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सूरज की गर्मी से निकला तूफान

८ मार्च २०१२

सूरज तूफानों की चपेट में है. 11 साल में एक बार सूरज की सतह में कुछ अहम बदलाव आते हैं, जिनका असर पृथ्वी पर आधुनिक जीवन पर भी पड़ रहा है. अभी कुछ ऐसा ही हो रहा है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

आजकल सूरज की सतह पर उफन रहे तूफानों की काफी चर्चा हो रही है. और क्यों न हो. सूरज इतने सालों से जैसे कि सोया हुआ था. अब हमारे सौरमंडल का मुखिया अपने करतब दिखा रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक सूरज अपने न्यूनतम यानी सोलर मिनिमम से हटकर मैक्सिमम में जा रहा है. आने वाले सालों में और तूफान दिखेंगे. आम जीवन में और हलचल आएगी.

शांति से अशांति तक

तारों के प्रकोप की बात भले ही किसी ज्योतिष की भविष्यवाणी जैसी लगे, लेकिन सूरज के तूफान एक वैज्ञानिक प्रक्रिया हैं. सोलर मिनिमम का मतलब एक अंतराल से है जिसमें कि सूरज का पूरा सतह एक समान हो. इस दौरान सतह में कुछ खास नहीं होता. सूरज, जो दरअसल एक तारा है, उसमें आम तारों की तरह रासायनिक प्रक्रियाएं चलती रहती हैं. सूरज के केंद्र में हाइड्रोजन कणों के बीच न्यूक्लियर रिएक्शन होता है जिससे वह हीलियम बन जाते हैं और सूरज में रोशनी इसी तरह पैदा होती है.

सोलर मिनिमम में सूरज काफी स्थिर रहता है और उसकी सतह पर तूफान नहीं आते. इसके बिलकुल विपरीत मैक्सिमम के दौरान सूरज की सतह पर काले दाग बन जाते हैं जिसकी वजह से उसके चुंबकीय क्षेत्रों में भारी बदलाव आता है. नतीजा, सौर तूफान. वैज्ञानिकों के मुताबिक यह तूफान एक विशाल बुलबुले की तरह आगे बढ़ता है. इससे पृथ्वी पर सूरज से मैग्नेटिक, रेडियो और विकिरण वाले कणों की बारिश होती है.

तूफानों का आना

सूरज को वैज्ञानिकों ने क्षेत्रों में मापा है और हर इलाके को अंकों के जरिए एक पहचान दी है. इस वक्त वैज्ञानिक सूरज के 1429 इलाके से काफी चिंतित हैं. उनके मुताबिक सूरज के इस क्षेत्र में भारी तूफान आएंगे क्योंकि सूरज इस जगह से अपनी गर्मी और प्लाजमा उगलता है. इनकी गति 60 लाख किलोमीटर से भी ज्यादा है और इस साल का यह सबसे तीव्र तूफान है. इससे पहले अगस्त 2011 में एक तूफान आया था.

तस्वीर: NASA/AP/dapd

नासा में भौतिकी के वैज्ञानिक डेविड हैथवे कहते हैं कि सूरज में इस वक्त बहुत सारे काले धब्बे हैं. इनसे फिर अणुओं से भी छोटे कण सूरज से बाहर निकलते हैं जो सूरज से निकल रहे पतले धागों की तरह होते हैं. और क्योंकि यह कण धनात्मक या ऋणात्मक यानी पॉजिटिव या नेगेटिव होते हैं. इनसे रेडियो और वायरलेस से चल रहे सारे उपकरण प्रभावित होते हैं.

आम तौर पर पृथ्वी में इसका असर कम होता है, लेकिन अब सैटेलाइटों पर निर्भरता बहुत बढ़ गई है. मोबाइल, टेलीविजन और यहां तक कि रास्ता पहचानने वाले जीपीएस भी सैटेलाइटों से चलते हैं. सौर तूफान इनमें बाधा डाल सकते हैं. लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि सैटेलाइट से चलने वाले उपकरणों के अलावा कोई खास परेशानी नहीं होनी चाहिए.

अमेरिकी सरकार के अंतरिक्ष मौसम जानकारी विभाग में काम कर रहे बिल मुर्ताग कहते हैं, "यह एक बड़ी घटना है लेकिन यह बहुत तीव्र नहीं होगी." लेकिन इस इलाके से आने वाले दिनों में और तूफान पृथ्वी की तरफ अपना रुख कर सकते हैं.

सूरज के रंगीले करतब

अल्ट्रावायलेट किरणों से लिए गए इस तस्वीर में सूर्य से धरती की ओर आ रही किरणों को देखा जा सकता हैतस्वीर: NASA/AP/dapd

दिलचस्प बात यह है कि शाम के वक्त यह आसमान को रंगीला बना देती हैं. केंद्रीय एशिया में इस बार लोगों को चमकीले और सतरंगी सूर्यास्त देखने का मौका मिल सकता है. इन्हें ऑरोरा कहते हैं.

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के मुताबिक,"सूरज में तूफानों का बढ़ना इस 11 साल वाली सोलर साइकिल के मुताबिक है. यह 2013 में सबसे ज्यादा होगा." सबसे पहला सौर तूफान 1859 में रिकॉर्ड किया गया. 1972 में एक बड़े तूफान ने अमेरिका के मध्य पश्चिमी राज्यों में टेलीफोन लाइनों को अस्त व्यस्त कर दिया. 1989 में इसी तरह के तूफान से बिजली की लाइनें खराब हो गईं और कनाडा के केबेक इलाके में परेशानी हुई. लेकिन सूरज के तूफानों के पृथ्वी पर असर के बारे में वैज्ञानिकों को पिछली दशक में ही पता चला है.

रिपोर्टः एपी, एएफपी, डीपीए/एमजी

संपादनः ए जमाल

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