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सुरक्षाबलों से मुठभेड़ में माओवादी नेता किशनजी की मौत

२४ नवम्बर २०११

भारत में माओवादियों के बड़े नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी के मारे जाने की खबर आई है. पश्चिमी मिदनापुर के बुरीसोल जंगल में सुरक्षाबलों की संयुक्त टीम से हुए मुठभेड़ में किशनजी मारे गए.

तस्वीर: AP

उग्रवादियों से मोर्चा लेने के लिए बनाए गए संयुक्त बल के प्रमुख ने कोलाकाता में जानकारी दी है कि जंगलमहल में हुए मुठभेड़ के बाद बरामद शवों में एक शव किशनजी का है. भारत के गृह सचिव आर के सिंह ने कहा है "यह नक्सलियों के लिए बहुत बड़ा झटका है. उनका तीसरा सबसे बड़ा नेता मारा गया."  सुरक्षाबलों की संयुक्त कार्रवाई में पांच माओवादी गिरफ्तार हुए हैं और भारी मात्रा में हथियार और गोलाबारूद भी बरामद हुआ है. सुरक्षा बलों को एक लैपटॉप बैग, किशनजी और सुचित्रा के लिखे कुछ खत और कुछ दूसरे अहम दस्तावेज भी पास के गोसाईबांध गांव से मिले.

तस्वीर: AP

58 साल के किशनजी लंबे समय से माओवादियों के अभियान का नेतृत्व कर रहे थे. किशनजी माओवादियों के पोलितब्यूरो के सदस्य थे और नेतृत्व में ऊपर से तीसरे नंबर पर थे. जंगलमहल में 2009 से माओवादियों के हथियारबंद आंदोलन का नेतृत्व उन्हीं के हाथ में था. सुरक्षा बलों को ऐसी जानकारी मिली थी कि किशनजी और सुचित्रा महतो पश्चिमी मिदनापुर के झाड़ग्राम इलाके के नलबानी, लालबानी या खुशबानी जंगलों में कहीं छुपे हुए हैं. सुचित्रा महतो उनकी पत्नी भी हैं. पुलिस ने छापा मारा तो पांच विद्रोही पकड़े गए लेकिन उनका नेता हाथ नहीं आया. इसके बाद बड़े स्तर पर खोजी अभियान शुरू कर दिया गया. बाद में पता चला कि वो खुशबनी जंगल में हैं इसके बाद पूरे इलाके को घेर लिया गया और फिर मुठभेड़ शुरू हुई. सुरक्षा बलों ने किशनजी की चारस्तरीय सुरक्षा पंक्ति को तोड़ दिया. यह जंगल झारखंड की सीमा के पास है. शव के साथ मिले एके 47 राइफल से इस की पहचान हुई कि मारा गया शख्स किशनजी हैं. सुचित्रा और दूसरे सहयोगी भागने में कामयाब हो गए. 

तस्वीर: AP

किशनजी पिछले 30 सालों से भूमिगत रह कर माओवादियों के अभियान में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे. पिछले कुछ सालों से वो पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल के सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बने हुए थे. 2009 में ऑपरेशन ग्रीनहंट के शुरू होने के बाद से ही वो जबर्दस्त तनाव में थे. सुरक्षाबलों ने नक्सल प्रभावित पूरे लाल गलियारे के लिए यह अभियान शुरू किया है जिसमें कई राज्यों के और केंद्र सरकार के सुरक्षबलों को शामिल किया गया है. पश्चिम बंगाल के लालगढ़ इलाके में भी किशनजी काफी सक्रिय थे. केंद्र सरकार की माओवादियों के साथ शांति वार्ता की कोशिशों पर किशनजी ने हमेशा अनिश्चितता बनाए रखी क्योंकि वो बातचीत से पहले हथियार छोड़ने की शर्त मानने के लिए तैयार नहीं थे.

2010 में पश्चिम बंगाल के सिल्दा कैंप पर हुए हमले की जिम्मेदारी किशनजी ने ली थी. इस हमले में अर्धसैनिक बलों के 24 जवानों की हत्या कर दी गई थी. हमले के बाद किशनजी ने एक स्थानीय टीवी चैनल से कहा था, "यह हमारा ऑपरेशन पीस हंट है जो सरकार के ऑपरेशन ग्रीनहंट का जवाब है." भारत के गृहमंत्री पी चिदंबरम और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने माओवादियों को सबसे बुरा और आतंकवादियों से भी खतरनाक बताया है. किशनजी अलग अलग जगहों से अक्सर मीडिया से बात करते रहे. किशनजी से पहले उनके प्रह्लाद, मुरली, रामजी, जयंत और श्रीधर नाम भी रहे हैं.

पड़ोसी राज्य झारखंड में तैनात सुरक्षाबलों को भी सचेत कर दिया गया और उन्हें भी इस अभियान में शामिल कर लिया गया. सुरक्षा बलों ने जंगलमहल के इलाके में उग्रवादियों के खिलाफ अभियान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद शुरू कर दिया है. राज्य सरकार ने पश्चिमी मिदनापुर के पूर्व पुलिस सुपरिटेंडेंट मनोज वर्मा को भी वापस बुला लिया है.

रिपोर्टः पीटीआई/एन रंजन

संपादनः महेश झा

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