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कुंवारों की तादाद बढ़ाता सूखा

रिपोर्टः प्रभाकर२९ मई २०१६

किसी भी देश में सूखे के चलते फसलों का बर्बाद होना, लोगों और पशुओं का मरना तो आम है. लेकिन क्या कहीं यह सुनने में आता है कि सूखे के चलते किसी इलाके में युवकों की शादी नहीं हो पा रही है?

तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky

देश में विभिन्न राज्यों को चपेट में लेने वाले भयावह सूखे का यह दूसरा पहलू है. कई इलाकों में युवकों की शादी महज इसलिए नहीं हो पा रही है कि पानी के संकट और सूखे के चलते लोग उन इलाकों में अपनी बेटियों की शादी नहीं करना चाहते. वहां महिलाओं को पीने के पानी की तलाश में तपती धूप में मीलों पैदल चलना पड़ता है. जब पीने के पानी की इतनी किल्लत है तो भला नहाने की बात कौन सोच सकता है? यही वजह है कि जिन लोगों ने वहां बेटी के शादी कर दी है, वे भी पछता रहे हैं और जिनकी शादी हुई है वह भी. देश के ऐसे सैकड़ों गांव इस साल शहनाई और बारात के बैंड-बाजे की आवाज सुनने के लिए तरस गए हैं.

शादी पर संकट

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर बसे बुंदेलखंड क्षेत्र में समस्या काफी गंभीर है. इलाके के 13 जिलों में सूखे और पेय जल के संकट के चलते सामाजिक तानाबाना भी गड़बड़ा रहा है.एक महिला बताती है कि इस इलाके के तमाम गांवों में अविवाहित युवकों की तादाद बढ़ती जा रही है. कोई भी अपनी बेटी को यहां ब्याहना नहीं चाहता. हमीरपुर जिले की एक गांव में रहने वाली भूरी देवी कहती है, "पिता ने मेरी शादी यहां कर दी थी. अगर मुझे पानी की इस किल्लत के बारे में पता होता तो इस शादी से इंकार कर देती." भूरी को रोजाना पांच किलोमीटर चल कर पानी लाना पड़ता है. वह सवाल करती हैं कि भला कौन औरत अपना बाकी जीवन इस तरह पानी ढोते हुए बिताना पसंद करेगी? गांव के सभी तालाब सूख चुके हैं. हैंडपंपों से निकलने वाला पानी पीने के लायक नहीं है. इसी वजह से भूरी के तीन बेटों का ब्याह अब तक नहीं हो सका है. लड़की वाले आते तो हैं लेकिन पानी की किल्लत के बारे में पता चलने पर वे यहां अपनी बेटियों का ब्याह करने से इंकार कर देते हैं. गांव के 90 फीसदी युवक कुंवारे ही हैं.

इलाके के बाकी जिलों में भी यही हाल है. सूखे और पानी की किल्लत से ज्यादातर युवक काम-काज की तलाश में शहरों की ओर निकल गए हैं. बीते कई वर्षों से हालत जस की तस रहने की वजह से इस साल गांवों में अब तक शहनाई की आवाज नहीं गूंजी है. इलाके के छतरपुर जिले के तेरियामार गांव के मोहन यादव 32 साल के हो चुके हैं. उनके घरवाले बीते पांच साल से उनकी शादी का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन अब तक इसमें कामयाबी नहीं मिली है. गांव वालों का कहना है कि वहां कम से कम 60 युवकों को मोहन की तरह ही शादी की समस्या से जूझना पड़ रहा है. मोहन बताते हैं, "मैं शादी कर घर बसाना चाहता हूं. लेकिन पानी के संकट के बारे में जान कर लोग यहां अपनी बेटी की शादी करने से मना कर देते हैं." वह कहते हैं कि सरकार अगर इलाके में बांध बना दे तो पानी का संकट दूर हो सकता है.

पानी के लिए मीलों की यात्रातस्वीर: Reuters/J. Dey

भयावह सूखा

देश के 13 राज्यों के 254 जिलों के लगभग ढाई लाख से ज्यादा गांव इस साल गंभीर सूखे की चपेट में हैं. केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक भारत के 91 फीसदी जलाशयों में पिछले 10 साल में सबसे कम महज 29 फीसदी पानी बचा है. वहीं वाटर एड संस्था का कहना है कि भारत में लगभग 85 फीसदी पेयजल जिन स्रोतों से मिलता है, उनका जलस्तर लगातार गिर रहा है. भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में माना है कि देश में कम से कम 33 करोड़ लोग सूखे की चपेट में हैं. अधिकारियों का कहना था कि यह आंकड़ा और बढ़ सकता है क्योंकि सूखा प्रभावित कई राज्यों से अब तक पूरे आंकड़ें नहीं मिल सके हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने हाल में ने सूखा-राहत को लेकर केंद्र और कई राज्य सरकारों को फटकार लगाई है. उसने राष्ट्रीय आपदा राहत कोष बनाने जैसे कई निर्देश भी दिए हैं. लेकिन अदालती निर्देश के बावजूद सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगी है.

परेशान हुए किसानतस्वीर: Getty Images/AFP/N. Seelam

मानवजनित आपदा

विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्राकृतिक नहीं एक बल्कि मानवजनित आपदा है. तरुण भारत संघ के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह कहते हैं, "यह मानवजनित आपदा है. समुदाय की ओर से संचालित विकेंद्रित जल नीति ही इस संकट पर काबू पाने का अकेला तरीका है." पर्यावरणविदों ने सूखे की समस्या के समाधान के लिए सरकार से दीर्घाकालीन पहल करने की मांग की है. उन्होंने देशभर में जलधाराओं, पुराने जलाशयों, कुओं को जीवंत बनाए जाने को वक्त की जरूरत बताया है. जाने-माने पर्यावरणविद अनुपम मिश्र कहते हैं कि इस समस्या से निजात पाने के लिए पानी के पारंपरिक स्त्रोतों पर ध्यान देकर उनको को पुनर्जीवित करना जरूरी है. विशेषज्ञों का कहना है कि पानी के घटिया प्रबंधन के चलते ही हालात इतने बदतर हुए हैं. कृषि नीति विश्लेषक देवेंद्र शर्मा का कहना है कि कृषि को सूखा प्रतिरोधी बनाना होगा और इसके लिए फसलों की बुवाई के तौर-तरीकों में बदलाव लाना होगा. यह बदलाव सिर्फ एक उचित मूल्य नीति और व्यापार नीति के जरिए ही संभव है.

अब देखना यह है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और विशेषज्ञों की सलाह पर किस हद तक अमल करती है.

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