सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बीजेपी-कांग्रेस का चंदा मुश्किल में
मारिया जॉन सांचेज
१२ अप्रैल २०१९
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला चुनावी बॉन्ड को बनाए रखने के पक्ष में है लेकिन उसने केंद्र सरकार की इस दलील को स्वीकार नहीं किया है कि राजनीतिक दलों को धन देने वालों की पहचान पूरी तरह गोपनीय रखी जाए.
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सरकार का पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने कहा था कि मतदाताओं को यह जानने की कोई जरूरत नहीं है कि राजनीतिक दलों को कहाँ से धन मिलता है. उनका यह भी कहना था कि यदि राजनीतिक दलों को दानदाताओं की पहचान पता चल गई तो सत्ता में आने पर वे उन्हें परेशान कर सकते हैं.
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि चुनावी बॉन्ड योजना जारी रहेगी लेकिन 30 मई तक सभी राजनीतिक दलों को एक सीलबंद लिफाफे में सारी जानकारी निर्वाचन आयोग को सौंपनी होगी. यानी तब तक चुनाव प्रक्रिया पूरी हो चुकी होगी और लोकसभा चुनाव के नतीजे भी 23 मई को घोषित हो चुके होंगे.
भारत की सात राष्ट्रीय पार्टियों को 2016-2017 में कुल 1,559 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है. 1,034.27 करोड़ रुपये की आमदनी के साथ बीजेपी इनमें सबसे ऊपर है. जानते हैं कि इस बारे में एडीआर की रिपोर्ट और क्या कहती है.
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भारतीय जनता पार्टी
दिल्ली स्थित एक थिंकटैंक एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी को एक साल के भीतर एक हजार करोड़ रूपये से ज्यादा की आमदनी हुई जबकि इस दौरान उसका खर्च 710 करोड़ रुपये बताया गया है. 2015-16 और 2016-17 के बीच बीजेपी की आदमनी में 81.1 फीसदी का उछाल आया है.
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कांग्रेस
राजनीतिक प्रभाव के साथ साथ आमदनी के मामले भी कांग्रेस बीजेपी से बहुत पीछे है. पार्टी को 2016-17 में 225 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने खर्च किए 321 करोड़ रुपये. यानी खर्चा आमदनी से 96 करोड़ रुपये ज्यादा. एक साल पहले के मुकाबले पार्टी की आमदनी 14 फीसदी घटी है.
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बहुजन समाज पार्टी
मायावती की बहुजन समाज पार्टी को एक साल के भीतर 173.58 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्चा 51.83 करोड़ रुपये हुआ. 2016-17 के दौरान बीएसपी की आमदनी में 173.58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. पार्टी को हाल के सालों में काफी सियासी नुकसान उठाना पड़ा है, लेकिन उसकी आमदनी बढ़ रही है.
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नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
शरद पवार की एनसीपी पार्टी की आमदनी 2016-17 के दौरान 88.63 प्रतिशत बढ़ी. पार्टी को 2015-16 में जहां 9.13 करोड़ की आमदनी हुई, वहीं 2016-17 में यह बढ़ कर 17.23 करोड़ हो गई. एनसीपी मुख्यतः महाराष्ट्र की पार्टी है, लेकिन कई अन्य राज्यों में मौजूदगी के साथ वह राष्ट्रीय पार्टी है.
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तृणमूल कांग्रेस
आंकड़े बताते हैं कि 2015-16 और 2016-17 के बीच ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की आमदनी में 81.52 प्रतिशत की गिरावट हुई है. पार्टी की आमदनी 6.39 करोड़ और खर्च 24.26 करोड़ रहा. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने वाली तृणमूल 2011 से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है और लोकसभा में उसके 34 सदस्य हैं.
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सीपीएम
सीताराम युचुरी के नेतृत्व वाली सीपीएम की आमदनी में 2015-16 और 2016-17 के बीच 6.72 प्रतिशत की कमी आई. पार्टी को 2016-17 के दौरान 100 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने 94 करोड़ रुपये खर्च किए. सीपीएम का राजनीतिक आधार हाल के सालों में काफी सिमटा है.
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सीपीआई
राष्ट्रीय पार्टियों में सबसे कम आमदनी सीपीआई की रही. पार्टी को 2016-17 में 2.079 करोड़ की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 1.4 करोड़ रुपये रहा. लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी का एक एक सांसद है जबकि केरल में उसके 19 विधायक और पश्चिम बंगाल में एक विधायक है.
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समाजवादी पार्टी
2016-17 में 82.76 करोड़ की आमदनी के साथ अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सबसे अमीर क्षेत्रीय पार्टी है. इस अवधि के दौरान पार्टी के खर्च की बात करें तो वह 147.1 करोड़ के आसपास बैठता है. यानी पार्टी ने अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च किया है.
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तेलुगु देशम पार्टी
आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी तेलुगुदेशम पार्टी को 2016-17 के दौरान 72.92 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि 24.34 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. पार्टी की कमान चंद्रबाबू के हाथ में है जो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं.
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एआईएडीएमके और डीएमके
तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके को 2016-17 में 48.88 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 86.77 करोड़ रुपये रहा. वहीं एआईएडीएमके की प्रतिद्वंद्वी डीएमके ने 2016-17 के बीच सिर्फ 3.78 करोड़ रुपये की आमदनी दिखाई है जबकि खर्च 85.66 करोड़ रुपया बताया है.
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एआईएमआईएम
बचत के हिसाब से देखें तो असदउद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम सबसे आगे नजर आती है. पार्टी को 2016-17 में 7.42 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसके खर्च किए सिर्फ 50 लाख. यानी पार्टी ने 93 प्रतिशत आमदनी को हाथ ही नहीं लगाया. (स्रोत: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म)
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दिलचस्प बात यह है कि जब भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में थी, तो वह सार्वजनिक जीवन में शुचिता और पारदर्शिता की बड़ी-बड़ी बातें किया करती थी. लेकिन सत्ता में आते ही उसके सुर पूरी तरह बदल गए. उसने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे के कानूनों में इस तरह के बदलाव किए कि अब विदेशी कंपनियों की भारत-स्थित शाखाएँ भी चंदा दे सकती हैं.
चुनावी बॉन्ड के जरिए दिए गए चंदे के बारे में भी बैंक के अलावा किसी को कुछ पता नहीं चल सकता था कि धन का स्रोत क्या है. जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने वेणुगोपाल से पूछा, धन शेल यानी फर्जी कंपनियों के जरिए भी भेजा जा सकता है.
चुनावी बॉन्ड योजना में निहित गोपनीयता का यह असर हुआ कि इसके तहत दिए गए कुल 221 करोड़ रुपए में से 210 करोड़ रुपए सिर्फ भाजपा की झोली में आए. देश की शेष सभी राजनीतिक पार्टियों को केवल 11 करोड़ रुपए ही मिले. इनमें से पाँच करोड़ रुपए कांग्रेस पार्टी के हिस्से में आए. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि यदि इस योजना का वर्तमान स्वरूप जारी रखा जाए तो इसका लाभ मुख्यतः सत्तारूढ़ पार्टी को ही मिलेगा.
जाहिर है कि यह विपक्षी दलों के साथ अन्याय है. यूँ भी लोकतंत्र में पारदर्शिता सार्वजनिक जीवन का एक बुनियादी मूल्य है और जनता को अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है. पिछली कांग्रेस सरकार ने सूचना के अधिकार वाला कानून बना कर जनता के इसी बुनियादी हक को सुरक्षित करने की कोशिश की थी. लेकिन इस कानून की धार को कुन्द करने की हरचंद कोशिश की गई है.
इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो यही है कि आज तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की शैक्षिक योग्यता संबंधी दस्तावेज़ पेश नहीं किए जा सके. अब जाकर स्पष्ट हुआ है कि स्मृति ईरानी केवल बारहवीं कक्षा पास हैं क्योंकि उन्होंने लोकसभा चुना के लिए नामांकन पत्र भरते हुए स्वयं उसमें अपनी शैक्षणिक योग्यता यही लिखी है.
लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से पारदर्शिता पूरी तरह बहाल नहीं होती. क्योंकि राजनीतिक दल धन के स्रोत को सार्वजनिक नहीं करेंगे. वे केवल गोपनीय ढंग से निर्वाचन आयोग को बताएंगे. अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि क्या आयोग के पास यह अधिकार होगा कि वह इस जानकारी को चाहे तो सार्वजनिक कर सके? जो भी हो, फिलहाल पारदर्शिता की दिशा में ताजा आदेश से एक कदम तो आगे बढ़ाया ही गया है. आशा की जानी चाहिए कि इस दिशा में आगे भी कदम बढ़ाए जाते रहेंगे.
हर देश का भविष्य, राजनीति पर निर्भर करता है. वहीं राजनीति का राजनीतिक दलों पर. फॉक्सन्यूजप्वाइंट डॉट कॉम बेवसाइट ने अपनी एक रिपोर्ट में इन 10 दलों को दुनिया में सबसे प्रभावी राजनीतिक दल माना है.
तस्वीर: Reuters/R. de Chowdhuri
वर्कर्स पार्टी, ब्राजील
वर्कर्स पार्टी ब्राजील की बड़ी पार्टीयों में से एक है जिसकी स्थापना साल 1980 में की गई थी. साल 2003-2016 के दौरान सत्ता पर काबिज रहे इस दल की लोकप्रियता न सिर्फ देश में बल्कि दुनिया में भी बढ़ी है. एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्राजील की इस पार्टी के देश भर में तकरीबन 14 लाख सदस्य हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Moreira
भारतीय जनता पार्टी, भारत
साल 2014 के आम चुनावों में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में काबिज हुई भारतीय जनता पार्टी की सदस्य संख्या साल 2015 के आंकड़ों मुताबिक 8.8 करोड़ थी. बीजेपी ने सिर्फ भारत में केंद्र सरकार चला रही है बल्कि देश के 19 राज्यों में भी बीजेपी सरकार चला रही है.
तस्वीर: Reuters/R. de Chowdhuri
यूनाइटेड रशिया, रूस
साल 2016 के चुनावों में देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी यूनाइटेड रशिया को आम चुनावों में भारी जीत मिली थी. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की इस पार्टी की सदस्यता 20 लाख लोगों से भी ज्यादा के पास है. पार्टी के नेता और राष्ट्रपति पुतिन ने छह सालों के अगले कार्यकाल के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की है
तस्वीर: AP
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारत
साल 1885 में स्थापित की गई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत की सबसे पुरानी पार्टियों में से एक है. पार्टी लंबे समय तक देश की सत्ता पर काबिज रही है. करीब 2 करोड़ लोगों के पास पार्टी की सदस्यता है. हालांकि साल 2014-15 के आम चुनावों में पार्टी को करारी हार झेलनी पड़ी
तस्वीर: picture-alliance/AP
क्रिश्चिन डेमोक्रेटिक यूनियन ऑफ जर्मनी, जर्मनी
जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल की पार्टी दुनिया के एक अहम लिबरल कंजरवेटिव पार्टी मानी जाती है. पार्टी की स्थापना साल 1945 में हुई थी. देश में इसकी सदस्यता तकरीबन 4.46 लाख लोगों के पास है. साल 2017 के आम चुनावों में पार्टी की लोकप्रियता में कुछ कमी आई है.
तस्वीर: Reuters/H. Hanschke
कंजरवेटिव पार्टी, ब्रिटेन
ब्रिटेन में सत्ता में काबिज कंजरवेटिव पार्टी की स्थापना साल 1834 में हुए थी. वर्तमान में पार्टी की नेता टेरिजा मे देश की प्रधानमंत्री हैं. पार्टी के देश में 8 हजार में ज्यादा काउंसलर है और इसकी कुल सदस्य संख्या 1.49 लाख है.
तस्वीर: Reuters/H. McKay
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना, चीन
कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना साल 1921 में हुई थी. यह पार्टी न सिर्फ देश की बल्कि सदस्य संख्या के हिसाब से दुनिया की दूसरी बड़ी पार्टी है. पार्टी के सदस्यों की संख्या तकरीबन 8.8 करोड़ है.
तस्वीर: Getty Images/China Photos
सोशलिस्ट पार्टी, फ्रांस
फ्रांस की इस सोशलिस्ट पार्टी देश की बड़ी पार्टियों में से एक है. इसके करीब 70 लोग सदस्य है. साल 1980 में पार्टी पहली बार सत्ता में आई थी.
तस्वीर: Reuters/R. Duvignau
डेमोक्रेटिक पार्टी, अमेरिका
अमेरिका के प्रमुख राजनीतिक दल, डेमोक्रेटिक पार्टी को अमेरिकी आधुनिक इतिहास का सबसे पुराना राजनीतिक दल माना जाता है. इसकी स्थापना साल 1828 में हुई थी. बराक ओबामा, हिलेरी क्लिंटन इसी पार्टी से जुड़े हैं. पार्टी के दुनिया में करीब 4.1 करोड़ सदस्य हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Sachs
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ, पाकिस्तान
पाकिस्तान के इस राजनीतिक दल की स्थापना साल 1996 में पूर्व क्रिकेटर इमरान खान ने की थी. पार्टी ने साल 2002 के आम चुनावों में एक सीट ही हासिल की थी वहीं साल 2008 के चुनावों का बॉयकॉट किया था. पार्टी के दुनिया भर में 1.1 करोड़ सदस्य हैं.