सुनामी ने साल 2011 में जापान में भीषण तबाही मचायी थी. इसका असर इंसानी जीवन पर ही नहीं बल्कि समंदर के भीतर रहने वाले जीव-जंतुओं पर भी पड़ा. एक शोध के मुताबिक जापान की करीब 289 प्रजातियां अब अमेरिकी तटों पर पहुंच गईं हैं.
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शोधकर्ताओं का दावा है कि उन्हें 289 ऐसी प्रजातियों के बारे में पता चला है जो सुनामी के दौरान जापान से निकली थीं और अमेरिका में पश्चिमी तट तक पहुंचने में सफल रहीं. इन प्रजातियों में मछलियां, घोंघे, कीड़े, केकड़े और शैवाल प्रमुख हैं. स्टडी के मुताबिक इनमें से कुछ समंदर के भीतर जिंदा रहे तो कुछ का जन्म रास्ते में ही हुआ. अमेरिका के प्रशांत तट पर इस स्टडी का नेतृत्व कर रहे जेम्स कार्ल्टन के मुताबिक, जीवों की ये प्रजातियां 600 अलग-अलग वस्तुओं के भीतर मिलीं हैं. इन वस्तुओं में प्लास्टिक के छोटे टुकड़ों से लेकर बड़े-बड़े जहाज भी शामिल हैं. लेकिन सवाल है कि ये जीव-जंतु इन वस्तुओं में भीतर कैसे पहुंचे?
साइंस पत्रिका में छपे इस शोध मु्ताबिक, जब सुनामी की लहरों ने इन वस्तुओं को समंदर में धकेला होगा, तो लहरों के तेज प्रवाह ने जीव-जंतुओं को इनके साथ 7000 किमी की लंबी यात्रा पर भेज दिया होगा. शोध में शामिल ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी में शामिल जॉन कैंपमेन अपने अनुभव के बारे में कहते हैं कि जब उन्हें जीवों की इस यात्रा के बारे में समझ आया तो उन्हें अंचभा तो हुआ लेकिन एक चिंता भी हुई. उन्होंने बताया, "शैवालों और सीपियों की इन खास प्रजातियों का किसी नये क्षेत्र में आना बीमारी फैला सकता है और वहां रहने वाली मूल प्रजातियों के लिए भी खतरा बन सकता है." हालांकि वैज्ञानिकों को अब तक यह समझ नहीं आया है कि क्या इन जापानी प्रजातियों ने वाकई इस तट में अपना स्थायी निवास विकसित कर लिया है या ये अब भी यहां अस्थायी प्रवास पर हैं.
सूनामी के सबक
11 मार्च 2011 को समुद्र के भीतर रिक्टर स्केल पर 9 तीव्रता का भूकंप भीषण सूनामी लेकर आया. इसके क्या कुछ सबक थे देखें इन तस्वीरों में.
तस्वीर: Rohan Kelly/Daily Telegraph
फुकुशिमा: एक स्थाई सबक
2011 की सूनामी तब और भयानक हो गई थी जब समुद्र से उठे तूफान और भीषण लहरों की चपेट में जापान के फुकुशिमा का परमाणु संयंत्र भी आ गया. परमाणु ऊर्जा के पक्षधर इसे बेहद सुरक्षित और पर्यावरण सम्मत बताते थे. लेकिन सूनामी से बर्बाद हो फुकुशिमा संयंत्र से पैदा हुई रेडियो सक्रियता ने इन दावों को गलत साबित कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K.Kamoshida
परमाणु दुर्घटना
9 तीव्रता वाले भूकंप से उपजी सूनामी के कारण जापान के उत्तरी तटीय इलाके में मौजूद फुकुशिमा परमाणु संयंत्रों पर भी शक्तिशाली तूफान और लहरों का हमला हुआ. रिएक्टरों में टूट फूट हुई और परमाणु छड़ों के गलने से निकले विकिरणों के कारण जापान को भीषण परमाणु दुर्घटना झेलनी पड़ी.
तस्वीर: Getty Images/C. Furlong
परमाणु ऊर्जा: नो थैंक्स!
कुछ देशों ने फुकुशिमा की तबाही से सबक लिया और परमाणु ऊर्जा से परहेज की बात की. केवल जर्मनी ने परमाणु ऊर्जा को पूरी तरह नकार दिया और सौर तथा पवन ऊर्जा के विकल्प की ओर ज्यादा निवेश करना शुरू किया. जर्मनी में अभी भी 8 परमाणु बिजलीघर काम कर रहे हैं. कभी 20 हुआ करते थे. अगले 6 सालों में उन्हें भी बंद कर दिया जाएगा.
तस्वीर: picture-alliance/W. Moucha
आपदा या हादसा
हालांकि ये सबक सारे देशों ने नहीं लिए हैं. बहुत से देशों में फुकुशिमा को मुख्य रूप से प्राकृतिक आपदा समझा गया. खुद जापान ने कुछ साल परमाणु बिजली घरों को बंद करने के बाद फिर से परमाणु संयंत्रों को चालू कर दिया है. फ्रांस और अमेरिका ने कभी इसके बारे में सोचा ही नहीं. सिर्फ जर्मनी ने फुकुशिमा के सबक को लागू किया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/E. Dunand
परमाणु संयंत्र के बदले साहसिक पार्क
नीदरलैंड से लगी जर्मनी की सीमा के पास ही काल्कर के एक पुराने न्यूक्लियर पावर प्लांट को साहसिक खेलों के लिए एक रोचक पार्क में बदल दिया गया है. ये सबक सुनामी से भी पहले का है. यूक्रेन में हुए चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र हादसे की तबाही को देखते हुए पूरी तरह तैयार हो गए इस परमाणु संयंत्र को कभी भी इस्तेमाल न करने का फैसला लिया गया.
तस्वीर: Internationale Filmfestspiele Berlin
कुडनकुलम का विरोध
भारत में भी समुद्रतटीय राज्य तमिलनाडु के कुडनकुलम में भी रूस की मदद से 2000 मेगावाट का परमाणु संयंत्र लगाया गया है. इस परमाणु संयंत्र का भी स्थानीय लोगों और पर्यावरणवादियों की ओर से भारी विरोध हुआ है. विरोध कर रहे लोग फुकुशिमा की दुर्घटना और तबाही से सबक लेने की बात कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Arun Sankar K.
पीड़ितों का विरोध
भारत दिसंबर 1984 में पहले ही भोपाल गैस त्रासदी झेल चुका है. जिसमें यूनियन कार्बाइड के कारखाने से हुए गैस रिसाव के चलते करीब 3,787 लोग मारे गए थे और लाखों लोगों को भयानक रोगों से जूझना पड़ा. इसके चलते भोपाल गैस पीड़ित भी कुडनकुलम में लगाए गए परमाणु संयंत्र का विरोध कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
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वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे जीवों का प्लास्टिक के जरिये आना अब भी बना हुआ है क्योंकि लकड़ियों और अन्य जैविक पदार्थों का सड़ना लगभग साल 2014 के बाद समाप्त हो गया है. वैज्ञानिकों ने संभावना जतायी है कि आने वाले सालों में समंदरों के भीतर होने वाली यह अदला-बदली और बढ़ेगी जिसका एक बड़ा कारण समंदर में प्लास्टिकों का बढ़ना है. हर साल समुद्र तट पर एक करोड़ टन प्लास्टिक पहुंच जाता है और भविष्य में इसमें इजाफे के ही संकेत मिलते हैं. दूसरा कारण है जलवायु परिवर्तन, जो भविष्य में होने वाले प्राकृतिक बदलावों की ओर इशारा करता है. भूकंप, तूफान, बाढ़ आदि आपदायें स्थानीय जीवों के स्थानांतरण में बहुत बड़ी भूमिक निभा रही हैं.