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सुर्खियों में मनमोहन की आलोचना

१८ दिसम्बर २०१०

जर्मन मीडिया में इस सप्ताह चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ का भारत और पाकिस्तान दौरा सुर्खियों में है, लेकिन भारत के घोटाले भी मीडिया में बने हुए हैं.

तस्वीर: AP

प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ तीन दिनों के दौरे पर नई दिल्ली में थे. वीटो अधिकारों से लैस सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों के राज्य व सरकार प्रमुखों में वे चौथे हैं जो छह महीने के अंदर भारत गए हैं. और ज्युड डॉयचे त्साइटुंग का कहना है कि इनमें से पांचवें रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेद्वेदेव अगले ही सप्ताह नई दिल्ली में राजनीतिक नेतृत्व से मिलेंगे.

घरेलू मोर्चे पर भारत की सरकार अपने दूसरे कार्यकाल की कठिनतम परीक्षा का सामना कर रही है. गठबंधन सरकार की सबसे बड़ी ताकत कांग्रेस पार्टी कई घोटालों का सामना कर रही है. अब तक पाक साफ समझे जाने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी भारी आलोचना के केंद्र में हैं. इसके विपरीत नई दिल्ली विदेशनैतिक रूप से अपने को बहुत अच्छी स्थिति में देख रही है, जो दौरे पर आने वालों की प्रभावशाली सूची भी दिखाती है. स्वाभिमानी भारत खासकर बराक ओबामा के हाल के इस बयान पर खुश था कि वह कोई उभरती सत्ता नहीं है बल्कि यह दर्जा पा चुका है.

विश्व सत्ताओं द्वारा भारत को दिए जा रहे महत्व के बीच फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग ने इस सप्ताह भी भारत में पिछले दिनों सामने आए घोटालों की चर्चा की है और कहा है कि देश में हंगामा है. अखबार के अनुसार भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के बाद से एक के बाद एक भ्रष्टाचार कांडों की लाइन लग गई है जिसमें देश का संभ्रांत वर्ग फंसा है, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रमुख अधिकारी, बैंकर और सेना के जनरल. अखबार लिखता है कि इन कांडों का शिकार है सारा समाज.

तस्वीर: AP

भ्रष्टाचार को किसी एक आदमी का लोभ समझना भ्रामक है. वह व्यवस्थित है. भारत को देखते हुए यह सवाल उठता है कि इस समय इस देश का कितना गलत मूल्यांकन हो रहा है. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उसे अभी ही सम्मानित किया है और उभरते बाजार से विकसित देश बना दिया है. भारत का संभ्रात वर्ग दो अंकों वाली विकास दर और सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के अंतहीन गाने गा रहा है. दोनों सही हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि इन शब्दों का मूल्य क्या है. क्योंकि एक विकास दर जो समाज के बड़े हिस्से तक पहुंच नहीं रही है और एक लोकतंत्र, जिसमें एकल व्यक्तियों के योगदान का कोई मोल नहीं है, खोखले शब्द हैं. रिश्वत के ऑक्टोपस के हाथ बहुत लंबे होते हैं. एशिया में उनसे बचना शायद ही संभव है. और ऐसा वर्षों तक रहेगा. इसलिए जरूरी यह है कि अपनी बेगुनाही पर जोर देने के बदले इसे बार बार सार्वजनिक किया जाए.

भारत के बाद वेन जियाबाओ पाकिस्तान गए हैं. वेन जियाबाओ के पाकिस्तान दौरे के बारे में नौए ज्युरिषर त्साइटुंग ने लिखा है

पाकिस्तान में चीन की बढ़ती उपस्थिति कश्मीर पर रुख के अनौपचारिक परिवर्तन के साथ जुड़ा है. बीजिंग ने अब तक खुद को इस विवाद से आम तौर पर बाहर रखा है और उसे भारत और पाकिस्तान की द्विपक्षीय समस्या बताता रहा है. लेकिन कुछ दिनों से वह एक नए शब्द का इस्तेमाल कर रहा है. कश्मीर के भारतीय हिस्से को जिसे वह अब तक "भारत प्रशासित कश्मीर" कहता था अचानक "विवादास्पद क्षेत्र" कहा जा रहा है. पाकिस्तानी हिस्सा जिसे "पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर" कहा जाता था अब उसे "पाकिस्तानी इलाका" कहा जा रहा है. उसके साथ ही चीनियों ने अरुणाचल और जम्मू कश्मीर के लोगों को दूसरे भारतीयों के विपरीत नत्थी वीजा देना शुरू कर दिया है.

तस्वीर: AP

ज्युरिष से प्रकाशित अखबार आगे लिखता है

चीन और भारत जैसी दो उभरती आर्थिक सत्ताएं एक विवाद की लक्जरी बर्दाश्त नहीं कर सकतीं. ऐसे ही विचार उन 400 चीनी उद्यमियों के भी रहे होंगे जो वेन जियाबाओ के साथ दौरे पर गए थे. हाल के आर्थिक संकट के बाद निर्यात बाजार के रूप में भारत का महत्व बढ़ गया है.

वेन जिया बाओ के भारत दौरे पर टिप्पणी करते हुए कारोबारी दैनिक हांडेल्सब्लाट ने लिखा है कि निकट आर्थिक संबंधों से भारत और उसके एशियाई प्रतिद्वंद्वी चीन के तनावपूर्ण राजनीतिक रिश्ते सुधर सकते हैं.

भारत के वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने अपने ताकतवर पड़ोसी पर कई बार दवा, मशीन और आईटी जैसे उत्पादों के लिए अपने बाजार को बंद करने का आरोप लगाया है. नतीजा भारत ने विश्व व्यापार संगठन में किसी और देश के मुकाबले सबसे अधिक अपीलें दायर की हैं. लेकिन वह अपनी खस्ताहाल संरचना के विकास के लिए चीन पर निर्भर भी है. वेन के दौरे पर परंपरागत बिजलीघर बनाने के लिए सबसे बड़ा समझौता किया गया है. लेकिन प्रेक्षकों को संदेह है कि इससे अपने एशियाई प्रतिद्वंद्वी के दूरगामी इरादों के बारे में भारत का संदेह दूर होगा. 1962 की लड़ाई के बाद से दोनों देशों की 3500 किलोमीटर की सीमा का बड़ा हिस्सा विवादित है और भारत की जलापूर्ति के लिए महत्वपूर्ण नदियों पर चीन की बांध बनाने की योजना से संसाधनों की लड़ाई की आशंका पैदा होती है.

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बर्लिन के प्रकाशित दैनिक टात्स ने यूरोपीय संघ और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर हो रही बातचीत के अंतिम दौर पर टिप्पणी की है. उसका कहना है कि चार साल से चल रही बातचीत के बाद मार्च 2011 तक समझौता दस्तखत के लिए तैयार होने की संभावना है. वार्ता के बारे में अखबार लिखता है

जबकि गोपनीय वार्ताओं में उद्योग के ताकतवर लॉबी ग्रुप मेज पर साथ बैठ रहे हैं, सामाजिक संगठनों को वार्ता में शामिल नहीं किया जा रहा है. डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर के ओलिवर मोल्डेनहावर ने टात्स को बताया कि महत्वपूर्ण जेनेरिक दवाएं भारत में नहीं बनाई जा सकेंगी. भारत तथाकथित जेनेरिक दवाएं बनाने वाला सबसे बड़ा देश है. भारतीय कानून में जीवन के लिए जरूरी पैटेंट दवाओं के लिए जबरी लाइसेंस का प्रावधान है ताकि सस्ती दवाओं का उत्पादन किया जा सके. एड्स की जेनेरिक दवाओं के उत्पादन से विकासशील देशों में उपचार का खर्च 98 फीसदी गिर गया है. मोल्डेनहावर की शिकायत है कि जर्मनी के नेतृत्व में हजारों लोगों की चिकित्सीय देखभाल और जीवन को दांव पर लगाया जा रहा है.

संकलन: प्रिया एसेलबॉर्न/मझा

संपादन: ओ सिंह

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