सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके अनाधृकित जासूसी के आरोपों की जांच करने के लिए एक समिति नियुक्त कर दी है. तकनीकी विशेषज्ञों की यह समिति अदालत की निगरानी में काम करेगी.
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यह आदेश सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों वाली एक पीठ ने दिया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्या कांत और जस्टिस हिमा कोहली शामिल थे. समिति में तीन तकनीकी विशेषज्ञ होंगे और सेवानिवृत्त जज जस्टिस आरवी रवींद्रन समिति के काम की देखरेख करेंगे.
समिति सभी आरोपों का अध्ययन करेगी और अदालत को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. सुप्रीम कोर्ट मामले पर आठ सप्ताह बाद फिर से सुनवाई करेगा. सुनवाई 12 याचिकाओं पर हो रही है जिन्हें एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, पत्रकार एन राम, शशि कुमार और परंजॉय गुहा ठाकुरता, तृणमूल कांग्रेस के नेता यशवंत सिन्हा और एडीआर संस्था के सह-संस्थापक जगदीप छोकर जैसे लोगों ने दायर किया था.
क्या है मामला
पेगासस एक इस्रायली जासूसी सॉफ्टवेयर है. नवंबर 2019 में सामने आया कि इसकी मदद से व्हाट्सऐप के जरिए भारत में कम से कम 24 नागरिकों की जासूसी की गई. फिर जुलाई 2021 में एक वैश्विक मीडिया इन्वेस्टिगेशन में सामने आया कि पेगासस के जरिए भारत में 300 से ज्यादा मोबाइल नंबरों की जासूसी की गई.
इनमें नरेंद्र मोदी सरकार में उस समय कार्यरत दो मंत्री, विपक्ष के तीन नेता, एक संवैधानिक अधिकारी, कई पत्रकार और कई व्यापारी शामिल थे. पेगासस की मालिक इस्राएली कंपनी एनएसओ यह मानती है कि यह एक स्पाईवेयर यानी जासूसी का सॉफ्टवेयर है और इसका इस्तेमाल फोन को हैक करने के लिए किया जाता है.
लेकिन कंपनी ने यह भी बताया कि वो इस सॉफ्टवेयर को सिर्फ सरकारों और सरकारी एजेंसियों को ही बेचती है. भारत सरकार पर भी इसका इस्तेमाल करने के आरोप लगे हैं लेकिन सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है.
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राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर
कई अलग अलग केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों ने कहा है कि उन्होंने कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया लेकिन सरकार ने अभी तक यह खुल कर नहीं कहा है कि किसी भी केंद्रीय मंत्रालय या विभाग ने इसका इस्तेमाल नहीं किया है. राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए सरकार इस मामले पर और जानकारी देने से भी इनकार करती आई है.
लेकिन जांच समिति बनाने के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को नकार दिया है. पीठ ने कहा, "राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं का हवाला देकर सरकार को हर बार खुली छूट नहीं दी जा सकती. न्यायिक समीक्षा के खिलाफ कोई भी बहुप्रयोजनीय प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता."
अदालत ने यह भी कहा कि सरकार को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त समय मिला लेकिन उसने सिर्फ सीमित स्पष्टीकरण दिया. इसलिए अब अदालत के पास याचिकाकर्ताओं की अपील मान लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. अपने आदेश में पीठ ने निजता के अधिकार के महत्व को भी रेखांकित किया.
संविधान का सम्मान
जजों ने कहा, "नागरिकों के मूल अधिकारों के हनन के आरोप लगे हैं. इसका एक डरावना असर हो सकता है. विदेशी एजेंसियों के शामिल होने के आरोप लगाए जा रहे हैं."
पीठ ने यह भी कहा, "एजेंसियां आतंकवाद से लड़ने के लिए जासूसी का इस्तेमाल करती हैं. इस दौरान निजता का उल्लंघन करने की भी जरूरत पड़ सकती है. तकनीक का इस्तमाल संवैधानिक प्रक्रिया के तहत ही होना चाहिए."
भारत में 10 एजेंसियों को कानूनी रूप से फोन टैप करने का अधिकार है, लेकिन इसके लिए एक प्रक्रिया तय की गई है जिसका पालन आवश्यक है. इनमें सीबीआई, एनआईए, आईबी, आरएडब्ल्यू, एनसीबी, ईडी, सीबीडीटी, डीआरआई, सिग्नल इंटेलिजेंस निदेशालय और दिल्ली पुलिस शामिल हैं.
कौन कौन सी एजेंसियां कर सकती हैं भारत में फोन टैप?
फिल्मों में अक्सर पुलिस को लोगों के फोन टैप करते हुए दिखाया जाता है, लेकिन क्या ये इतना आसान है? जानिए भारत में वो कौन सी 10 एजेंसियां हैं जिन्हें कानूनन फोन टैप करने का अधिकार है.
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केंद्रीय अंवेषण ब्यूरो (सीबीआई)
ये देश की प्रमुख जांच संस्था है जो भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से लेकर, संगठित जुर्म, आर्थिक जुर्म और अंतरराष्ट्रीय जुर्म तक के मामलों की जांच कर सकती है. ये इंटरपोल से संपर्क रखने वाली भारत की एकमात्र संस्था है. ये कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के अधीन है.
तस्वीर: Central Bureau of Investigation
राष्ट्रीय अंवेषण अभिकरण (एनआईए)
ये देश में आतंकवाद का मुकाबला और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अन्य मामलों की देखरेख करने वाली मुख्य संस्था है. इसका गठन 2008 में हुआ था और ये भी गृह मंत्रालय के अधीन है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी)
ये भारत की प्रमुख इंटेलिजेंस एजेंसी है. इसका काम देश की आतंरिक सुरक्षा से संबंधी जानकारी बटोरना है. ये गृह मंत्रालय के अधीन होती है. टैपिंग के हर मामले के लिए केंद्रीय गृह सचिव और राज्यों में राज्य के गृह सचिव की अनुमति अनिवार्य होती है.
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कैबिनेट सचिवालय (रॉ)
ये भारत की विदेशी इंटेलिजेंस संस्था है और इसका काम विदेशों से इंटेलिजेंस एकत्रित करना, आतंकवाद का मुकाबला करना और देश के सामरिक हितों की रक्षा करना है. इसके बजट से लेकर संचालन तक गुप्त होता है. ये कैबिनेट सचिवालय के अधीन है और सीधा प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है.
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नारकॉटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी)
ये भारत में नशीली दवाओं और मादक पदार्थों से संबंधित कानूनों का पालन सुनिश्चित कराने वाले केंद्रीय संस्था है. इसका काम नशीली दवाओं के व्यापार को रोकना है. ये भी गृह मंत्रालय के अधीन होती है.
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प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)
इसे एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट भी कहा जाता है और इसका काम है आर्थिक इंटेलिजेंस एकत्रित करना और देश में आर्थिक जुर्म से लड़ना. ये वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन होती है.
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी)
ये देश में प्रत्यक्ष कर से संबंधित मामलों की शीर्ष संस्था है. ये केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963 के तहत स्थापित एक सांविधिक प्राधिकरण है. इसका अध्यक्ष विशेष सचिव होता है और राजस्व सचिव के अधीन होता है.
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राजस्व सूचना निदेशालय (डीआरआई)
ये देश की शीर्ष तस्करी-विरोधी संस्था है, जिसका काम निषिद्ध वस्तुओं के व्यापार को रोकना, सीमा शुल्क की चोरी के मामलों की जांच और इंटेलिजेंस एकत्रित करना है. ये भी वित्त मंत्रालय के अधीन होती है.
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सिग्नल इंटेलिजेंस निदेशालय
ये एक सैन्य इंटेलिजेंस संस्था है और ये थल सेना, वायु सेना और जल सेना तीनों के लिए काम करती है. इसका काम ही होता है दुश्मनों के संचार को इंटरसेप्ट करना. ये रक्षा मंत्रालय के अधीन होती है.
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दिल्ली पुलिस कमिश्नर
दिल्ली पुलिस कमिश्नर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की पुलिस फोर्स के मुखिया होते हैं और उनकी शक्तियां किसी भी राज्य के पुलिस डायरेक्टर जनरल जैसी होती हैं. दिल्ली पुलिस उप-राज्यपाल के जरिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन होती है.