सीरिया संकट पर वियना बैठक की मुख्य बातें
३० अक्टूबर २०१५कौन कौन होगा बैठक में?
इस बैठक में करीब एक दर्जन देशों के प्रतिनिधि शामिल हैं. पहली बार सीरिया संकट के सभी अहम किरदार एक मेज पर मौजूद होंगे. एक तरफ हैं अमेरिका, सऊदी अरब और तुर्की, जो कि सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के विरोधी हैं. तो दूसरी ओर हैं असद समर्थक रूस और ईरान. पहली बार ईरान को सीरिया संकट पर बातचीत में शामिल किया गया है. इनके अलावा जर्मनी, फ्रांस, मिस्र और लेबनान के विदेश मंत्री भी बैठक में हिस्सा ले रहे हैं. सीरिया से आ रहे शरणार्थी यूरोपीय संघ के लिए बड़ी चुनौती हैं. इस कारण ईयू की इस बैठक में खासी रुचि है.
कौन कौन शामिल नहीं?
सीरिया की मुख्य विपक्षी पार्टी और वहां लड़ रहे विरोधियों को बैठक के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है. देश में विपक्षियों के संघ सीरियन नेशनल कोएलिशन के जॉर्ज साबरा ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि सीरिया के ही लोगों को बैठक में ना बुलाना दिखाता है कि बैठक को ले कर संजीदगी नहीं है, "यह बैठक को कमजोर बनाता है क्योंकि सीरिया के मुद्दों पर वहीं के लोगों की गैरहाजिरी में चर्चा होगी." बशर अल असद देश में मौजूद अपने हर विरोधी को आतंकवादी घोषित कर चुके हैं.
क्या है अहम मुद्दा?
सबसे बड़ा मुद्दा है राष्ट्रपति पद पर असद. पश्चिमी देश चाहते हैं कि असद सत्ता छोड़ दें, जबकि रूस और ईरान का मानना है कि असद को हटा कर समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता. अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने बैठक से पहले नई सरकार पर चर्चा होने की उम्मीद जताते हुए कहा, "जाहिर है, बहस का सबसे बड़ा मुद्दा यही है कि नई सरकार कैसी होगी, उसका गठन कैसे किया जाएगा और उसे किस तरह से चलाया जाएगा." हालांकि मॉस्को से मिल रहे समर्थन के मद्देनजर ऐसी संभावना कम ही नजर आती है कि असद अपने पद से इस्तीफा देंगे.
क्या हैं उम्मीदें?
जहां एक तरफ बैठक का मकसद सीरिया पर कोई हल निकालना है, वहीं दूसरी ओर जानकारों की मानें, तो अभी किसी भी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी. सीरिया मामलों के जानकार और पेरिस स्थित इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड स्ट्रैटेजिक रिलेशंस के करीम बितार का कहना है, "इसकी बहुत कम संभावना है कि वार्ता किसी नतीजे तक पहुंचेगी लेकिन यह एक नए चरण की शुरुआत जरूर है." जानकारों का यह भी कहना है कि ईरान के बिना किसी भी निष्कर्ष तक पहुंचना मुमकिन नहीं है.
कितनी तबाही?
सीरिया में पिछले चार साल से गृह युद्ध चल रहा है, जिसमें अब तक ढाई लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. देश के दो तिहाई हिस्से पर विरोधियों और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी गुटों का दबदबा है. शुरुआत बशर अल असद को हटाने के मकसद से हुई थी. धीरे धीरे विद्रोहियों के गुट अलग अलग धड़ों में बंटे और देश इन सब के बीच पिस गया. इन त्रासदियों से बचने के लिए सीरिया के लोग देश छोड़ कर जाने लगे और इसने शरणार्थी संकट का रूप ले लिया.
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