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समाज

श्रमिकों के लिए सुप्रीम कोर्ट का दूसरा बड़ा फैसला

९ जून २०२०

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को आदेश दिया है कि 15 दिनों के अंदर सभी फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों को उनके गांव भेजने की व्यवस्था की जाए और उनके खिलाफ आपराधिक मामलों को रद्द करने पर विचार किया जाए.

Indien Coronavirus - Bihar
तस्वीर: IANS

तालाबंदी लागू होने के तुरंत बाद से ही प्रवासी मजदूरों को अपने अपने गांवों की तरफ लौटने की जद्दोजहद करते हुए करीब ढाई महीने बीत गए हैं. इन ढाई महीनों में अब जा कर इनकी मदद के लिए सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा आदेश आया है. अदालत ने सभी राज्यों को आदेश दिया है कि 15 दिनों के अंदर सभी फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों का पता लगाया जाए और उन्हें उनके गांव भेजने की व्यवस्था की जाए.

तीन जजों की एक न्याय-पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि बीते महीनों में जहां भी प्रवासी श्रमिकों के खिलाफ तालाबंदी के नियमों का उल्लंघन करने के लिए आपराधिक मामले दर्ज किए गए, राज्य सरकारें उन मामलों को रद्द करने पर विचार करें. इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि इन्हें ले जाने के लिए रेलवे और ट्रेनों का इंतजाम करे, केंद्र और राज्य सरकारें प्रवासी श्रमिकों की पहचान कर एक व्यापक सूची बनाएं, उनकी मदद के लिए योजनाएं बनाएं, उनकी दक्षता की मैपिंग करें और उसी आधार पर उनके लिए रोजगार उपलब्ध कराएं और अगर वे उन शहरों में वापस लौटना चाहें जहां वे काम कर रहे थे तो उनके लिए काउंसलिंग केंद्र बनाएं.

ये दूसरी बार है जब श्रमिकों के हालात पर एक मामले में चल रही सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को निर्देश दिए हैं. इससे पहले 29 मई को अदालत ने निर्देश दिया था कि श्रमिकों की यात्रा का खर्च उनसे ना वसूला जाए और रास्ते में उनके खाने-पीने की व्यवस्था भी की जाए. 26 मई को इस मामले में अदालत ने खुद संज्ञान लेते हुए कहा था कि सरकारों द्वारा श्रमिकों की भलाई के लिए उठाए गए कदमों में गलतियां भी हुई हैं और कमियां भी रह गई हैं. इसके पहले श्रमिकों की समस्याओं पर दायर एक जनहित याचिका को कई दिनों तक सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई ही नहीं मिली थी.

दिल्ली में एक प्रवासी श्रमिक बस स्टैंड पर सोए हुए अपने बच्चे को पंखा झलता हुआ.तस्वीर: Reuters/A. Abidi

कितने श्रमिक फंसे हुए हैं?

इसी मामले में पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अभी तक ट्रेनों से 57 लाख श्रमिक और बसों से 41 लाख श्रमिकों को उनके गृह-राज्य वापस भेजा गया है. कितने श्रमिक अभी भी रास्ते में या शहरों में फंसे हुए हैं इसी लेकर कई अनुमान हैं. शुरू से ही श्रमिकों की स्थिति पर नजर रखने वाले एक्टिविस्टों और शोधकर्ताओं के एक समूह स्ट्रेन्डेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (स्वान) के ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक 67 प्रतिशत प्रवासी श्रमिक अभी भी फंसे हुए हैं और 55 प्रतिशत अभी भी गांव लौटना चाहते हैं.

करीब 75 प्रतिशत श्रमिकों के पास अभी भी कोई काम नहीं है. हालांकि इस सर्वेक्षण के लिए सिर्फ 1,963 श्रमिकों से बात की गई है लेकिन ये वही श्रमिक हैं जिन्होंने तालाबंदी की शुरुआत में स्वान से संपर्क किया था और अपनी मुसीबतों के बारे में बताया था. आर्थिक सर्वेक्षण 2017 के मुताबिक देश के अंदर प्रवासी श्रमिकों की कुल संख्या छह करोड़ थी. इस अनुमान के हिसाब से अभी 84 प्रतिशत श्रमिक अपने घर नहीं लौटे हैं.

हालांकि अब पूरी स्थिति और भी पेचीदा हो गई है. जो श्रमिक अपने अपने गांव पहुंच गए थे उनमें से कई श्रमिक फिर से काम करने उन्हीं राज्यों में या तो वापस पहुंच चुके हैं या जा रहे हैं जहां से वे अपने घर लौटे थे. उत्तर प्रदेश और बिहार से भारी संख्या में कृषि और औद्योगिक श्रमिक पंजाब वापस जा रहे हैं. कई तो लौट भी चुके हैं. गुजरात की फैक्टरियों में काम करने वाले कई श्रमिक मध्य प्रदेश से वापस काम पर लौट चुके हैं. ऐसे में प्रवासी श्रमिकों की सहायता करने के लिए उठाए गए कदमों में देरी हुई यह साफ नजर आता है.

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