहे हैं. इस्लामिक स्टेट के लड़ाके सीरिया के दूर दराज के रेगिस्तानी इलाकों में सक्रिय हैं.
तस्वीर: DW/Judit Neurink
मिस्र
पिछले एक साल में मिस्र में कोई बड़ा हमला नहीं हुआ है, लेकिन छिटपुट घटनाएं होती रही हैं. सेना का कहना है कि सिनाई प्रांत में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ फरवरी 2018 में शुरू हुए अभियान में सैकड़ों चरमपंथी मारे गए हैं. 2015 में शर्म अल शेख से उड़ान भरने वाले एक रूसी विमान को गिरा दिया गया था. इसमें सवार सभी 224 लोग मारे गए थे. इसकी जिम्मेदारी आईएस ने ली थी.
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सऊदी अरब
इस्लामिक स्टेट ने सऊदी अरब में कई धमाकों को अंजाम दिया है और सुरक्षा बलों के साथ साथ अल्पसंख्यक शियाओं को भी निशाना बनाया है. आईएस के खिलाफ अभियान में जब सऊदी अरब शामिल हुआ तो बगदादी ने उसके खिलाफ हमले करने का आह्वान किया था. अमेरिकी थिंकटैंक सेंटर फॉर ग्लोबल पॉलिसी का कहना है कि सऊदी अरब में आईएस सक्रिय है लेकिन सऊदी अधिकारियों को इस बारे में अच्छी खासी जानकारी है.
तस्वीर: dpa
यमन
आईएस ने 2014 के अंत में अपनी यमन शाखा की घोषणा की. वहां हूथी बागियों और सऊदी अरब समर्थित अब्द रब्बु मंसूर हादी की सरकार के बीच गृह युद्ध चल रहा है. यमन में आईएस को अल कायदा से भी लड़ना पड़ रहा है और दोनों गुट शिया हूथी बागियों से भी लड़ रहे हैं. यमन में आईएस ने कई हमलों और हत्याओं की जिम्मेदारी ली है, लेकिन कोई इलाका उसके कब्जे में नहीं है. जानकार कहते हैं कि यहां अल कायदा ज्यादा बड़ा खतरा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Souleiman
नाइजीरिया
उतरी नाइजीरिया में 2009 से बोको हराम ने कई बड़े हमले किए हैं. उसने 30 हजार से ज्यादा लोगों को कत्ल किया है जबकि बीस लाख लोगों को बेघर किया है. 2016 में यह गुट दो हिस्सों में बंट गया है जिसका एक धड़ा खुद को आईएस के प्रति वफादार बताता है. इस्लामिक स्टेट के वेस्ट अफ्रीकी प्रोविंस गुट ने पिछले साल कई सैन्य अड्डों को निशाना बनाया. इस गुट का दबदबा बढ़ रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Marte
अफगानिस्तान
इस्लामिक स्टेट ने अफगानिस्तान में खुद को इस्लामिक स्टेट इन खोरासान का नाम दिया और वह 2015 से सक्रिय है. नंगरहार प्रांत में उसे अब भी काफी मजबूत माना जाता है. इस गुट का नेतृत्व खुद को अल बगदादी का वफादार बता चुका है. अमेरिकी कमांडर कहते हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान से भी लोहा लेने वाले आईएस के लगभग दो हजार लड़ाके हो सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Xinhua/E. Waak
श्रीलंका
इस्लामिक स्टेट का कहना है कि अप्रैल में श्रीलंका में ईस्टर के मौके पर चर्च और अस्पतालों में हुए बम धमाकों में उसका हाथ था. श्रीलंका के अधिकारी धमाकों के लिए आईएस से जुड़े दो स्थानीय मुस्लिम चरमपंथी गुटों को जिम्मेदार मानते हैं. धमाकों के बाद आईएस ने एक वीडियो भी जारी किया था जिसमें आठ लोगों को आईएस के प्रति वफादारी जताते हुए दिखाया गया था.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
इंडोनेशिया
दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश में हजारों लोग इस्लामिक स्टेट की विचारधारा से प्रेरित बताए जाते हैं. माना जाता है कि लगभग 500 इंडोनेशियाई आईएस के लिए लड़ने के मकसद से सीरिया गए थे. पिछले साल सुराबाया में हुए आत्मघाती हमलों में तीस लोग मारे गए थे. इस हमले के पीछे जमाह अंशारुत दौला संगठन का हाथ बताया जाता है जो इंडोनेशिया में इस्लामिक स्टेट से हमदर्दी रखने वाले लोगों का एक संगठन है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
फिलीपींस
फिलीपींस को डर है कि सीरिया और इराक से भाग रहे आईएस चरमपंथी उसके मिंदानाओ प्रांत के दूर दराज के जंगलों और मुस्लिम गांवों में शरण ले सकते हैं. यह इलाका अराजकता, अव्यवस्था, अलगाववाद और इस्लामी विद्रोह के लिए बदनाम रहा है. इस्लामिक स्टेट वहां होने वाले हमलों और सरकारी बलों के साथ हुई झड़पों की जिम्मेदारी भी लेता रहा है, हालांकि ये दावे कितने सही हैं, इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है.