साल 2020 तक युगांडा में इस योजना में विशेष केलों के किस्मों को उगाने के उपाय होंगे. यह केले अल्फा और बीटा कैरोटिन से भरपूर होंगे जिसे शरीर विटामिन में तब्दील करता है. बीटा कैरोटिन एक पिग्मेंट है, जो पौधों में पाया जाता है. बीटा कैरोटिन शरीर की विटामिन ए की 50 प्रतिशत आवश्यकता पूरी कर देता है. यह फल, सब्जियों और साबुत अनाज में पाया जाता है. प्रोजेक्ट प्रमुख प्रोफेसर जेम्स डेल के मुताबिक, "अच्छा विज्ञान यहां युगांडा के केलों जैसे प्रमुख फसलों में विटामिन ए समृद्ध बनाकर एक बड़ा बदलाव कर सकता है. गरीब और निर्वाह खेती करने वाली आबादी को पोषण संवर्धित भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है."
ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के इस प्रोजेक्ट को बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से सहायता प्राप्त है. साल के अंत तक यूनिवर्सिटी निर्णायक परिणाम देखने की उम्मीद कर रही है. प्रोफेसर डेल के मुताबिक, "हमें पता है कि हमारा विज्ञान काम करेगा. केले में जो जीन गए हैं, उन्हें हमने यहां यूनिवर्सिटी में ही तैयार किया है." डेल के मुताबिक पूर्वी अफ्रीका में केले का इस्तेमाल खाना पकाने के लिए प्रमुख भोजन के तौर पर किया जाता है लेकिन इसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों का स्तर कम होता है, खासकर के विटामिन ए और आयरन. वे कहते हैं, "विटामिन ए की कमी का परिणाम भयानक है. हर साल साढ़े छह लाख से सात लाख बच्चे मर जाते हैं और कम से कम तीन लाख बच्चे अंधे हो जाते हैं."
यूरोपीय संघ में एक से एक कानून हैं. फिर चाहे केले का आकार हो या शहद की तरलता, सब किताबों में लिखा हुआ है. जरा भी इधर उधर होने का मतलब है गड़बड़. देखें तस्वीरों में यूरोपीय संघ के अजीबोगरीब कानून.
केला कानून के मुताबिक, यूरोपीय संघ में आयात किए जाने वाले केले या उगाए जाने वाले केले कम से कम 14 सेंटीमीटर लंबे और 2.7 सेंटीमीटर मोटे होने चाहिए. फल कटा पिटा नहीं होना चाहिए और पूरा पका भी नहीं.
तस्वीर: Fotolia/Santiago Cornejoशायद कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि शहद सुचालक होता है, यानी इससे करंट पार हो सकता है. लेकिन ईयू ने सोचा कहीं ब्रेकफास्ट के दौरान किसी को करंट न लग जाए. इसलिए तय कर दिया गया कि शहद की सुचालकता 0.8 माइक्रोसीमन्स प्रति सेंटीमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
तस्वीर: Fotolia/Jag_czऊर्जा बचाने के लिए यूरोपीय संघ में पारंपरिक गोल बल्बों पर प्रतिबंध लगा दिया गया. लेकिन एलईडी लाइट जैसे दूसरे बल्बों को भी यूं ही कहीं नहीं फेंका जा सकता, क्योंकि उनमें जहरीला पारा होता है. मुश्किल भले ही हो पर कम से कम ये नए बल्ब पुराने वालों की तरह रोशनी तो देते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaजर्मनी का उत्तरी हिस्सा समंदर और रेत के लिए मशहूर है. ना तो यहां कोई पहाड़ हैं और इसीलिए ना ही कोई केबल कार. यहां सबसे ज्यादा ऊंचाई भी सिर्फ 168 मीटर ही है. पर फिर भी यहां यूरोपीय संघ का रोपवे कानून लागू होता है. कारण? शायद कभी कोई यहां रोपवे बनाना चाहे, तो उसे बनाने के नियम तो होना ही चाहिए ना.
तस्वीर: Fotolia/JM Fotografieप्लास्टिक पीले डब्बे में, पेपर नीले में, रिसाइकल नहीं किए जा सकने वाला कचरा भूरे डब्बे में. कम से कम जर्मनी में तो यही कानून है. लेकिन यूरोपीय संघ के दूसरे देशों में ये डब्बे दूसरे रंग के हैं, नीले की बजाए हरा, पीले की बजाए लाल. कहीं तो सारा कचरा एक साथ जाता है. इसके लिए भी कानून बनाना गलत नहीं होगा.
तस्वीर: Fotolia/grafikplusfotoयूरोपीय संघ के अलग अलग देशों में अलग अलग प्लग अडाप्टर चाहिए. क्योंकि ब्रिटेन, माल्टा, आयरलैंड और साइप्रस जैसे कई ईयू देश हैं जहां यूरोप्लग जाता ही नहीं. यहां मानक की जरूरत है ताकि एक ही प्लग सब जगह चल सके. अब ईयू हर कंपनी के मोबाइल फोन चार्जर एक जैसे बनाने पर कानून बनाने जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaरोम, पैरिस, लंदन, वॉरसा, जागरेब, स्टॉकहोम या बर्लिन सभी जगह ट्रैफिक लाइट पर दिखाई जाने वाली आकृति बिलकुल अलग अलग हैं. जर्मनी के एकीकरण के बाद 1990 में पूर्वी हिस्से का ये आम्पेलमेंशन लुप्त होने की कगार पर था. इसके लिए ईयू में कोई नियम नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaहर देश के पोस्ट बॉक्स भी अलग अलग हैं. यूरोपीय संघ में इनके लिए कोई नियम नहीं है. इसलिए हर देश का सांस्कृतिक इतिहास पोस्ट बॉक्स में दिखाई देता है.
शोधकर्ताओं ने फैसला किया कि मुख्य भोजन को भरपूर बनाना ही समस्या को कम करने का बेहतर तरीका है. संशोधित केले बाहर से तो दिखने में वैसे ही हैं लेकिन अंदर का गूदा क्रीम रंग के मुकाबले ज्यादा नारंगी है.
डेल कहते हैं कि यह कोई समस्या नहीं हो सकती है. वे कहते हैं कि एक बार जब युगांडा में आनुवांशिक रूप से संशोधित केले को व्यावसायिक खेती की मंजूरी मिल जाती है तो यही तकनीक संभावित है कि फसलों में भी विस्तारित की जा सकती है. तकनीक का इस्तेमाल रवांडा, केन्या और तंजानिया में मुमकिन हो पाएगा. डेल के मुताबिक पश्चिम अफ्रीका में किसान केले की खेती करते हैं और यही तकनीक दूसरे तरह की खेती में ट्रांसफर की जा सकती है.
एए/एमजे (एएफपी)