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सुप्रीम कोर्ट ने दिया पेगासस मामले में जांच का आदेश

चारु कार्तिकेय
२७ अक्टूबर २०२१

सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके अनाधृकित जासूसी के आरोपों की जांच करने के लिए एक समिति नियुक्त कर दी है. तकनीकी विशेषज्ञों की यह समिति अदालत की निगरानी में काम करेगी.

Symbolfoto Pegasus Projekt
तस्वीर: Jean-François Frey//L'ALSACE/PHOTOPQR/MAXPPP7/picture alliance

यह आदेश सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों वाली एक पीठ ने दिया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्या कांत और जस्टिस हिमा कोहली शामिल थे. समिति में तीन तकनीकी विशेषज्ञ होंगे और सेवानिवृत्त जज जस्टिस आरवी रवींद्रन समिति के काम की देखरेख करेंगे.

समिति सभी आरोपों का अध्ययन करेगी और अदालत को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. सुप्रीम कोर्ट मामले पर आठ सप्ताह बाद फिर से सुनवाई करेगा. सुनवाई 12 याचिकाओं पर हो रही है जिन्हें एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, पत्रकार एन राम, शशि कुमार और परंजॉय गुहा ठाकुरता, तृणमूल कांग्रेस के नेता यशवंत सिन्हा और एडीआर संस्था के सह-संस्थापक जगदीप छोकर जैसे लोगों ने दायर किया था.

क्या है मामला

पेगासस एक इस्रायली जासूसी सॉफ्टवेयर है. नवंबर 2019 में सामने आया कि इसकी मदद से व्हाट्सऐप के जरिए भारत में कम से कम 24 नागरिकों की जासूसी की गई. फिर जुलाई 2021 में एक वैश्विक मीडिया इन्वेस्टिगेशन में सामने आया कि पेगासस के जरिए भारत में 300 से ज्यादा मोबाइल नंबरों की जासूसी की गई.

'फोर्बिडन स्टोरीज' संस्था की टीम जिनके नेतृत्व में पेगासस मामले को उजागर किया गया तस्वीर: European Parliament/AA/picture alliance

इनमें नरेंद्र मोदी सरकार में उस समय कार्यरत दो मंत्री, विपक्ष के तीन नेता, एक संवैधानिक अधिकारी, कई पत्रकार और कई व्यापारी शामिल थे. पेगासस की मालिक इस्राएली कंपनी एनएसओ यह मानती है कि यह एक स्पाईवेयर यानी जासूसी का सॉफ्टवेयर है और इसका इस्तेमाल फोन को हैक करने के लिए किया जाता है.

लेकिन कंपनी ने यह भी बताया कि वो इस सॉफ्टवेयर को सिर्फ सरकारों और सरकारी एजेंसियों को ही बेचती है. भारत सरकार पर भी इसका इस्तेमाल करने के आरोप लगे हैं लेकिन सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है.

राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर

कई अलग अलग केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों ने कहा है कि उन्होंने कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया लेकिन सरकार ने अभी तक यह खुल कर नहीं कहा है कि किसी भी केंद्रीय मंत्रालय या विभाग ने इसका इस्तेमाल नहीं किया है. राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए सरकार इस मामले पर और जानकारी देने से भी इनकार करती आई है.

कोलकाता में पेगासस के इस्तेमाल के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस का प्रदर्शनतस्वीर: Vishal Kapoor/Pacific Press/picture alliance

लेकिन जांच समिति बनाने के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को नकार दिया है. पीठ ने कहा, "राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं का हवाला देकर सरकार को हर बार खुली छूट नहीं दी जा सकती. न्यायिक समीक्षा के खिलाफ कोई भी बहुप्रयोजनीय प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता."

अदालत ने यह भी कहा कि सरकार को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त समय मिला लेकिन उसने सिर्फ सीमित स्पष्टीकरण दिया. इसलिए अब अदालत के पास याचिकाकर्ताओं की अपील मान लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. अपने आदेश में पीठ ने निजता के अधिकार के महत्व को भी रेखांकित किया.

संविधान का सम्मान

जजों ने कहा, "नागरिकों के मूल अधिकारों के हनन के आरोप लगे हैं. इसका एक डरावना असर हो सकता है. विदेशी एजेंसियों के शामिल होने के आरोप लगाए जा रहे हैं."

पेगासस और अन्य मुद्दों पर सरकार के खिलाफ कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शनतस्वीर: Prakash Singh/Getty Images/AFP

पीठ ने यह भी कहा, "एजेंसियां आतंकवाद से लड़ने के लिए जासूसी का इस्तेमाल करती हैं. इस दौरान निजता का उल्लंघन करने की भी जरूरत पड़ सकती है. तकनीक का इस्तमाल संवैधानिक प्रक्रिया के तहत ही होना चाहिए."

भारत में 10 एजेंसियों को कानूनी रूप से फोन टैप करने का अधिकार है, लेकिन इसके लिए एक प्रक्रिया तय की गई है जिसका पालन आवश्यक है. इनमें सीबीआई, एनआईए, आईबी, आरएडब्ल्यू, एनसीबी, ईडी, सीबीडीटी, डीआरआई, सिग्नल इंटेलिजेंस निदेशालय और दिल्ली पुलिस शामिल हैं.

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