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सेकेंड हैंड पेसमेकर भारत के गरीबों के लिए

२९ नवम्बर २०११

सेकेंड हैंड गाड़ी, फर्नीचर, मकान और दूसरी चीजें तो बहुत पहले से दुनिया में बिकती हैं पर अब दिल धड़काने वाला पेसमेकर भी इस फेहरिश्त में शामिल हो गया है. अमेरिकी मरीजों का इस्तेमाल किया पेसमेकर भारत के गरीबों को लग रहा है.

तस्वीर: AP

चंद्रकांत पवार की खुशकिस्मती है कि उनकी जान बच गई. सितंबर में टेक्सटाइल मिल के इस पूर्व कर्मचारी के दिल की धड़कनें जब घट कर 20-30 प्रति मिनट की दर पर आ गईं तो उसे एक कृत्रिम पेसमेकर लगाया गया. वैसे तो इसमें कोई असामान्य बात नहीं लग रही लेकिन जब आपको यह पता चलेगा कि उनको लगाया गया पेसमेकर पुराना थो तो आप हैरान रह जाएंगे. पुराने पेसमेकर का मतलब है कि इसे पहले भी किसी को लगाया जा चुका है. 61 साल के पवार को लगाया गया पेसमेकर पहले किसी अमेरिकी शख्स को लगाया गया था और उसकी मौत के बाद उसके बदन से इसे निकाल लिया गया. बाद में इसे ठीक करके दोबारा इस्तेमाल के लायक बना दिया गया. पवार कहते हैं, "मैं पहले से बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं और कोई परेशानी नहीं है."

तस्वीर: AP

पवार को मुंबई के निजी अस्पताल होली फैमिली में यह पेसमेकर लगाया गया. यह अस्पताल पिछले एक दशक से अपना यह कार्यक्रम चला रहा है जिसमें बेहद गरीब मरीजों के इलाज के लिए पुराने पेसमेकर सीधे अमेरिकी से मंगाए जाते हैं. यह योजना डैनियल मास्कारेन्हास ने तैयार की थी और इसके तहत दूसरे पुराने उपकरण भी मंगाए जाते हैं. सारे उपकरण या तो पहले इस्तेमाल किए जा चुके हैं या फिर ऐसे हैं जिनकी एक्स्पायरी डेट बीत चुकी है.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

भारत में जन्मे और पेन्सिल्वेनिया में प्रैक्टिस कर रहे कार्डियोलॉजिस्ट ने फोन पर समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "कुछ डॉक्टर गोल्फ खेलते हैं लेकिन मैं अंतिम संस्कार के केंद्रों में जाता हूं. जब मुझे कोई पेसमेकर मिल जाता है जिसकी आयु पांच साल से ज्यादा बची हो तो मुझे कोई खजाने के मिलने जैसे अहसास होता है. मुझे इससे खुशी मिलती है क्योंकि इससे किसी ऐसे गरीब का इलाज होगा जो नया पेसमेकर नहीं खरीद सकता." मास्कारेन्हास और ह्यूस्टन में टेक्सस यूनिवर्सिटी के हेल्थ साइंस सेंटर में मौजूद उनके सहयोगी भारत कांठरियाने इस योजना को अमेरिकन जनरल ऑफ कार्डियोलॉजी में अक्टूबर में लिखे एक लेख में इस योजना का जिक्र किया. 2004 से 2010 के बीच अमेरिकी फनेरल होम्स से मिले 53 पेसमेकर दान में मिले. इन्हें दोबारा तैयार कर होली फैमिली अस्पताल में दोबारा इस्तेमाल के लिए तैयार किया. इनमें से 37 नए मरीजों में लगाए गए जब कि 16 खराब पेसमेकरों को बदला गया.

तस्वीर: Fotolia/beerkoff

इस योजना ने भारत के गरीब लोगों के लिए मौजूद स्वास्थ्य सुविधाओं की सच्चाई सामने ला कर रख दी है. एक तरफ तो बेहतरीन सुविधाओं वाले आलीशान निजी अस्पताल हैं जो दुनिया भर से मरीजों को अपने यहां बुला रहे हैं दूसरी तरफ देश की गरीब जनता है जिसके पास इन अस्पतालों की ओर देखने की भी हिम्मत नहीं. गरीब लोगों को तो बुनियादी मेडिकल सुविधा हासिल करने के लिए भी कर्ज लेना पड़ता है. भारत में नया पेसमेकर करीब डेढ़ लाख रुपये में मिलता है जिसकी आयु 10 साल होती है. ज्यादातर लोगों के लिए यह एक महंगा सौदा है. ऐसे में ये पुराने पेसमेकर गरीबों को जीवनदान दे रहे हैं.

मास्कारेन्हास और कांठरिया दोनों इस योजना को आगे बढ़ाना चाहते हैं लेकिन उन्हें पता है कि इसकी राह में नियमों को रोड़ा आएगा. नीतिगत आधार पर मरीज और उनके घरवाले भी इसका विरोध करेंगे. इन सब मुश्किलों से पार पा लें तो भी तो भी यह सबके बजट में नहीं आएगा क्योंकि पेसमेकर की लीड दोबारा इस्तेमाल करने लायक नहीं होती है. वैसे इसमें कुछ अच्छी बातें भी हैं क्योंकि मरीजों के घरवालों की सहमति लेना अनिवार्य है और ज्यादातर मामलों में समय का मसला नहीं होता ऐसे में लोग आसानी से इस बात के लिए तैयार हो जाते हैं कि आखिरकार इससे किसी को जिंदगी मिल रही है.

अब पवार के परिवार को ही देखिए उन्हें इस बात से कोई सरोकार ही नहीं कि पेसमेकर कहां से आया. उनकी बीवी कहती हैं, "मुझे लगता है सब ईश्वर की कृपा है."

रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन

संपादनः ओ सिंह

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