क्या टेक्नोलॉजी के सहारे बलात्कार और यौन हिंसा के मामलों में कमी आ सकती है? म्यांमार में ऐसी ही कोशिश हो रही है. समाज के सबसे रुढ़िवादी तबकों में टेक्नोलॉजी की मदद से यौन शिक्षा के जरिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है.
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इस साल मई में एक प्राइवेट नर्सरी में तीन साल की बच्ची के साथ बलात्कार की घटना पर म्यांमार में बहुत रोष देखा गया. बहुत से लोग सड़कों पर उतरे और उन्होंने न्याय की मांग की. साथ ही उन्होंने देश में सेक्स एजुकेशन की कमी का मुद्दा भी उठाया. म्यांमार में 2016 में बलात्कार के कुल 1,100 मामले सामने आए थे जिनकी संख्या बढ़कर 2018 में 1,500 हो गई. स्थानीय मीडिया ने सरकारी आंकड़ों के हवाले से कहा है कि बलात्कार का शिकार बनने वालों में दो तिहाई बच्चे शामिल हैं.
अंग्रेजी टीचर रह चुकीं हला हला विन ने टेक्नोलॉजी के सहारे शिक्षा में बड़े बदलावों का बीड़ा उठाया है. इसके लिए उन्होंने एक संस्था बनाई है जिसकी कोशिशों को काफी सराहा जा रहा है. यांगोन में रहने वाली विन ने बताया, "इससे बहुत से माता पिता का दिल टूटा लेकिन यह हमारे लिए खतरे की घंटी थी. अब हम सेक्स एजुकेशन को वर्जित विषय मानकर छोड़ नहीं सकते."
38 साल की विन ने प्रतिष्ठित हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है. न्यूयॉर्क की वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने पिछले महीने उनका नाम साल के 40 सामाजिक उद्यमियों की सूची में शामिल किया और म्यांमार में लाखों छात्रों की शिक्षा के तौर तरीकों में बदलाव लाने की उनकी कोशिशों को सराहा. वह अपने काम में खास तौर से ऑग्मेंटेड रियलिटी (एआर) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही हैं, जो दुनिया भर में कला से लेकर विमान उड़ाने की ट्रेनिंग तक में इस्तेमाल हो रही है.
इंटरनेट में यूं तो हर तरह के मुद्दे पर जानकारी मौजूद होती है लेकिन अगर बात सेक्स की हो, तो अक्सर इस पर विवाद हो जाता है, फिर चाहे जर्मनी हो या भारत.
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क्या है मसला?
जर्मनी में हाल ही में सेक्स एजुकेशन वाली एक वेबसाइट लॉन्च हुई जो विवादों में घिरी है. इसमें दो मसले हैं, पहला यह कि इसे शरणार्थियों के लिए बनी कई वेबसाइटों में से एक बताया जा रहा है और दूसरा कि इसमें ऐसे कई चित्र और पिक्टोग्राम हैं जिनसे लोगों को आपत्ति है.
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क्या जरूरत है?
वेबसाइट को 12 भाषाओं में पढ़ा और सुना जा सकता है. जर्मनी में कई अलग अलग देशों से नाता रखने वाले लोग रहते हैं और वेबसाइट बनाते समय उन सभी की भाषाओं के बारे में सोचा गया. कई देशों में सेक्स पर बात करना ठीक नहीं माना जाता, ऐसे में वेबसाइट के जरिये जानकारी दी जा सकती है.
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विवाद के विषय
वेबसाइट में कुल छह सेक्शन हैं: बॉडी, फैमिली प्लैनिंग, इन्फेक्शंस, सेक्शुएलिटी, रिलेशनशिप्स एंड फीलिंग्स, राइट्स एंड लॉ. सबसे अधिक विवाद "सेक्शुएलिटी" वाले हिस्से पर है क्योंकि इसमें संभोग के अलग अलग तरीकों के बारे में बताया गया है.
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अपने शरीर को जानें
"बॉडी" वाले हिस्से में वेबसाइट जननांगों के बारे में विस्तार से समझाती है. वे सवाल जिनके जवाब अक्सर बच्चों को युवावस्था में पहुंच कर तब तक नहीं मिल पाते, जब तक वे खुद अनुभव नहीं कर लेते, ऐसे जवाब यहां मौजूद हैं और वो भी चित्रों के साथ.
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गर्भ धारण
जर्मनी में टीनेज प्रेग्नेंसी के मामले काफी देखे जाते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए स्कूलों में ही सेक्स एजुकेशन पर काफी जोर दिया जाता है ताकि लड़कियों को समझाया जा सके कि वे गर्भवती होने से कैसे बचें, अगर वे गर्भपात कराना चाहती हैं तो क्या विकल्प हैं और अगर बच्चा रखना चाहें तो भी उन्हें हर तरह की मदद दी जाए.
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सेक्स एजुकेशन की पढ़ाई
जर्मन स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की क्लास होती है जिसमें ना केवल बच्चों को शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में बताया जाता है, बल्कि कंडोम के इस्तेमाल, लिंग के आकार इत्यादि पर भी जानकारी दी जाती है. इसी तरह की जानकारी इस नई 'जांजू' नाम की वेबसाइट पर भी दी गयी है.
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यौन अपराध और कानून
सेक्स शिक्षा के दौरान यह भी बताया जाता है कि बिना महिला की सहमति के पुरुष उसके साथ संबंध नहीं बना सकता. यौन अपराध, हिंसा और जननांगों की विकृत्ति कानूनी अपराध हैं और इनके लिए सजा हो सकती.
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बीमारियों से बचें
जननांगों में किस किस तरह की बीमारी हो सकती है, इनसे कैसे बचा जा सकता है, सेक्स के दौरान इसका ध्यान कैसे रखा जा सकता है और जरूरत पड़ने पर किस से मदद ली जा सकती है, यह सब जानकारी इस वेबसाइट पर मौजूद है.
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शरणार्थियों के लिए क्यों?
वेबसाइट बनाने वालों का कहना है कि इसे बनाने में तीन साल का वक्त लगा है और ऐसे में मौजूदा हालात से इसे जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए लेकिन जिन शरणार्थियों के लिए सेक्स से जुड़ी बातें वर्जित विषय हैं, उनके लिए यह फायदेमंद है.
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रोजाना 20,000
यह संख्या है उन लोगों की जो हर रोज इस वेबसाइट को देख रहे हैं. हालांकि शायद वेबसाइट का बदनाम होना ही इसकी लोकप्रियता की वजह बन गया है. लेकिन गलत जानकारी के साथ यहां पहुंचने वालों को शायद निराशा ही हाथ लगे क्योंकि यह कोई पोर्न वेबसाइट नहीं है, बल्कि शिक्षात्मक मकसद से बनी है.
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कौन तय करे सीमा?
सेक्स और जननांगों से जुड़े विषयों पर कई संस्कृतियों में चर्चा नहीं होती. भारत भी इसी समस्या से जूझ रहा है कि अगर जानकारी दें तो उसकी सीमा कैसे तय हो. हालांकि जर्मनी इसे सीमाओं में नहीं बांधता और यही वजह है कि इस खुलेपन पर विवाद उठ जाते हैं.
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विन की संस्था ने 2016 से कई ऐसे ऐप बनाए हैं जो छात्रों को कैमिस्ट्री और बायोलोजी जैसे जटिल विषयों को समझने में मदद कर रहे हैं. इनमें एआर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो रहा है जिसके तहत डिजिटल तस्वीरों को वास्तविकता पर सुपरइम्पोज कर इस तरह की सामग्री तैयार की जाती है जिसमें आप कुछ वास्तविक और कुछ वर्चुअल अनुभव ले पाएं.
सेक्स एजुकेशन पर उनके कार्यक्रम का नाम है "बे किन" यानी खतरे से मुक्त. इसे अगस्त में उस समय लॉन्च किया गया था जब बच्ची के बलात्कार की घटना के बाद समाज में सेक्स, सुरक्षा, बच्चों और सहमति पर तीखी बहस छिड़ी थी.
इसमें सेक्स एजुकेशन से जुड़ी कई किताबें शामिल हैं, कागज और एआर, दोनों ही फॉर्मेट्स में. इसके अलावा कॉमिक्स और गेम भी हैं, जो छात्रों को सेक्स संबंधी अंगों से लेकर गर्भावस्था तक सब कुछ बताते हैं. हला हला विन की अपनी चार साल की एक बेटी है. वह कहती हैं, "एक मां के तौर पर, एक टीजर के तौर पर. मेरी इन विषयों में दिलचस्पी है, क्योंकि बहुत से किशोरों और किशोरियों में इस बारे में जानने की उत्सुकता रहती है. लेकिन हमारे पास ऐसा कुछ नहीं है जिससे उन्हें ये सब बातें सिखा सकें."
वह बताती हैं कि म्यांमार में किशोरावस्था वाले बहुत से लोगों को लगता है कि महिला और पुरूष, दोनों अगर एक ही गिलास से पानी पी लें तो महिला गर्भवती हो जाती है.
अभी तक विन के कार्यक्रम में 100 स्कूल हिस्सा ले चुके हैं और सेक्स एजुकेशन पर उनकी किताबों को इस्तेमाल कर रहे हैं. वह अब टीचरों के साथ काम कर रही हैं. वह बताती हैं, "हम अभी शुरुआती दौर में हैं क्योंकि बहुत से टीचरों को अब भी स्कूल में सेक्स के बारे में पढ़ाते हुए शर्म महसूस होती है. लेकिन एआर टेक्नोलॉजी मजेदार है. इसीलिए हमें उम्मीद है कि टेक्नोलॉजी के जरिए हम इस शर्म को दूर कर पाएंगे."
जिन देशों में सेक्स को वर्जना की तरह नहीं देखा जाता, वहां सेक्स संबधी बीमारियां, टीन प्रेग्नैंसी और गर्भपात के मामले कम दिखते हैं. साथ ही ऐसे देशों के लोग अपनी सेक्स लाइफ से संतुष्ट भी रहते हैं.
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स्विट्जरलैंड
यौनकर्मियों को कानूनी दर्जा देना, पोर्नोग्राफी को लचीला बनाना, किंडरगार्टन में सेक्स एजुकेशन, इन सब मामलों में स्विस समाज अग्रणी है. आल्टरनेट वेबसाइट के डाटा के मुताबिक दुनिया में स्विट्जरलैंड के लोग यौन संबंधों में सबसे ज्यादा संतुष्ट हैं. स्विट्जरलैंड में नाबालिग माओं का अनुपात सबसे कम है.
एक तिहाई स्पैनिश नागरिक भी अपने यौन जीवन से संतुष्ट हैं. स्पेन के लोगों का मानना है कि एक ही पार्टनर के साथ लंबा वक्त बिताने से जीवन में संतुष्टि आती है.
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इटली
मेन्स हेल्थ मैग्जीन के मुताबिक इटली में खाने-पीने और सेक्स का करीबी रिश्ता है. सर्वे में हिस्सा लेने वाले 64 फीसदी इतालवी लोगों ने सेक्स को लेकर कोई शिकायत नहीं की.
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ब्राजील
ब्राजील के पुरुषों को स्पैनिश पुरुषों के बाद दूसरे नंबर का बेस्ट लवर कहा जाता है. सर्वे में हिस्सा लेने वाले 82 फीसदी लोगों ने माना कि वे हफ्ते में एक बार सेक्स करते हैं.
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ग्रीस
ग्रीस में सेक्स पर बातचीत करने में लोग झिझकते नहीं. ड्यूरेक्स के सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोगों में से 51 फीसदी ने अपनी सेक्स लाइफ पर खुशी जताई.
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नीदरलैंड्स
64 फीसदी डच मानते हैं कि सेक्स जिंदगी की बुनियादी जरूरत है. नीदरलैंड्स में टीन प्रेग्नैंसी की दर 0.53 फीसदी है. एचआईवी संक्रमण भी बहुत कम है.
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मेक्सिको
2008 में मेक्सिको सरकार ने स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की 7,00,000 किताबें बंटवाई. किताबों के जरिए बच्चों को बर्थ कंट्रोल, गर्भपात और समलैंगिंकता के बारे में जानकारी दी गई.
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ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया के 75 फीसदी लोगों ने माना कि वे गाड़ी में या यात्रा के दौरान सेक्स कर चुके हैं. 27 फीसदी महिलाओं ने सेक्स लाइफ में किसी तरह के बदलाव से इनकार किया.
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नाइजीरिया
ड्यूरेक्स के शोध में नाइजीरिया को सबसे ऊपर रखा गया है. देश के 67 फीसदी लोग अपने यौन जीवन से संतुष्ट नजर आए. वहां संभोग का औसत समय भी सबसे लंबा है, 24 मिनट.
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जर्मनी
जर्मनों को भले ही दुनिया का सबसे खराब प्रेमी करार दिया जाए लेकिन सेक्स संतुष्टि के मामले में वे आगे हैं. जर्मनी की सेक्स एजुकेशन को दुनिया की सबसे अच्छी शिक्षा प्रणालियों में गिना जाता है.
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चीन
चीन को भले ही रुढ़िवादी समाज के तौर पर देखा जाता हो, लेकिन दरवाजों के भीतर नजारा अलग है. चीन के लोग सेक्स के मामले में बेहद सक्रिय हैं. 78 फीसदी लोग हफ्ते में एक बार सेक्स करते हैं.
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संवाद और सम्मान का रिश्ता
आल्टरनेट और ड्यूरेक्स के शोध के मुताबिक अगर पार्टनर एक दूसरे का सम्मान करते हैं तो सेक्स लाइफ भी बेहतर होती है. सर्वे में हिस्सा लेने वाले 82 फीसदी लोगों ने इसे स्वीकार किया.