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कानून और न्यायभारत

सुप्रीम कोर्ट: सीवर सफाई के दौरान मौत पर 30 लाख मुआवजा

२० अक्टूबर २०२३

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम आदेश में कहा है कि सरकारी अधिकारी सीवर सफाई के दौरान मरने वालों के परिजनों को 30 लाख रुपये का मुआवजा देंगे.

गटर साफ करता एक मजदूर
गटर साफ करता एक मजदूरतस्वीर: CHANDAN KHANNA/AFP/Getty Images

भारत में मैन्युअल स्केवेंजिंग यानी इंसानों द्वारा सीवर की सफाई दौरान होने वाली मौतों पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश पारित किया है. 20 अक्टूबर को दिए अपने आदेश में न्यायालय ने कहा है कि जो लोग सीफर की सफाई के दौरान मारे जाते हैं उनके परिवार को सरकारी अधिकारियों को 30 लाख रुपये मुआवजा देना होगा.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने साथ ही कहा कि सीवर की सफाई के दौरान स्थायी विकलांगता का शिकार होने वालों को न्यूनतम मुआवजे के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्देश जारी किए

बेंच ने अपने आदेश में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से कहा कि सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी खत्म हो जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सफाई करते हुए कोई कर्मचारी अन्य किसी विकलांगता से ग्रस्त होता है तो उसे 10 लाख रुपये का मुआवजा मिलेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी मौतों को रोकने के लिए जरुरी कदमों से जुड़े कई निर्देश भी जारी किए हैं. जैसे-सरकारी एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने के लिए समन्वय करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं ना हों और हाईकोर्ट को सीवर से होनी वाली मौतों से जुड़े मामलों की निगरानी करने से ना रोका जाए.

क्या भारत में अब लोगों को गटर में नहीं उतरना पड़ेगा?

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हाथ से सीवर की सफाई खतरनाक

कई बार मजदूर सीवर में सफाई करने के लिए बिना किसी सुरक्षा उपकरण के उतर जाते हैं. ना तो उनके पास जहरीली गैस से बचाव के लिए मास्क होते हैं और ना ही सुरक्षा देने वाले कपड़े और दस्ताने. भारत में इंसानों से सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करवाना बंद करने की सालों से उठ रही मांगों के बावजूद यह अमानवीय काम जारी है.

इसी साल लोक सभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया था कि पिछले पांच सालों में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान पूरे देश में 339 लोगों की मौत के मामले दर्ज किये गए. इसका मतलब है इस काम को करने में हर साल औसत 67.8 लोगमारे गए.

सभी मामले 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से हैं. 2019 इस मामले में सबसे भयावह साल रहा. अकेले 2019 में ही 117 लोगों की मौत हो गई. कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन से गुजरने वाले सालों 2020 और 2021 में भी 22 और 58 लोगों की जान गई.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी खत्म हो जाएतस्वीर: Prakash Singh/AFP/Getty Images

सेफ्टी नियमों का पालन नहीं होता

2023 में अभी तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक नौ लोगों की मौत हो चुकी है. महाराष्ट्र में तस्वीर सबसे ज्यादा खराब है, जहां सीवर की सफाई के दौरान पिछले पांच सालों में कुल 54 लोग मारे जा चुके हैं. उसके बाद बारी उत्तर प्रदेश की है जहां इन पांच सालों में 46 लोगों की मौत हुई.

सरकार का कहना है कि इन लोगों की मौत का कारण सीवरों और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक तरीकों से सफाई करवाना. इसके साथ ही कानून में दी गई सुरक्षात्मक सावधानी को ना बरतना. सफाई के दौरान सीवरों से विषैली गैसें निकलती हैं जो व्यक्ति की जान ले लेती हैं.

भारत में इंसानों द्वारा नालों और सेप्टिक टैंकों की सफाई एक बड़ी समस्या है. 2013 में एक कानून के जरिए इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया था, लेकिन बैन अभी तक सिर्फ कागज पर ही है. देश में आज भी हजारों लोग सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई करने के उद्देश्य से उनमें उतरने के लिए मजबूर हैं.

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