अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मिले. जहां लावरोव ने अमेरिकी सरकार को 'समस्याएं सुलझाने वाला' कह कर तारीफ की, वहीं एफबीआई निदेशक जेम्स कोमी को पद से हटाये जाने की बात मजाक में उड़ा दी.
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जेम्स कोमी को हटाए जाने का कारण उनका ट्रंप के चुनावी अभियान में रूस का हाथ होने के आरोप की जांच में शामिल होना बताया गया. फिर भी जब रूसी विदेश मंत्री लावरोव अपने अमेरिकी समकक्ष रेक्स टिलरसन के साथ फोटो खिंचवा रहे थे, तो कोमी को हटाये जाने पर पत्रकारों के सवाल को मजाक में उड़ा दिया. इस सवाल पर कि कोमी की बर्खास्तगी का उनकी वार्ता पर असर पड़ेगा या नहीं, लावरोव ने जवाब दिया: "क्या उन्हें हटा दिया गया? आप जरूर मजाक कर रहे हैं."
व्हाइट हाउस में भी ऐसा बहुत कम ही मौकों पर हुआ है कि द्विपक्षीय वार्ता के लिए किसी देश के विदेश मंत्री का स्वागत खुद अमेरिकी राष्ट्रपति करें. 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से किसी टॉप प्रमुख रूसी नेता के साथ यह ट्रंप की पहली उच्च स्तरीय सार्वजनिक मुलाकात है.
दो दिन पहले ही ट्रंप ने अचानक एफबीआई के निदेशक जेम्स कोमी को पद से हटाने का आदेश दे दिया था. उनकी एजेंसी 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में रूसी दखलअंदाजी की जांच कर रही थी और इस बात का भी पता लगा रही थी कि ट्रंप के चुनाव अभियान के सहयोगी मॉस्को के साथ मिले हुए थे या नहीं. विपक्षी डेमोक्रैट्स ने ट्रंप पर कोमी को हटा कर इस पूरी जांच प्रक्रिया को धीमा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है.
ट्रंप ने लावरोव से अपनी मुलाकात को "बहुत, बहुत अच्छा" बताया और कहा कि उन दोनों के बीच सीरिया के गृह यु्द्ध पर चर्चा हुई. रूस सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद का समर्थन करता है. रूस आधिकारिक तौर पर सितंबर 2015 में सीरिया की लड़ाई में शामिल हुआ. इससे पहले वह सीरिया को हथियार सप्लाई कर रहा था. 2014 के आखिर में अमेरिका के नेतृत्व में जर्मनी समेत 60 देशों के गठबंधन ने भी आईएस और अन्य आतकंवादी गुटों के ठिकानों पर हवाई हमले शुरू किये.
सीरियाई सरकार के खिलाफ सीधे कार्रवाई करने के विरोधी रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अप्रैल 2017 में सीरियाई शहर खान शेखहुन में हुए संदिग्ध रासायनिक हमले के बाद अपना रूख बदला और सीरिया के हवाई ठिकानों पर मिसाइलें दागीं. लावरोव से बातचीत के बाद ट्रंप ने बताया, "हम सीरिया में हो रही हत्याएं रुकते हुए देखना चाहते हैं, जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी. और हम मिल कर उसी दिशा में प्रयास कर रहे हैं." एक महीने पहले अमेरिकी विदेश मंत्री टिलरसन रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मिले थे और अब लावरोव की अमेरिका यात्रा पर हुई वार्ता में उसी अजेंडा को आगे बढ़ाया गया है.
आरपी/एमजे (रॉयटर्स)
सीरिया में कौन किससे लड़ रहा है?
2011 में जब मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के एक बड़े हिस्से में बदलाव की हवा चली, तभी से सीरिया गृहयुद्ध से जूझ रहा है. सीरिया का संकट अब इतना उलझ गया है, कि भूलभुलैया जैसा नजर आता है. आइए इसे समझें.
असद के वफादार
2011 के बाद सीरिया की सेना ने बड़ी फूट का सामना किया है. उसी से टूटकर बागियों की फ्री सीरियन आर्मी बनी है. वहीं सीरिया की सेना को नेशनल डिफेंस फोर्स जैसे बहुत सारे असद समर्थक मिलिशिया गुटों का समर्थन प्राप्त है.
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उदार बागी
फ्री सीरियन आर्मी असद के खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शनों से जन्मी. अन्य जिहादी गुटों के साथ मिल कर वह राष्ट्रपति असद को सीरिया की सत्ता से बाहर करना चाहती है. इसे तुर्की और अमेरिका का भी कुछ समर्थन मिला, लेकिन बार बार पराजय से इसका मनोबल टूटा है. इसके बहुत से सदस्य आतकंवादी गुटों में चले गए.
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आतंक का नया चेहरा
क्षेत्र में जारी अफरातफरी का फायदा उठा कर आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने 2014 में सीरिया और इराक के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया. बर्बरता के लिए बदनाम यह संगठन अपनी खुद की "खिलाफत" कायम करना चाहता है. काले झंडे के तले वह खूब कत्लेआम और लोगों को प्रताड़ित करता है.
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दूसरे खिलाड़ी
आईएस के अलावा और कई जिहादी गुट भी सीरिया में लड़ रहे हैं. इनमें अल कायदा से जुड़े अल नुसरा फ्रंट का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. अल नुसरा आईएस के साथ साथ असद और उदारवादी बागियों से भी लड़ रहा है. जनवरी 2017 में उसने कई जिहादी गुटों को मिलाकर तहरीर अल शाम के नाम से गुट बनाया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Nusra Front on Twitter
रूस का साथ
रूस सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद का करीबी मित्र बन कर उभरा है. रूस आधिकारिक तौर पर सितंबर 2015 में सीरिया की लड़ाई में शामिल हुआ. इससे पहले वह सीरिया को हथियार सप्लाई कर रहा था. रूस को कई बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचना झेलनी पड़ी है क्योंकि उसके हवाई हमलों में आम लोग भी मारे गए हैं.
राष्ट्रपति असद का विरोध और रणनीतिक रूप से उदारवादी बागियों का समर्थन करने के बावजूद अमेरिका और नाटो देशों ने सीरिया के संघर्ष में अपने सैनिक जमीन पर नहीं उतारे. हालांकि 2014 के आखिर में अमेरिका के नेतृत्व में जर्मनी समेत 60 देशों के गठबंधन ने आईएस और अन्य आतकंवादी गुटों के ठिकानों पर हवाई हमले शुरू किए.
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देर आए, पर क्या दुरुस्त आए?
अप्रैल 2017 में सीरिया के शहर खान शेखहुन में संदिग्ध रासायनिक हमले में 50 से ज्यादा लोगों की मौत के बाद अमेरिका ने सीरिया के हवाई ठिकाने पर मिसाइलें दागीं. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप सीरियाई सरकार के खिलाफ सीधे कार्रवाई करने के विरोधी रहे हैं. लेकिन रासायनिक हमले के बाद उनका रुख पलट गया.
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सीमा पर सुरक्षा
सीरिया के पड़ोसी देश भी इस संकट में कूद गए क्योंकि वे अपनी सीमाओं पर सुरक्षा चाहते हैं. अमेरिकी गठबंधन में शामिल तुर्की असद का विरोधी है और उदार विद्रोहियों को समर्थन देता रहा है. हालांकि कुर्द लड़ाकों को अमेरिका का समर्थन तुर्की को फूटी आंख नहीं भाता है. कुछ कुर्द तो तुर्की में अपने लिए अलग इलाका मांगते हैं.
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लड़ाई के भीतर लड़ाई
सीरिया के उत्तर में सीरियाई कुर्दों और इस्लामी कट्टरपंथियों के बीच लड़ाई एक अलग ही संघर्ष बन गया है. तुर्की, सीरिया और इराक में रहने वाले कुर्द लोग अपने लिए अलग देश या फिर इन देशों में स्वायत्त इलाका चाहते हैं. तुर्की कुर्द लड़ाकों को आतंकवादी कहता है. कुर्द पेशमर्गा लड़ाके अमेरिकी गठबंधन की मदद कर रहे हैं.
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परोक्ष युद्ध
सीरिया के संकट में ईरान के शामिल हो जाने से पता चलता है कि यह दो धड़ों के लिए ताकत का अखाड़ा बन गया है. इसमें एक तरफ ईरान और रूस हैं तो दूसरी तरफ सऊदी अरब, तुर्की और अमेरिका. ईरान सीरिया के जरिए क्षेत्र में ताकत का संतुलन बनाना चाहता है. ईरान सीरिया के राष्ट्रपति असद को हर तरह की मदद दे रहा है.
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हल बहुत दूर
सीरिया में जारी लड़ाई को छह साल पूरे हो गए हैं लेकिन हल नजर नहीं आता. अलग अलग समूहों और गुटों का देश पर नियंत्रण है. सीरिया के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में कई बार वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कुछ हासिल नहीं हुआ है. आए दिन सीरिया के मोर्चों से तबाही और त्रासदियों के मंजर सामने आते हैं.