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सुरक्षा परिषद का चुनाव, जर्मनी और भारत उम्मीदवार

१२ अक्टूबर २०१०

न्यूयॉर्क में आज संयुक्त राष्ट्र महासभा इस बात का फैसला करेगी कि जर्मनी अगले दो वर्षों के लिए सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों में शामिल होगा या नहीं. भारत भी उम्मीदवार लेकिन उसकी जीत लगभग तय.

तस्वीर: AP

महासभा में जीत के लिए उम्मीदवारों को दो तिहाई मत चाहिए. कजाखस्तान द्वारा उम्मीदवारी वापस लिए जाने के बाद भारत एशिया से अकेला उम्मीदवार है फिर भी उसे 128 सदस्यों का समर्थन चाहिए. 18 साल बाद भारत का फिर से सदस्य बनना तय लगता है. अफ्रीका और लैटिन अमेरिका की सीटों के लिए दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील उम्मीदवार हैं. उनके मुकाबले भी कोई दूसरा देश मैदान में नहीं है. यूरोप और अन्य की दो सीटों के लिए जर्मनी के अलावा कनाडा और पुर्तगाल भी उम्मीदवार हैं.

तस्वीर: picture alliance/dpa

विश्व की सबसे ताकतवर संस्था संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य हैं जिनमें से पांच अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस वीटो अधिकार से लैस स्थायी सदस्य हैं. बाकी दस सदस्यों का चुनाव दो वर्षों के लिए अस्थायी तौर पर होता है. इस साल पांच सदस्य चुने जा रहे हैं.

जर्मनी ने कहा है कि सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में उसकी प्राथमिकता सुरक्षा परिषद में आमूल परिवर्तन होगी. इस समय सुरक्षा परिषद की संरचना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के सत्ता संतुलन को दिखाती है जिनमें युद्ध हारे जर्मनी और जापान परिषद के बाहर हैं और आर्थिक रूप से उभरती ताकते भी उसमें नहीं हैं. योजना सुरक्षा परिषद के सदस्यों की संख्या में विस्तार कर उसमें इन देशों को शामिल करने की है. कुछ साल पहले जर्मनी, भारत, ब्राजील और जापान ने सुधारों पर जोर देने के लिए जी 4 दल का गठन किया है. जर्मनी की वर्तमान सरकार ने सुरक्षा परिषद में यूरोपीय सीट को अपना लक्ष्य बताया है.

अगर जर्मनी सुरक्षा परिषद की अस्थायी सीट जीतने में सफल रहता है तो पिछले सालों में पहला मौका होगा जब सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने के इच्छुक जी-4 के सभी देश एक साथ सुरक्षा परिषद के सदस्य होंगे. चुनाव से पहले भारत के संयुक्त राष्ट्र दूत हरदीप सिंह पुरी ने ध्यान दिलाया है कि ब्रिक संगठन के देश, ब्राजील, रूस, भारत और चीन सुरक्षा परिषद में होंगे और वे विभिन्न विवादास्पद अंतरराष्ट्रीय मसलों पर संयुक्त मोर्चा पेश कर सकते हैं. पुरी ने कहा, "सुरक्षा परिषद में ब्रिक सहयोग हकीकत बनने जा रहा है."

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: एन रंजन

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