सूफी संतों की रचनाओं में भी झलकती है होली की मस्ती
शिवप्रसाद जोशी
२९ मार्च २०२१
लोक स्मृतियों की तहों से ही निकलते हैं त्योहार. वे बुराई से अच्छाई की ओर लौटती स्मृतियां हैं, इन्हीं में एक है होली जो यादों के पानी में ढेर सारे रंग घोलकर सबकुछ भूल जाने का निराला अनुभव बन जाती है.
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होली को मनाए जाने का इतिहास बहुत पुराना है. आर्यों के समय से. 11वीं सदी में फारस से आए विद्वान अल बरूनी ने भी होली मनाने का जिक्र किया है. कुदरत की करवट के स्वागत का पर्व भी होली है. वसंत की विदाई और फागुन का आगमन. सरसों के पीले फूल, पलाश की लालिमा, गेहूं की बालियां, किसानों के गीत सब मिलकर होली का एक रंगीला रोमान रच देते हैं. जितना ये प्रकृति का उल्लास पर्व है उतना ही ये, बकौल रघुबीर सहाय 'एक अद्वितीय सामाजिक मौसम' भी है. संस्कृतियों और समाजों और संस्कारों की मिलीजुली रंगतें. एक विशुद्ध भारतीय सामाजिक एकजुटता का प्रतीक. जाति, धर्म और संप्रदाय के बंधनों को खोलता.
सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया, अमीर खुसरो से लेकर बहादुरशाह जफर और नजीर अकबराबादी की रचनाएं होली की खिलंदड़ी, उसके अध्यात्म, उसकी सूफियाना मस्ती और उसके विहंगम सामाजिक फैलाव के बारे में बताती हैं. आज भी होली की रंगतें देश के सांस्कृतिक वैविध्य में घुली मिली हैं. मान्यता और मिथक कुछ भी हों, कुछ भी कहें लेकिन भारत का सामाजिक तानाबाना तो मानो होली की मस्ती और रंग के रेशों से बुना गुंथा हुआ है. बेशक इसे तोड़ने वाले भी यही हैं और वे हर किस्म के सौहार्द को शक से और क्रोध से देखते आए हैं वे बस एक ही रंग जानते हैं जो हिंसा का डरावना रंग है लेकिन ये पर्व है ही ऐसा कि ऐसे रंगों को सोखता रहता है.
नजीर अकबराबादी की एक नज़्म है, "हिंद के गुलशन में जब आती है होली की बहार". वे कहते हैं: जाफरानी सजके चीरा आ मेरे शाकी शिताब मुझको तुम बिन यार तरसाती है होली कीबहार तू बगल में हो जो प्यारे, रंग में भीगाहुआ तब तो मुझको यार खुश आती है होली कीबहार
कमोबेश इसी भावना को अभिव्यक्त करते हुए कवि गुरू रबींद्रनाथ टैगोर ने अपनी रचना ऋतुरंगशाला में एक जगह लिखा है, "यह दोल (फाल्गुनी पूर्णिमा) पाने और न पाने की एक अजीब सी विवशता के बीच झुलाता है. एक ओर मिलनोत्सव है तो दूसरी तरफ विरह और बिलगाव. इन दोनों को छू-पाकर ही तो विश्व का हृदय दोल (झूला) झूल रहा है."
जाने किन किन रूपों में होली मनाई जाती है इस देश में. ब्रज की होली, बरसाने की लठमार होली, पहाड़ों की शास्त्रीय संगीत की बैठकी और खड़ी होली, मालवा की होली, हरियाणा की धुलंडी, बंगाल की दोल यात्रा, महाराष्ट्र में खास गुलाल, पंजाब का होला, राजस्थान की फूलों की होली, छत्तीसगढ़ में लोकगीतों की लाग-डांट, बिहार यूपी का फगुआ और आदिवासी जन का भगोरिया, न जाने कितनी परंपराओं और फिर दुनिया के कई देश जहां रंग और पानी की हलचलों के अपने अपने प्रतीक उत्सव हैं.
दुनिया के सबसे रंगा रंग त्योहार
क्या आप जानते हैं कि होली को दुनिया का सबसे बड़ा रंगों का त्योहार माना जाता है. एक नजर पूरी दुनिया में मशहूर रंगों से भरे त्योहारों पर.
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10. रियो डे जेनेरो का कार्निवाल, ब्राजील
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09. म्यूनिख का अक्टूबर फेस्ट, जर्मनी
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08. चाइनीज न्यू ईयर, चीन
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07. सैंट पैट्रिक डे, आयरलैंड
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06. लियों का लाइट फेस्टिवल
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05. वेनिस का कार्निवाल, इटली
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04. हेलोवीन, अमेरिका
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03. ला टोमाटिना, स्पेन
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02. बर्निंग मैन, अमेरिका
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01. होली, भारत
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मिथकीय आख्यानों में कृष्ण और राधा, शिव और पार्वती की ठिठोलियां होली के रंगों में सराबोर हैं. निश्छल-उन्मुक्त प्रेम ही होली की पहचान है. शायद अकेला उत्सव यही है जिसके लिए न जाने कितने लोकगीत लिखे गए होंगे. उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में कितनी भाषाओं बोलियों में.
पहाड़ी लोककवि गिर्दा गाते थेः बांजबुरांस की कुमकुम मारो....
डाना काना रंग दे बसंती नारंगी...
पार्वती ज्यूं को झिलमिल चादर.....
रंग में डूबकर अपने आपको विस्मृत करते हुए हमेशा हमेशा की याद में ढल जाओ, आओ होली मनाओ.
नंददास ने जैसे कहा है... रंग रंगीली राधिका
रंगी रंगीली पीय
इहि रंग भीनै नित बसो
नंददास के हीय
सब कुछ भूलकर एकात्म हो जाने का पर्व है होली. ये विस्मृति, होशोहवास भूल जाने या सुध खो देने की कमजोरी नहीं है. ये जैसे एक मस्ती की धुन है, एक आंतरिक आल्हाद. भूलों को भूलती हुई भूल. गल्तियों और नादानियों को भुलाने की घड़ी. परिपक्व हो जाने का क्षण.
लेकिन होली की मिठास और इसकी सादगी के नशे में कुछ और नाजायज भी घुल रहा है. कुछ अंधेरे तेजी से हमारे सामूहिक प्रकाश को निगलने के लिए बढ़े आ रहे हैं, उत्पाती हिंसाएं चारों ओर इकट्ठा हैं, बाजार की शक्तियां अलग अलग रूपों में हमें डराती हैं, सांप्रदायिक ताकतें वर्चस्व और समानुरूप पहचानें गढ़ने पर आमादा हैं. ऐसे इस कठिन समय में करुणा, प्रेम और क्षमा के रंगों की हिफाजत का काम और चुनौती भरा है.
इन्हें अक्षुण्ण रखने की कामना में हम भी शामिल होना चाहेंगे जैसी कामना कुमाऊं की बैठकी होली को शुरू करते हुए गणेश से की जाती हैः "आज विघ्न हरो महाराज होली के दिन में."
भारत की होली जैसी होती है जर्मनी में कार्निवाल की धूम
दुनिया में सबसे बड़ा कार्निवाल ब्राजील में मनाया जाता है. उसके बाद नंबर आता है जर्मनी के कोलोन का. लेकिन ये ब्राजील के कार्निवाल से बहुत अलग होता है और कई मायनों में भारत की होली की याद दिलाता है.
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पहचान कौन?
जिस तरह होली के रंगों में डूबे लोगों के असली चेहरे पहचानना मुश्किल होता है कुछ वैसा ही कार्निवाल के दौरान भी होता है. फर्क ये है कि यहां लोग बहुत मेहनत से अपने चेहरे को रंगते हैं. कोई जोकर बनता है तो कोई शेर.
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क्या पहनें?
त्यौहार कोई भी हो, कपड़े क्या पहनेंगे इस बारे में लोग महीनों पहले से ही सोचने लगते हैं. गुजरात में नवरात्रि में जब गरबा होता है तो हर रात के लिए अलग पोशाक तैयार की जाती है. यही हाल कार्निवाल का भी. छह दिन तक चलने वाली पार्टी के लिए रोज एक अलग लिबास चाहिए.
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सस्ता उपाय
अगर कॉस्ट्यूम खरीदने या बनाने में पैसा खर्च नहीं करना चाहते हैं तो सबसे आसान है कि चेहरे को जैसे तैसे पेंट कर लें. मकसद ये है कि आप मजेदार दिखें. आपको देख कर दूसरों के चेहरे पर मुस्कान दिखे. वैसे एक मजेदार सी टोपी पहन लें तो सबको अच्छा लगेगा.
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बुरा ना मानो कार्निवाल है
कोलोन में परेड के दौरान अगर कोई आपके हाथ में हाथ डाल दे या कंधे से कंधा मिला कर झूमने लगे तो बुरा मत मानिए क्योंकि कार्निवाल के संगीत पर लोग इसी तरह झूमते हैं. अनजान लोग भी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर लंबी सी कतार बना लेते हैं और खुल कर मस्ती करते हैं.
कार्निवाल का पहला दिन गुरुवार का होता है जिसे वाइबर-फास्ट-नाख्ट कहा जाता है. इस दिन पुरुषों की टाई काटने का चलन है. अकसर दफ्तरों में भी ऐसा होता है. जो महिला टाई काटती है वह गालों पर चूमती भी है. इसका कतई गलत मतलब नहीं निकाला जाता.
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पागलों का दिन
आधिकारिक रूप से कार्निवाल की शुरुआत हो जाती है नवंबर की ग्यारह तारीख यानी 11.11 को ठीक 11 बज कर 11 मिनट पर. इसे पागलों का वक्त भी कहा जाता है. नवंबर से फरवरी तक कार्निवाल से जुड़े छोटे मोटे कार्यक्रम होते हैं लेकिन असली मजा तो फरवरी में वाइबर-फास्ट-नाख्ट को 11 बज कर 11 मिनट से ही शुरू होता है.
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हफ्ते भर का उत्सव
कार्निवाल की शुरुआत होती है गुरुवार को वाइबर-फास्ट-नाख्ट के दिन और यह चलता है अगले बुधवार आशेर-मिटवॉख तक. कोलोन और आसपास के इलाके में इस दौरान स्कूलों में छुट्टी होती है. गुरुवार को लोग अकसर दफ्तरों में सज धज कर आते हैं. और शुक्रवार से छुट्टी ले कर पार्टी करने लगते हैं.
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कोलोन की परेड
सोमवार को रोजेन-मोनटाग यानी रोज-मंडे होता है. इस दिन कोलोन में बहुत बड़ी परेड निकलती है. वैसे परेड तो आसपास के शहरों में भी होती है लेकिन कोलोन जैसी नहीं. इसमें कई झांकियां होती हैं जो बच्चों और बड़ों के लिए टॉफी चॉकलेट की बरसात करती चलती हैं.
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कामेले
कार्निवाल के दौरान हर बच्चे की जबान पर यह शब्द होता है. कामेले यानी वो टॉफी चॉकलेट जो बच्चे परेड के दौरान जमा करते हैं. कुछ लोग तो अपने साथ छाता ले कर जाते हैं. इसे उल्टा कर के पकड़ लेते हैं ताकि टॉफियों की बरसात से पूरा छाता भर जाए.
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बीयर ही बीयर
कार्निवाल के दौरान बच्चों का ध्यान कामेले पर तो बड़ों का सारा ध्यान बीयर पर होता है. अगर आपको लगता है कि जर्मनी में लोग अक्टूबर फेस्ट के दौरान ही बीयर पीते हैं तो ऐसा नहीं है. यहां हर इलाके की अलग बीयर होती है और कार्निवाल में कोलोन की कोएल्श पी जाती है.
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अलाफ!
जिस तरह से होली में रंग फेंकते वक्त जोर से "होली है" कहा जाता है या फिर मकर संक्रांति के दिन पतंग काटते वक्त "काई पो छे" कहते हैं, ऐसे ही कार्निवाल के दौरान "अलाफ" कहा जाता है. पूरा हफ्ता अलाफ की धूम होती है. कार्निवाल के संगीत में भी इस शब्द का खूब इस्तेमाल होता है.
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कार्निवाल की गुजिया
बिना गुजिया के होली क्या और बिना बर्लिनर के कार्निवाल क्या. इस मिठाई को बर्लिनर कहा जाता है लेकिन इसका बर्लिन से कोई लेना देना नहीं है. असली नाम प्फानकूखन यानी पैनकेक है और होता ये एक डोनट जिसके अंदर जैम भरा होता है. कार्निवल के दौरान बेकरियां इनसे भरी रहती हैं.