म्यांमार में रोहिंग्या मुसमलानों के मुद्दे पर आंग सान सू ची से नोबेल पुरस्कार वापस लेने की मांग हाल के दिनों में तेज हुई है. लेकिन नोबेल फाउंडेशन का कहना है कि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं है.
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स्टॉकहोम में नोबेल फाउंडेशन के प्रमुख लार्स हाइकेनस्टेन ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा है कि म्यांमार की नेता के तौर पर आंग सान सू ची के कुछ कदम "अफसोसनाक" हैं, लेकिन उन्हें मिला नोबेल पुरस्कार वापस नहीं लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि पुरस्कार दिए जाने के बाद के वर्षों में हुए घटनाक्रम की वजह से पुरस्कार वापस लेने का कोई मतलब नहीं है.
अगस्त में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में म्यंमार की सेना पर रोहिंग्या मुसलमानों की बड़े पैमाने पर हत्याओं के आरोप लगाए गए. रिपोर्ट कहती है कि "नरसंहार के इरादे" की गई इन हत्याओं के कारण ही सात लाख से ज्यादा लोगों ने जान बचाने के लिए बांग्लादेश में शरण ली है.
म्यांमार में इस समय सू ची की पार्टी सत्ता में है और उन पर इस मुद्दे पर पर्याप्त कदम ना उठाने के इलजाम लग रहे हैं. उन्हें 1991 में लोकतंत्र के लिए अपने संघर्ष के लिए शांति के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था. लेकिन अब सत्ता में रहते हुए आम लोगों की "हिफाजत ना करने" के लिए उनसे नोबेल पुरस्कार वापस लेने की आवाजें उठ रही हैं.
नोबेल शांति पुरस्कार तस्वीरों में
दुनिया भर में स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमले हो रहे हैं और लोकतंत्र के इस खंभे को कमजोर करने की कोशिश हो रही है. 2021 का नोबेल शांति पुरस्कार दो पत्रकारों को दिया जाना अभिव्यक्ति की आजादी के महत्व को दिखाता है.
तस्वीर: AP
2021: पत्रकारों को मिला सम्मान
इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार फिलीपींस के समाचार संगठन 'रैपलर' की सीईओ मारिया रेसा और रूसी पत्रकार दिमित्री मुरातोव को दिया गया. उन्हें 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बचाव करने के प्रयासों' के लिए यह पुरस्कार दिया गया है.
2020: वर्ल्ड फूड प्रोग्राम
नोबेल कमेटी की अध्यक्ष बेरिट राइस एंडर्सन के अनुसार 2019 में 88 देशों के करीब 10 करोड़ लोगों तक वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की सहायता पहुंची. डब्ल्यूएफपी दुनिया भर में भूख को मिटाने और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने वाला सबसे बड़ा संगठन है. कोरोना के दौर में इस संगठन का महत्व और ज्यादा बढ़ गया है.
तस्वीर: Maciej Moskwa/NurPhoto/picture-alliance
2019: अबीय अहमद
इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबीय अहमद को एरिट्रिया के साथ जंग के बाद रिश्तों में 20 साल से चले आ रहे ठहराव को खत्म करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया.
तस्वीर: AFP/E. Soteras
2018: नादिया मुराद और डेनिस मुकवेंगे
इराक की यजीदी मानवाधिकार कार्यकर्ता नादिया मुराद और कांगो के स्त्रीरोग विशेषज्ञ डेनिस मुकवेंगे को 2018 का शांति का नोबेल पुरस्कार मिलेगा. युद्ध और संघर्षों के दौरान हथियार के तौर पर यौन हिंसा के इस्तेमाल को रोकने के अपने प्रयासों के कारण वे इस पुरस्कार के लिए चुने गए हैं.
2017: आईसीएएन
दुनिया भर में परमाणु हथियारों के खिलाफ अभियान चला रहे संगठन इंटरनेशनल कैम्पेन फॉर एबॉलिशमेंट ऑफ न्यूक्लियर वीपंस को इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Pedersen
2016 युआन मानुएल सांतोस
कोलंबिया के राष्ट्रपति युआन मानुएल सांतोस को फार्क विद्रोहियों के साथ समझौता करने के लिए 2016 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया. सांतोस ने इस पुरस्कार को देश के गृहयुद्ध के पीड़ितों को समर्पित कर दिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Legaria
2015: नेशनल डायलोग क्वार्टेट
ट्यूनीशिया के राष्ट्रीय डायलोग क्वार्टेट को यह सम्मान 2011 की क्रांति के बाद बहुलवादी लोकतंत्र के निर्माण के लिए दिया गया है. इस क्रांति के बाद अरब देशों में लोकतांत्रिक आंदोलनों वाले अरब वसंत की शुरुआत हुई थी.
तस्वीर: Reuters/A. Mili
2014: मलाला और कैलाश सत्यार्थी
इस साल शांति के लिए नोबेल पुरस्कार भारत में बचपन बचाओ आंदोलन के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए लड़ने वाली मलाला यूसुफजई को दिया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
2013: ओपीसीडब्ल्यू
ऑर्गेनाइजेशन फॉर प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वीपन्स यानी ओपीसीडब्ल्यू को रासायानिक हथियारों के निशस्त्रीकरण की कोशिश के लिए नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाएगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
2012: यूरोपियन यूनियन
60 सालों से ज्यादा से शांति, मैत्री, लोकतंत्र और मानवाधिकार की दिशा में यूरोपियन यूनियन के योगदान को लिए 2012 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया.
तस्वीर: Cornelius Poppe/AFP/Getty Images
2011: मानवाधिकारों के लिए
लाइबेरिया की राष्ट्रपति एलेन जॉनसन सरलीफ, लाइबेरिया की शांति कार्यकर्ता लेमा बोवी और यमन की कार्यकर्ता तवाकुल करमन को महिला अधिकारों की खातिर संघर्ष के लिए संयुक्त रूप से 2011 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया.
तस्वीर: dapd/DW-Montage
2010: ल्यू चियाओबो, चीन
चीन में अहिंसा और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए प्रयास करने वाले चियाओबो को 2010 के शांति पुरस्कार से नवाजा गया.
तस्वीर: picture alliance/dpa
2009: बराक ओबामा, अमेरिका
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और सहयोग के लिए ओबामा ने 2009 में यह सम्मान हासिल किया. हालांकि उस समय उन्हें शांति पुरस्कार दिया जाना खासा विवादास्पद रहा.
तस्वीर: AP
2008: मारत्ती अहतिसारी, फिनलैंड
अंतरराष्ट्रीय संघर्षों को सुलझाने में अहतिसारी का तीस सालों से अहम योगदान रहा है जिसके लिए उन्हें शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
तस्वीर: AP
2007: आईपीसीसी
इंटरनेशनल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज(आईपीसीसी) ने 2007 में नोबेल शांति पुरस्कार हासिल किया. तस्वीर में अमेरिका के अल गोर और भारत के राजेंद्र पचौरी.
तस्वीर: AP
2006: मुहम्मद यूनुस और ग्रामीण बैंक, बांग्लादेश
आर्थिक और सामाजिक विकास की दिशा में बांग्लादेश के मुहम्मद यूनुस और उनके ग्रामीण बैंक को नोबेल शांति पुरस्कार 2006 में दिया गया.
तस्वीर: AP
2005: मोहम्मद अलबरदेई, मिस्र
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी और मुहम्मद अलबरदेई के प्रयास रहे कि परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल सैन्य जरूरतों के लिए ना हो, इसका इस्तेमाल केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही हो. उनके प्रयासों को 2005 में शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
तस्वीर: AP
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नोबेल फाउंडेशन के प्रमुख हाइकेनस्टेन ने कहा, "जो कुछ वह म्यांमार में कर रही हैं, उस पर हमारी भी नजर है. उस पर सवाल उठाए गए हैं. हम मानवाधिकारों के साथ खड़े हैं और ये हमारे मौलिक मूल्यों में से एक है. बेशक इसके लिए काफी हद तक वह जिम्मेदार हैं और यह बहुत ही अफसोसनाक है."
म्यांमार की सरकार के प्रवक्ता जाव ह्ताए से जब इस के बारे में फोन पर संपर्क करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कोई जबाव नहीं दिया. उन्होंने कहा कि वह मीडिया से फोन पर बात नहीं करते. उन्हें जो कहना है कि वह हफ्ते में दो बार होने वाली अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहेंगे.
बिना रोहिंग्या अब ऐसा दिख रहा है रखाइन
पिछले साल म्यांमार के उत्तरी रखाइन में हुई हिंसा ने देश के अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया, जिसके चलते गांव खाली हो गए. लेकिन अब रखाइन के इलाकों को फिर से बसाया जा रहा है.
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बन रहा मॉडल गांव
रखाइन के इस इलाके में अब बौद्ध धर्म के झंडे नजर आने लगे हैं. इस क्षेत्र को एक मॉडल गांव की शक्ल दी जा रही है. रोहिंग्या मुसलमानों पर हुई हिंसा को नकारने वाली म्यांमार सरकार कहती आई है कि गांवों को इसलिए साफ किया गया है ताकि वहां लोगों को फिर से बसाने की योजना पर काम किया जा सके. इसके तहत बेहतर सड़कें और घर बनाए जाएंगे.
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आ रहे हैं नए लोग
पलायन कर रखाइन पहुंचे देश के अन्य इलाकों के लोगों को यहां बसाया जा सकता है. हालांकि जो लोग इस क्षेत्र में अब रहने आए हैं वे देश के दक्षिणी इलाके से आए गरीब हैं जिनकी संख्या फिलहाल काफी कम है.
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लोगों में डर
ये नए लोग इन इलाकों में काफी उम्मीदों के साथ रहने आए हैं. लेकिन अब भी उन्हें यहां से भागे लोगों के वापस आने का डर सताता है. अब तक तकरीबन सात लाख रोहिंग्या म्यांमार से बांग्लादेश भाग चुके हैं.
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गैर मुस्लिमों वाला बफर जोन
इस क्षेत्र के पुनर्निमाण के लिए देश में "कमेटी फॉर द रिक्सट्रंक्शन ऑफ रखाइन नेशनल टेरिटरी" (सीआरआर) का गठन किया गया. कमेटी को रिफ्यूजी संकट के बाद ही बनाया गया था. एक स्थानीय नेता के मुताबिक सीआरआर की योजना इस क्षेत्र को गैर मुस्लिमों वाले बफर जोन के रूप में स्थापित करने की है.
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सीआरआर जुटाएगा पैसा
रखाइन से सांसद ओ हला सा का कहना है कि अब तक ये क्षेत्र मुस्लिमों के प्रभाव में रहा है. लेकिन अब जब वे यहां से चले गए हैं तो इसमें रखाइन के लोगों को जगह मिलेगी. उन्होंने बताया कि सीआरआर यहां रहने वालों के लिए घर और पैसे जुटाने का काम करेगी.
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64 परिवार पहुंचे
इस क्षेत्र में अब तक सीआरआर ने 64 परिवारों के 250 लोगों को रहने की इजाजत दी है. इसके अलावा 200 परिवारों के रहने को लेकर विचार किया जा रहा है जो फिलहाल वेटिंग लिस्ट में है. इनमें से अधिकतर दिहाड़ी मजदूर या गरीब तबके से आने वाले लोग हैं.
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म्यांमार की सरकार ने रोहिंग्या लोगों पर यूएन की रिपोर्ट को "एकतरफा" कह कर खारिज किया है. उसका कहना है कि पिछले साल अगस्त में सैन्य बलों पर हमलों के बाद ही सैन्य कार्रवाई की गई जो एक उचित उग्रवाद विरोधी अभियान था. सू ची ने पिछले महीने माना कि उनकी सरकार रखाइन प्रांत में हालात को बेहतर तरीके से संभाल सकती थी, लेकिन उन्होंने यह नहीं माना कि इसमें कोई "बड़ा अपराध" हुआ है.
हाइकेनस्टेन ने कहा, "हम यह नहीं समझते हैं कि पुरस्कारों को वापस लिया जाना चाहिए. इससे हमें लगातार चर्चा करती रहनी होगी कि जिन लोगों को पुरस्कार दिया गया है, वे उसके बाद क्या कर रहे हैं. हमेशा ऐसे कुछ नोबेल विजेता रहे हैं और आगे भी रहेंगे जो पुरस्कार मिलने के बाद कुछ ऐसे कामों में शामिल हो जाते हैं, जिन्हें हम सही नहीं मानते. मुझे लगता है कि हम ऐसा होने से रोक नहीं सकते हैं."
नोबेल शांति पुरस्कार देने वाली नॉर्वे की नोबेल कमेटी भी कह चुकी है कि उनके नियम किसी व्यक्ति से पुरस्कार वापस लेने की अनुमति नहीं देते.
एके/एमजे (रॉयटर्स)
कुछ पाकिस्तानी मलाला से क्यों नफरत करते हैं?
सिर्फ 17 साल की उम्र में शांति का नोबेल जीतने वाली मलाला यूसुफजई अब एक ग्लोबल आइकन हैं. लेकिन उनके अपने देश में बहुत से लोग उन्हें पसंद नहीं करते हैं. आखिर इसकी वजह क्या है?
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Walsh
मलाला ने क्या किया है?
पाकिस्तान में मलाला के कई आलोचकों का कहना है कि आखिर ऐसा उन्होंने किया क्या है कि उन्हें इतना मान सम्मान दिया जा रहा है. मलाला बचपन से ही लड़कियों की शिक्षा के लिए मुहिम चल रही हैं, लेकिन ये लोग इसे ज्यादा तवज्जो नहीं देते.
तस्वीर: Reuters/E. Garrido
बदनाम करने की साजिश
मलाला पर अक्टूबर 2009 में तालिबान ने जानलेवा हमला किया. ब्रिटेन में महीनों के इलाज के बाद वह ठीक हो पाईं. लेकिन मलाला के आलोचक इसे पूरे मामले को पाकिस्तान को बदनाम करने की साजिश बताते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उन्हें कोई नहीं पूछता
मलाला को पसंद न करने वालों का कहना है कि पाकिस्तान बहुत से बच्चों के साथ उससे भी बुरा सलूक होता है जो मलाला के साथ हुआ. लेकिन उन्हें कोई नहीं पूछता. इस सिलसिले में वे मलाला के साथ हमले में घायल हुई साजिया कायनात का नाम भी लेते हैं.
तस्वीर: Reuters/Parwiz
फर्जी हमला
पाकिस्तान में आपको कई ऐसे भी लोग मिल जाएंगे जो मलाला पर हुए हमले को एक ड्रामा मानते हैं. यही नहीं, वहां तो कई लोग 166 लोगों की जान लेने वाले मुंबई हमलों के बारे में भी ऐसा ही सोचते हैं.
तस्वीर: picture alliance / AP Photo
पश्चिमी एजेंडे पर
कई लोग कहते हैं कि मलाला यूसुफजई पश्चिम के एजेंडे को लागू कर रही हैं. सबसे पहले वह अपने ब्लॉग से चर्चा में आई थीं, जिसमें वह तालिबान के राज में मुश्किल जिंदगी के बारे में लिखा करती थीं. इसी के बाद तालिबान उन पर हमला किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ओबामा की तारीफ क्यों?
तारीफ करने के लिए भी मलाला को पाकिस्तान में कई निशाना बनाते हैं. उनके मुताबिक मलाला पश्चिमी मूल्यों का प्रचार कर रही हैं, हालांकि खुद मलाला हमेशा लड़कियों और उदार मानवीय मूल्यों की बात करती हैं.
तस्वीर: Reuters
तो पाकिस्तान में रहें..
कई लोग सोशल मीडिया पर यह भी लिखते हैं कि अगर मलाला को पाकिस्तान से इतना ही प्यार है तो फिर वह पाकिस्तान में आकर क्यों नहीं रहतीं. हालांकि इसका जबाव है सुरक्षा. 2009 के हमले के बाद से ही मलाला का परिवार पाकिस्तान से बाहर रह रहा है.
तस्वीर: Getty Images/D. Angerer
आई एम नॉट मलाला
मलाला को जब 2014 में नोबेल पुरस्कार मिला तो पाकिस्तान के हजारों स्कूलों ने उनके संस्मरण "आई एम मलाला" को बैन करने की मांग की थी. वहीं यह किताब दुनिया की बेस्ट सेलर्स में से एक है और कई भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ है.
तस्वीर: Andrew Cowie/AFP/Getty Images
चुभते सवाल
आलोचक कहते हैं कि मलाला ने अपनी किताब में इस्लाम, चरमपंथ और पाकिस्तानी सेना को लेकर वही सब बातें कही हैं जिनके जरिए पश्चिमी देश पाकिस्तान को निशाना बनाते हैं. किताब में पाकिस्तान के अस्तित्व से जुड़े सवालों भी आलोचकों को चुभते हैं.
तस्वीर: Reuters
अमेरिका विरोध
हाल के सालों में पाकिस्तान में अमेरिका विरोधी भावना मजबूत हुई हैं. इससे भी मलाला के विरोध को हवा मिलती है. पाकिस्तान में अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन को तलाशने में अमेरिका की मदद करने वाले एक पाकिस्तानी डॉक्टर को अब तक जेल में रखा गया है.