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सीरिया में प्रदर्शनकारियों का दमन

२६ मार्च २०११

सबकी नजरें लीबिया पर हैं, लेकिन दूसरे अरब देशों, मसलन बहरीन, यमन और सीरिया में भी हालात सत्ताधारियों के हाथों से बाहर निकलते जा रहे हैं. खासकर सीरिया में पिछले दो तीन दिनों में स्थिति काफी बिगड़ चुकी है.

दरा में स्थिति तनावपूर्णतस्वीर: picture alliance/abaca

दक्षिणी सीरियाई नगर दरा में दर्जनों प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है. सिर्फ शुक्रवार को ही मरने वालों की संख्या 20 तक पहुंच चुकी है. दरा के अलावा दमिश्क में भी प्रदर्शन की कोशिश की गई व सुरक्षा बलों ने भीड़ को तितर बितर करते हुए दर्जनों लोगों को गिरफ्तार कर लिया. उत्तर के नगर हमा व देश के अन्य हिस्सों से भी प्रदर्शन की खबरें मिली हैं.

अशांत क्षेत्रों में पत्रकारों को जाने से रोका जा रहा है. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार दरा में पिछले दिनों मारे गए प्रदर्शनकारियों के जनाजे में हजारों लोगों ने भाग लिया. प्रदर्शनकारियों ने वर्तमान राष्ट्रपति के पिता व पूर्व राष्ट्रपति हाफेज अल असद की एक मूर्ति तोड़कर गिरा दी. दिन भर प्रदर्शनकारियों के साथ मुठभेड़ के बाद शाम को स्थिति सुरक्षा बलों के नियंत्रण में आ सकी.

तस्वीर: AP

राष्ट्रपति बशर अल असद अपने 11 साल के शासन के सबसे भयानक संकट का सामना कर रहे हैं. इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप थिंक टैंक नामक संस्था का कहना है कि सीरियाई नेतृत्व एक दोराहे पर खड़ा है. राष्ट्रपति असद मुठभेड़ को टालते हुए कुछ राजनीतिक सुधार ला सकते हैं, लेकिन इससे उनके राजनीतिक वर्चस्व जोखिम में पड़ सकता है. इसके विपरीत अगर वे दमनचक्र बढ़ाने का फैसला लेते हैं तो देश में खून की नदियां बह सकती हैं.

सीरिया में संघर्ष का एक सांप्रदायिक पहलू भी है. राष्ट्रपति बशर अल असद व उनके पिता अल्पसंख्यक अलाविट शिया समुदाय को काफी सुविधा देते रहे हैं. बहुसंख्यक सुन्नी समुदाय को यह कतई पसंद नहीं है. ऐसी हालत में लोकतंत्र व आजादी के लिए संघर्ष कभी भी एक सांप्रदायिक रूप ले सकता है.

दमिश्क व अन्य शहरों में राष्ट्रपति असद के हजारों समर्थक भी सड़क पर उतरे हैं. वे राष्ट्रपति असद व उनकी बाथ पार्टी के प्रति अपना समर्थन व्यक्त कर रहे हैं.

प्रदर्शनकारियों को शांत करने के लिए गुरुवार को राष्ट्रपति असद ने वादा किया था कि 1963 से जारी आपात स्थिति को खत्म करने पर विचार किया जाएगा. साथ ही उन्होंने वेतनों में वृद्धि का प्रस्ताव किया है. लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उन्हें इन वादों पर भरोसा नहीं है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: ओ सिंह

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