भारत की राजधानी में सीवर सफाई के दौरान एक सफाईकर्मी की मौत और एक अन्य कर्मचारी के गंभीर रूप से बीमार होने की घटना सफाई के सिस्टम पर सवाल उठाती है. साथ ही यह सुरक्षा उपायों को लेकर लापरवाही का उदाहरण पेश करती है.
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दिल्ली के कड़कड़डूमा इलाके में दो फरवरी को सीवर सफाई के दौरान एक सफाईकर्मी की मौत हो गई जबकि एक और सफाईकर्मी गंभीर रूप से बीमार हो गया. सीवर की सफाई एक ऐसा काम है जिसको करने के लिए मशीनों की मदद ली जा सकती है लेकिन 21वीं सदी के भारत में आज भी सीवर को साफ करने के लिए इंसान उतर रहे हैं.
टॉयलेट और अन्य जगहों से आने वाला गंदा मिश्रण जब सीवर में फंस जाता है तो उसे साफ करने के लिए मजदूरों को अंदर भेजा जाता है और कई बार यह जानलेवा भी साबित होता है. कई बार मजदूर बिना किसी पर्याप्त सुरक्षा इंतजामों के सिर्फ एक रस्सी के सहारे गहरे सीवर में उतरते हैं और उसके भीतर खतरनाक गैस मौत की वजह बन जाती है.
सफाई कर्मचारी आंदोलन और रमोन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता वेजवाड़ा विल्सन डीडब्ल्यू से कहते हैं, "समस्या यह है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश का गंभीरता से पालन नहीं कर रही हैं. दोनों सरकारें सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान नहीं कर रही हैं."
विल्सन कहते हैं, "दिल्ली में सीवर लाइन कई किलोमीटर तक फैली हुई है, दिल्ली जैसे बड़े शहर के लिए सरकार को व्यापक कार्य योजना बनानी होगी ताकि सीवर लाइन में इस तरह के हादसे ना हो. लेकिन समस्या यह है कि दोनों सरकारों के लिए दलितों की जिंदगी कोई मायने नहीं रखती है. सरकार तो सीवर में होने वाली मौत की भी जिम्मेदारी नहीं लेती है और वह ठेकेदार पर ही इसका ठीकरा फोड़ती है."
क्या आप रसोई के साथ टॉयलेट शेयर करने के बारे में सोच सकते हैं. शायद नहीं. लेकिन हांगकांग में आज यह नजारा हकीकत बन चुका है. जगह की कमी ने लोगों की जिंदगी दूभर कर दी है.
तस्वीर: Benny Lam & SoCo
खाना बनाने की जगह
यहां टॉयलेट और चॉपिंग बोर्ड की दूरी में फासला बेहद ही कम है. तस्वीर में नजर आ रहा है कि कैसे चावल बनाने का कुकर, टीपॉट और किचन के दूसरे बर्तन टॉयलेट सीट के पास पड़े हुए है. हांगकांग के कई अपार्टमेंट में रसोई और टॉयलेट ऐसे ही एक साथ बने हुए हैं.
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किचन और बाथरूम
कैनेडियन फोटोग्राफर बेनी लेम ने हांगकांग में बने ऐसे अपार्टमेंट और यहां रह रहे लोगों की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया. इन तस्वीरों की सिरीज "ट्रैप्ड" के तहत एक गैरलाभकारी संस्था द सोसाइटी फॉर कम्युनिटी ऑर्गनाइजेशन (एसओसीओ) के साथ तैयार किया गया है. यह संस्था हांगकांग में गरीबी उन्मूलन और नागरिक अधिकारों के लिए काम करती है.
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जगह की कमी
75 लाख की आबादी वाले हांगकांग में अब जगह की कमी होने लगी है. यहां घरों की कीमतें आकाश छू रही हैं. प्रॉपर्टी के मामले में हांगकांग दुनिया का काफी महंगा शहर है. कई लोगों के पास इस तरह से रहने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा है. और शायद, लोगों ने भी ऐसे रहना सीख भी लिया है.
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अमानवीय स्थिति
एसओसीओ के मुताबिक, हांगकांग की जनगणना और सांख्यिकी विभाग की रिपोर्ट बताती है कि करीब दो लाख लोग ऐसे ही 88 हजार छोटे अपार्टमेंट में अपना जीवन गुजार रहे हैं. स्वयं को ऐसी स्थिति में ढालने के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है.
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दोगुनी कीमत
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हांगकांग के प्रमुख इलाकों में साल 2007 से 2012 के बीच अपार्टमेंट की कीमत दोगुनी हो गई. इन छोटे-छोटे कमरों में रहने वालों कई लोग कहते हैं कि उन्हें यहां जाने से डर भी लगता है. वहीं कुछ कहते हैं कि उनके लिए यहां रहना इसलिए मुश्किल है क्योंकि उनके पास यहां सांस लेने के लिए खुली हवा भी नहीं होती.
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एक गद्दे का घर
अपने एक गद्दे के अपार्टमेंट में एक किरायेदार टीवी देखते हुए. यहां कम आय वालों के पास ऐसे रहने के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं है. अब इन लोगों ने ऐसे रहना सीख लिया है. भले ही वे इस जगह खड़े होकर न तो अंगड़ाई ही ले पाते हो या न ही सुस्ता पाते हों. लेकिन यहां रहते-रहते इन लोगों की कॉकरोच और खटमल से दोस्ती जरूर हो जाती है.
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पिंजरा या ताबूत
फोटोग्राफर लैम दो साल तक हांगकांग के ऐसे ही गरीब इलाके को कैमरे में कैद करते रहे हैं. इन इलाकों में गरीब और अमीर के बीच की खाई बहुत गहरी है. इन फ्लैट्स को अकसर पिंजरे और ताबूत की संज्ञा दी जाती है. जो होटल, मॉल्स, टॉवर वाले चमचमाते हांगकांग का चौंकानेवाला चेहरा उजागर करता है.
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सरकारी मशीनरी
रहने का यह तरीका लोगों की मानसिक स्थिति पर भी बुरा असर डालता है. हालांकि कई लोग सालों से ऐसे ही यहां गुजर-बसर कर रहे हैं. सरकारी प्रक्रिया के तहत घर मिलने में यहां औसतन पांच साल का समय लगता है. लेकिन यह इंतजार एक दशक तक बढ़ना बेहद ही आम है.
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मानवीय गरिमा का अपमान
संयुक्त राष्ट्र मानता है कि ऐसे पिंजरों और ताबूत के आकार वाले घरों में रहना, मानवीय गरिमा के विरुद्ध है. हालांकि हांगकांग सरकार कहती है कि साल 2027 तक यहां करीब 2.80 लाख नए अपार्टमेंट बनाए जाएंगे. एसओसीओ कहता है कि जो लोग इन अमानवीय स्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं उनके लिए इस बीच भी कदम उठाए जाने चाहिए. (अयू पुरवानिग्से)
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सुरक्षा की चिंता नहीं
सीवर सफाई करने के लिए जो मजदूर भूमिगत नालों में उतरते हैं उन्हें बहुत कम पैसे दिए जाते हैं और कई बार सीवर सफाई के ठेकेदार अपने कर्मचारियों को बिना सुरक्षा उपकरण के ही काम करने को मजबूर करते हैं. हाथ से मैला उठाने की प्रथा को खत्म करने लिए काम करने वाले सफाई कर्मचारी आंदोलन के मुताबिक सीवर और सेप्टिक टैंकों में अब तक 1876 मौतें हो चुकी हैं. सीवर की सफाई का मानवीय तरीके से कराए जाने का लगातार विरोध होता रहा है.
कोर्ट की सख्ती के बाद सरकारी एजेंसियों ने मशीनें भी खरीदी हैं लेकिन इसके बावजूद गैरसरकारी स्तर पर ठेकेदार इंसानों से सीवर की सफाई करा रहे हैं. विल्सन कहते हैं, "बस हादसा भी हो जाए तो सरकार तत्काल मुआवजे देने पहुंच जाती है लेकिन जो हमें खुशहाली के साथ जीने में मदद कर रहे हैं उनकी जिंदगी की सुरक्षा करनी चाहिए. देश में दलितों की सुरक्षित जिंदगी को सरकार पूरी तरह से नजरअंदाज कर रही है. हमने सीवर में होने वाली हर मौत की रिपोर्ट सरकार को दी है."
कानून पर अमल नहीं
मैनुअल स्केवेंजिग को खत्म करने और इसे प्रतिबंधित करने वाला पहला कानून 1993 में बना जबकि उसके बाद दूसरा कानून 2013 में बना था. मैनुअल स्कैवेंजिंग कानून 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी खास परिस्थति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए कई तरह के नियमों का पालन करना होता है. अगर सफाईकर्मी किसी कारण से सीवर में उतरता भी है तो इसकी इजाजत इंजीनियर से होनी चाहिए और पास में ही एंबुलेंस की व्यवस्था भी होनी चाहिए ताकि किसी आपातकाल स्थिति में सफाईकर्मी को अस्पताल ले जाया जा सके.
इसके अलावा दिशा-निर्देश कहते हैं कि सफाईकर्मी की सुरक्षा के लिए ऑक्सीजन मास्क, रबड़ के जूते, सेफ्टी बेल्ट, रबड़ के दस्ताने, टॉर्च आदि होने चाहिए. तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में नए प्रयोग हो रहे हैं तो दूसरी ओर देश में बिना सुरक्षा उपकरणों के सफाईकर्मी सीवर में अपनी जान देने को मजबूर हैं. इसी पर विल्सन का कहना है, "केंद्र सरकार और राज्य सरकार के दिमाग में अभी भी कहीं ना कहीं छुआछूत मौजूद है और जिन लोगों की मौत हो रही है क्या सरकार उन्हें अपना नागरिक नहीं मानती है."
हमें लगता है कि घर में सबसे ज्यादा जीवाणु टॉयलेट सीट पर होते हैं, लेकिन घर में ही हमारे इस्तेमाल की कई दूसरी चीजें हैं जो इससे कहीं ज्यादा गंदी होती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
स्मार्टफोन या टैबलेट
2013 में एक ब्रिटिश टीम ने 30 टैबलेट, 30 मोबाइल फोन और ऑफिस की टॉयलेट सीट का परीक्षण किया. टैबलेट में स्टैफाइलोकोकस बैक्टीरिया के 600 यूनिट निकले, मोबाइल फोन में 140 यूनिट और टॉयलेट सीट में 20 यूनिट से भी कम. इस बैक्टीरिया से त्वचा संक्रमित हो सकती है.
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पानी का नल
बेसिन में पानी के नलके में टॉयलेट सीट से 20 गुना ज्यादा बैक्टीरिया होने की संभावना रहती है. किचन का नल और भी ज्यादा इस्तेमाल होता है, इसलिए जरूरी है कि इन्हें कीटाणुनाशक की मदद से साफ किया जाए.
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बैग
रिसर्चरों ने 25 बैगों पर टेस्ट किया और पाया कि बैग में टॉयलेट सीट के मुकाबले तीन गुना ज्यादा बैक्टीरिया होने की संभावना होती है. नियमित रूप से इस्तेमाल होने वाले बैग टॉयलेट से 10 गुना ज्यादा गंदे हो सकते हैं. बैग के स्ट्रैप में सबसे ज्यादा बैक्टीरिया जमा होते हैं.
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दांतों का ब्रश
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के डॉक्टर फिलिप टिएर्नो जूनियर के मुताबिक जब आप टॉयलेट में फ्लश करते हैं तो पानी के छींटे 6 मीटर तक जा सकते हैं. यानि अगर आपका टूथब्रश उसी बाथरूम में कुछ ही फासले पर खुला रखा है तो उस पर गंदगी बैठने का भारी खतरा है.
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लिफ्ट का बटन
टोरंटो यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च के मुताबिक लिफ्ट के बटन पर टॉयलेट सीट से ज्यादा बैक्टीरिया होते हैं. सऊदी अरब में हुई एक अन्य रिसर्च के मुताबिक 97 फीसदी लिफ्ट के बटन दूषित होते हैं. 10 में से एक लिफ्ट में बटन आपको फूड प्वाइजनिंग और साइनस का इंफेक्शन भी दे सकते हैं.
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तौलिया
इनीशियल वॉशरूम हाइजीन के निदेशक डॉक्टर पीटर बैरट के मुताबिक बैक्टीरिया को विकास के लिए तीन चीजों की जरूरत होती है. नमी, उच्च तापमान और जैविक पदार्थ. उन्होंने बताया कि तौलिया गीला तो होती ही है, साथ ही उस पर त्वचा के कुछ बारीक कण भी चिपक जाते हैं जो कि सूक्ष्मजीवों के लिए भोजन का काम करती है. तैलिये को हफ्ते में एक बार गर्म पानी से धोना चाहिए.
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एटीएम मशीन
एटीएम मशीन पर आप जिस जिस बटन को दबाते हैं उन सभी पर करीब 120 सूक्ष्मजीव मौजूद होते हैं. एरिजोना यूनिवर्सिटी के मुताबिक इनमें इंफ्लुएंजा वायरस भी शामिल है.
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कालीन
बैक्टीरिया के लिए कालीन रहने की बढ़िया जगह है. रीडर्स डाइजेस्ट के मुताबिक इंसान हर घंटे त्वचा की करीब 15 लाख कोशिकाएं खोता है. और कालीन में प्रति वर्ग इंच में दो लाख बैक्टीरिया होते हैं. यानि कालीन परजीवी बैक्टीरिया के लिए खानपान की बढ़िया जगह है. कालीन को साल में एक बार भाप से साफ करना चाहिए.
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कटिंग बोर्ड
हाइजीन विशेषज्ञ डॉक्टर गेर्बा ने फैयरफैक्स मीडिया संस्थान को बताया कि सब्जी काटने वाले कटिंग बोर्ट पर टॉयलेट सीट के मुकाबले 200 गुना ज्यादा बैक्टीरिया होते हैं. बोर्ड पर कच्चा खाना काटने से बैक्टीरिया को उस पर पलने का मौका मिलता है.
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चुनावी मुद्दा और प्रतिबद्धता
दिल्ली में इस वक्त विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और यह भी एक मुद्दा है. आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में कहा है कि सीवर साफ करने सीवरके दौरान कर्मचारी की मौत होने पर एक करोड़ का मुआवजा मिलेगा. हालांकि विल्सन कहते हैं कि सिर्फ घोषणा नहीं जमीन पर भी इसे अमल पर लाने की जरूरत है.
दूसरी ओर इस साल के बजट में केंद्र सरकार ने कहा है कि वह स्वच्छता के क्षेत्र में खुले में शौच मुक्त भारत के लिए प्रतिबद्ध है. बजट में स्वच्छ भारत मिशन के लिए 2020-21 में कुल 12,300 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. साथ ही सीवर सिस्टमों और सेप्टिक टैंकों की सफाई को मैनुअल तरीके से न करने को सुनिश्चित करने के लिए ऐसे कार्यों के लिए आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय की तरफ से उचित तकनीक की पहचान की व्यापक पैमाने पर मंजूरी के लिए वित्तीय सहायता देने की बात कही गई है.