अगर आप भी कैमरे में देखकर अपने आईफोन को अनलॉक करते हैं या फिर बैंक एकाउंट के लिए चेहरे की स्कैनिंग का फीचर लगा रखा है. अगर ये सब सुरक्षा पुख्ता करने के लिए है, तो समझ लीजिए कि ये तरीके भी पूरी तरह से कारगर नहीं है.
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अमेरिका समेत दुनिया के कई मुल्कों में चेहरे पहचनाने की इस तकनीक को कानूनी एजेंसियों समेत सीमा सुरक्षा बलों से लेकर कई विभाग इस्तेमाल में ला रहे हैं. वह इस फेशियल रेकग्निशन तकनीक से जांच में मदद ले रहे हैं. लेकिन अब नए अध्ययन बताते हैं कि फेशियल रेकग्निशन मतलब चेहरा पहचनाने की यह तकनीक सौ फीसदी सटीक हो, ऐसा कोई जरूरी नहीं है.
साल 2016 की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की स्टडी बताती है कि अमेरिका में हर दो में से एक वयस्क मतलब करीब 11 करोड़ लोगों की जानकारी फेशियल रेक्गनिशन डाटाबेस में है. लेकिन इस तकनीक पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं किया जा सकता.
चेहरे की पहचान से जुड़े सिस्टम के सॉफ्टवेयर डेवलपर ब्रियान ब्रेकीन अपने ब्लॉग पोस्ट टेकक्रंच में लिखते हैं, "एक डेवलपर होने के नाते इस तकनीक का मेरे साथ एक निजी कनैक्शन है. यह कनैक्शन सांस्कृतिक और सामाजिक दोनों तरह का है. फेशियल रेकग्निशन के आधार पर सरकारी निगरानी हमारी निजता में खतरा है. साथ ही यह हमारी पहचान को भी नुकसान पहुंचाती है. इसे पूरी तरह से सटीक नहीं माना जा सकता."
इन कंपनियों से भी चोरी हुआ है निजी डाटा
यूजर्स के निजी डाटा की चोरी फेसबुक के मामले के बाद सुर्खियों में आई लेकिन यह पहला मामला नहीं है जब डाटा चोरी हुआ है. आपके आसपास की तमाम कंपनियों में भी पिछले सालों के दौरान डाटा चोरी के कई मामले सामने आएं हैं.
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याहू
इंटरनेट सर्च इंजन याहू ने साल 2017 में यह बात मानी कि 2013 के दौरान कंपनी के करीब तीन अरब एकाउंट पर हैकर्स ने सेंध मारी थी. साल 2016 में प्रभावित एकाउंट्स की संख्या एक अरब कही गई थी. लेकिन 2017 में यह संख्या बढ़कर तीन अरब तक पहुंच गई.
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ईबे
ई-कॉमर्स कंपनी ईबे ने साल 2014 में डाटा चोरी का मामला दर्ज कराया था. कंपनी ने कहा था कि हैकर्स ने कंपनी के तकरीबन 14.5 करोड़ यूजर्स के नाम, पता, जन्मतिथि हासिल कर लिए हैं. कंपनी में काम करने वाले तीन लोगों के नाम का इस्तेमाल कर हैकर्स ने कंपनी नेटवर्क में जगह बनाई और सर्वर में 229 दिनों तक बने रहे.
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पिज्जा हट
पिज्जा हट ने साल 2017 में अपनी वेबसाइट और ऐप के हैक होने की बात स्वीकारी. कंपनी ने कहा कि इस डाटा चोरी में यूजर्स की निजी जानकारी को निशाना बनाया गया. हालांकि इस हैकिंग में कितने एकाउंट्स को निशाना बनाया था, उसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी गई. लेकिन स्थानीय मीडिया ने 60 हजार अमेरिकी ग्राहकों के निशाना बनने की बात कही थी.
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उबर
टैक्सी एग्रीगेटर ऐप उबर ने साल 2017 में करीब 5.7 करोड़ यूजर्स के डाटा लीक होने की बात कही. कंपनी को साल 2016 में हैकर्स की सेंधमारी का अंदेशा हुआ था. डाटा हैकिंग के इस मामले में हैकर्स ने कंपनी के साथ दर्ज छह लाख ड्राइवरों का लाइसेंस नंबर भी चुरा लिया था.
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जोमैटो
मोबाइल पर लोगों को खाने के ठिकानों की जानकारी देने वाली भारतीय कंपनी जोमैटो ने साल 2017 में डाटा चोरी की बात कही थी. कंपनी ने कहा था कि उसके करीब 1.7 करोड़ यूजर्स का डाटा चुरा लिया गया है. इसमें यूजर्स के ईमेल और पासवर्ड शामिल हैं. जोमैटो की स्थापना साल 2008 में दो भारतीयों ने की थी. फिलहाल कंपनी 23 देशों में अपनी सेवाएं दे रही है.
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इक्वीफैक्स
क्रेडिट मॉनिटिरिंग कंपनी इक्वीफैक्स पर हुआ साइबर अटैक डाटा चोरी का बड़ा मामला माना जाता है. इसमें करीब 14.55 करोड़ लोगों का निजी डाटा चोरी हो गया. इसमें संवेदनशील जानकारियां मसलन सोशल सिक्युरिटी नंबर, ड्राइविंग लाइसेंस नंबर आदि के चोरी होने की खबर आई थी.
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बूपा
भारत में मैक्स समूह के साथ काम कर रही बीमा कंपनी बूपा भी डाटा चोरी का शिकार बन चुकी है. ब्रिटेन की इस कंपनी से जुड़े पांच लाख लोगों की बीमा योजनाओं की जानकारी हैकर्स ने चुरा ली थी. ब्रिटेन में करीब 43 हजार लोग इस डाटा चोरी से प्रभावित हुए थे.
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डेलॉयट
दुनिया की बड़ी कंसल्टेंसी फर्म में शुमार डेलॉयट भी हैकर की गिरफ्त में आ चुकी है. इस चोरी में हैकर्स ने कंपनी के ब्लू-चिप क्लाइंट की निजी जानकारी को निशाना बनाया. हालांकि इसमें कुछ गुप्त ई-मेल, निजी योजनाओं और डॉक्युमेंट्स को भी चुराया गया. इस हैकिंग का सबसे अधिक असर अमेरिकी ग्राहकों पर पड़ने की बात सामने आई थी.
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लिंक्डइन
नौकरी देने-लेने का प्लेटफॉर्म बन उभरा लिंक्डइन भी डाटा चोरी की शिकायत करता है. साल 2012 मे कंपनी के नेटवर्क को हैक कर करीब 65 लाख यूजर्स की जानकारी निकाल ली गई. इसमें रूस के हैकर्स का हाथ होने की बात कही गई थी. साल 2017 में कंपनी ने करीब 10 करोड़ यूजर्स के एकाउंट पर मंडरा रहे खतरे की जानकारी देते हुए कहा था कि हैकर्स, यूजर्स की जानकारी ऑनलाइन बेचना चाहते हैं.
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सोनी प्लेस्टेशन नेटवर्क
गेमिंग की दुनिया के लिए सोनी प्लेस्टेशन नेटवर्क में हुई डाटा चोरी चौंकाने वाली थी. साल 2011 में सामने आई इस हैकिंग में 7.7 करोड़ प्लेस्टेशन यूजर्स के एकाउंट हैक हो गए. इस हैकिंग से कंपनी को 17.1 करोड़ का नुकसान हुआ था और कंपनी की साइट भी एक महीने तक डाउन रही.
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जेपी मॉर्गन
अमेरिका के बड़े बैंकों में शुमार जेपी मॉर्गन भी अपना डाटा चोरी होने से नहीं बचा पाया. साल 2014 के साइबर अटैक में करीब 7.6 करोड़ अमेरिकी लोगों का डाटा चोरी हो गया और करीब 70 लाख छोटे कारोबारों को भी हैकर्स ने निशाना बनाया.
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कार्यकर्ताओं को डर है कि कानूनी एजेंसियां चेहरे की पहचान को रियल टाइम में करने के लिए ड्रोन, बॉडी कैमरा और डैश कैम्स का इस्तेमाल करेंगी. लेकिन नई तकनीक की जानकर और थिंक टैंक काटो इंस्टीट्यूट से जुड़े मैथ्यू फीने कहते हैं कि तकनीक बेशक सुधर रही है लेकिन अब भी ये सौ फीसदी वैसी सटीक नहीं है जैसे कि साइंस फिक्शन फिल्म में नजर आती है.
चीन इस तकनीक को इस्तेमाल करने में सबसे आगे है. यहां इसका अधिकतर इस्तेमाल तस्करों या किसी अपराध से जुड़े संदिग्ध आरोपियों को पकड़ने में किया जाता है. जानकार बताते हैं कि पिछले सालों में अमेरिका ने इस तकनीक को अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्टों पर खूब इस्तेमाल किया है. ऐसी भी खबरें आईं थी कि एमेजॉन ने इस तकनीक से जुड़े सॉफ्टवेयर को पुलिस डिपार्टमेंट में लगाना शुरू किया था. लेकिन कर्मचारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस पर काफी विरोध जताया. इनका कहना था कि तकनीकी कंपनियों को सुरक्षा के मामलों से दूर रहना चाहिए. एमेजॉन दावा करता है कि इस सिस्टम का इस्तेमाल गुमशुदा लोगों को परिवारों से मिलवाने और मानव तस्करी रोकने में किया जा सकता है.
हाल में माइक्रोसॉफ्ट ने घोषणा की थी कि वह चेहरा पहचनाने की इस तकनीक को सुधारने के लिए काम कर रहा है. ऐसी ही घोषणा आईबीएम की तरफ से भी की गई है. गैर लाभकारी संस्था इलैक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन की जेनिफर लिंच कहते हैं, "पुलिस निगरानी में इसका प्रभाव काफी व्यापक है. यह सिस्टम अगर पूरी तरह सुरक्षित नहीं होगा, तो ऐसे में वे लोग भी फंस सकते हैं कि जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया है."
इंटरनेट में कैसे रहें सतर्क
आप इंटरनेट में इस वक्त इस वेबसाइट पर ये तस्वीरें देख रहे हैं, यह बात सिर्फ आप ही नहीं जानते. इंटरनेट में मौजूद हैकर भी आपको यह करते देख रहे हैं. जानिए कैसे रहें इंटरनेट में सतर्क.
तस्वीर: Fotolia/davidevison
अमेरिकी खुफिया एजेंसी एनएसए ने केवल अमेरिकी नागरिकों और नेताओं की ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के लोगों की जासूसी की. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के मोबाइल फोन की जासूसी पर काफी बवाल खड़ा हुआ.
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फेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियों के पास आपकी अलग अलग जानकारी होती है. पूरी जानकारी को कंपनी का हर सदस्य नहीं देख सकता है. उनके पास आपका नियमित डाटा होता है, वे आपके मेसेज नहीं खोल सकते हैं.
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लेकिन जब खुफिया एजेंसी के पास आपके कंप्यूटर पर चल रहे माइक्रोसॉफ्ट प्रोसेसर से लेकर आपके गूगल, फेसबुक और दूसरे अहम अकाउंट की जानकारी होती है तो उनके पास सब कुछ होता है.
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इन एजेंसियों के पास ऐसे सॉफ्टवेयर होते हैं कि वे जब चाहें आपके कंप्यूटर से खुद अपने कंप्यूटर को जोड़ कर आपकी हर हरकत का पता कर सकते हैं.
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हालांकि अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित कानून के अनुसार केवल जिस व्यक्ति पर शक है, उसके अकाउंट से जुड़ी जानकारी के लिए खुफिया एजेंसी को पहले अदालत से अनुमति लेनी होती है. इसके आधार पर उन्हें इंटरनेट कंपनियां सर्वर तक की पहुंच देती हैं.
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थोड़ी बहुत इंटरनेट जासूसी सभी देशों की सरकार करती है. यह देश की सुरक्षा के लिए अहम भी है. इसमें कंप्यूटर के डाटा के साथ साथ आपके फोन की सारी जानकारी भी मौजूद है.
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बड़े कैमरे से कोई आप पर नजर रखे तो आप उस से बच भी सकते हैं, लेकिन जासूसी ऐसे स्तर पर हो रही है कि आईक्लाउड और एयर एंड्रॉयड जैसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल भी सुरक्षित नहीं है.
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ऐसा नहीं है कि ये मामले यहीं थम जाएंगे. ऐसे सिस्टम की कमी है जो निजता को पूरी तरह सुरक्षित रखने के लिए आश्वस्त कर सके.