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सूडान में भी हैं पिरामिड

२ अप्रैल २०१३

आधुनिक दौर में मिस्र तो लोकतंत्र की राह पर है लेकिन सूडान अब भी इससे दूर है, हालांकि पता चला है कि 2000 साल पहले कहानी इसके उलट थी. आज हिंसा की आग में झुलस रहे सूडान में तब लोगों के बीच ज्यादा बराबरी थी.

तस्वीर: DW

फ्रांसीसी वैज्ञानिक क्लोद रिली के नेतृत्व में तीन साल तक खुदाई करने के बाद मिले पिरामिडों से यह जानकारी मिली है. मिस्र की सीमा पर हुई खुदाई में वैज्ञानिकों को 35 पिरामिड मिले हैं और इन्हीं पिरामिडों से इन दो पुरानी सभ्यताओं के बीच का फर्क सामने आया है. ईसा के बाद साल 100-200 के बीच में सूडान के मीरो शासन का हवाला देते हुए रिली ने कहा है, "पिरामिड इतने लोकप्रिय थे कि हर कोई जो खर्च उठा सकता था एक तो बनवा ही लेता था. एक तरह से हम कह सकते हैं कि पिरामिड भी लोकतांत्रिक थे और ऐसा दूसरी जगह नहीं था, मिस्र में तो बिल्कुल भी नहीं."

सूडान के पिरामिड दूरदराज में हैं और इनकी कम खोजबीन हुई है, हालांकि ये मिस्र के मशहूर पिरामिडों से काफी अलग हैं. मिस्र के पिरामिड सूडान की तुलना में बहुत पहले बनाए गए. रिली ने बताया कि मिस्र के पिरामिडों में राजा, राजपरिवार और दूसरे बड़े लोगों की जगह थी. मध्य वर्ग इस बारे में नहीं सोच सकता था. सूडान के पिरामिडों में भी राजा और दूसरे बड़े लोग हैं लेकिन बाद में मध्यमवर्गीय लोग भी इस जमात में शामिल हो गए. रिली का कहना है, "सचमुच यह एक नई बात सामने आई है जिसकी हमें उम्मीद नहीं थी."

मध्य वर्ग के लोगों तक पहुंचने की वजह से ही इन पिरामिडों की तादाद बहुत ज्यादा है. सूडान के पिरामिडों का आकार ज्यादा बड़ा नहीं है और यह एक दूसरे के इतने पास पास बने हैं कि कई बार तो इनके बीच से होकर जाना भी संभव नहीं. ये पिरामिड करीब 99 एकड़ में फैले एक कब्रिस्तान में बने हैं. उम्मीद की जा रही है कि यहां 1000 से ज्यादा पिरामिड हैं. यहां मिले पिरामिड आकार में अलग अलग हैं, इनमें से कईयों की ऊंचाई तो महज एक ही मीटर है. ज्यादातर मिट्टी की ईंटों से बने हैं जो ज्यादा महंगे तो नहीं लेकिन फिर भी इन्हें बनाने के लिए कारीगर और मजदूरों की जरूरत हुई ही होगी. जो गरीब लोग पिरामिड नहीं बनवा पाते थे उन्हें इनके आसपास गड्ढों में दफनाया जाता था.

सूडान में खुदाई में पाए गए पिरामिड के साथ डीडब्ल्यू अकादमी की टीम.

पुरातत्वशास्त्रियों ने मिस्र की सीमा से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद सेडिंगा के इस इलाके में 1960 के दशक में काम शुरू किया. तब राजपरिवारों के पिरामिडों पर ही ध्यान था लेकिन पिछले तीन वर्षों के दौरान उन्होंने देखा कि बहुत से आम लोगों को भी पिरामिडों में जगह मिली है. सेडिंगा में सबसे बड़े पिरामिड का अब बस कुछ ही हिस्सा बचा है. यह पिरामिड मिस्र के फराओ आमेनहोतेप तृतीय ने अपनी रानी के लिए बनवाया था. वैज्ञानिकों का मानना है कि ईसा पूर्व 400 या 500 में आई बाढ़ के दौरान यह बुरी तरह टूट फूट गया. यहां हाल के दिनों में कई पिरामिड तो मिले हैं लेकिन इनके भीतर कुछ बहुत खास नहीं मिला. ऐसा हमलावरों और लुटेरों की वजह से हुआ. एक पिरामिड किसी वजह से लुटेरों की निगाह से बच गया था जहां वैज्ञानिकों को एक बच्चे का कंकाल मिला, जिसने कुछ जेवर भी पहने थे. इस बच्चे की उम्र महज चार या पांच साल ही थी.

उत्तरी सूडान करीब 500 साल तक मिस्र के कब्जे में रहा जो मोटे तौर पर ईसापूर्व 1000 तक चला. उसका सांस्कृतिक असर मीरो शासन पर करीब 700 सालों तक चला. रिली शिलालेखों और इन पिरामिडों से वहां के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के बारे में जानकारियां जुटा रहे हैं और उनका दावा है कि अभी बहुत कुछ सामने आना बाकी है.

एनआर/एमजे (एएफपी)

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