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सेक्स कारोबार का अड्डा बन रहा है कॉक्स बाजार

२५ अक्टूबर २०१७

भोजन और पानी जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रही रोहिंग्या महिलाएं हताश हो कर देह व्यापार में उतर रही हैं. बांग्लादेश के कॉक्स बाजार का शरणार्थी शिविर देहमंडी बन रहा है.

illegale Sexindustrie in Rohingya-Flüchtlingslagern
तस्वीर: Thomson Reuters Foundation/S. Glinsk

चार महिलाएं मिट्टी के एक साफ घर में घुसीं, अपने शॉल उतारे और घुटने मोड़ कर जमीन पर बैठ गयीं. जब उनसे पूछा गया कि क्या वो देह बेचती हैं तो उनके लिए स्थिति असहज हो गयी लेकिन वो चुपचाप बैठी रहीं. थोड़ी देर में चाय पीने के बाद जब उनसे दोबारा यही सवाल पूछा गया तो वो एक दूसरे की आंखों में देखने लगी. फिर आहिस्ते से उनमें से एक महिला उठी, दरवाजा बंद किया, दूसरी ने खिड़की बंद की और जब कमरे में अंधेरा हो गया तो फुसफुसा कर उन्होंने कहना शुरू किया. 26 साल की रोमिदा ने कहा, "अगर किसी को पता चला कि हम क्या करते हैं तो वे हमें मार डालेंगे."

6 लाख से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी म्यांमार से भाग कर बांग्लादेश आये हैं. कुटुपालोंग के सबसे बड़े रोहिंग्या शिविर में सेक्स कारोबार पहले से ही उभार पर है. बहुत से सेक्स वर्कर कई सालों से बांग्लादेश के शिविरों में रहते हैं लेकिन अचानक लाखों की तादाद में आई महिलाओँ और लड़कियों ने इस कारोबार को विस्तार दे दिया है. दलाल के रूप में काम करने वाली नूर ने कहा, "कम से कम 500 रोहिंग्या सेक्स वर्कर कुटुपालोंग में रहती हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर कैंप में कई सालों से रहती आ रही हैं. ये कैंप 1992 में बनाये गये थे. इन्हें कारोबार में उतारने वाले दलाल अपनी नजरें नये लोगों पर टिकाये हैं."

तस्वीर: Thomson Reuters Foundation/S. Glinsk

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों का कहना है कि उनके पास इस बारे में आंकड़े नहीं हैं कि कैंप में कितने सेक्स वर्कर हैं. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या एजेंसी यूएनएफपी से लैंगिक हिंसा मामलों की विशेषज्ञ के रूप में जुड़ी सबा जरीव कहती हैं, "संख्या बता पाना मुश्किल है क्योंकि हम इस बारे में आंकड़े नहीं जुटाते कि शिविरों में कितने सेक्स वर्कर हैं."

अफवाह का खौफ

रूढ़िवादी परिवारों वाला रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय अक्सर वेश्यावृत्ति की बातों पर आंख मूंद लेता है. नूर बताती हैं, "लोग यह मानते हैं कि इसका अस्तित्व नहीं है. लड़कियां बांग्लादेशी ग्राहकों से कैंप के बाहर मिलती हैं. वो दूसरे रोहिंग्या लोगों के साथ नहीं सोती. हमारा समुदाय इन मामलों में सख्त है और अफवाह बड़ी आसानी से फैल सकती है. हर लड़की खुद को साफ सुथरी दिखाती है."

तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa

बहुत सी सेक्स वर्कर बच्चियां हैं और उन्हें दिन में एक बार से ज्यादा भोजन भी नहीं मिलता. वो स्कूल नहीं जातीं और यह काम अपने मां बाप से छिपा कर करती हैं. 18 साल की रीना कैंप में पिछले एक दशक से रह रही है. दो साल पहले उसे एक शराबी से शादी करने पर मजबूर किया गया. रीना ने बताया, "वह मुझे मारता था, तंग करता था." बच्चे के जन्म के बाद उसका पति उसे छोड़ कर भाग गया औररीना के लिए  पेट पालना मुश्किल हो गया. रीना ने कहा, "तब मैंने मजबूर हो कर सेक्स वर्कर बनने का फैसला किया. मैं तब सिर्फ 16 साल की थी लेकिन हताश होकर यह करना पड़ा. मुझे पैसे की जरूरत थी." 14 साल की कमरू भी सेक्स वर्कर है. कई साल पहले वो रोहिंग्या शरणार्थी के रूप में यहां आई. वह कभी स्कूल नहीं गयी क्योंकि उसका परिवार गरीब था. वो बताती है, "मुझे तो सिर्फ कैंप ही याद है. मैं यही बड़ी हुई लेकिन मैं हमेशा भूखी रहती थी."

सेक्स वर्करों की एक जैसी समस्याएं होती हैं. गरीबी, गाली गलौज और मारपीट करने वाले परिवार के सदस्य और सुविधाओं के लिए फंड की कमी उन्हें सेक्स कारोबार में उतार देती है. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसायटीज की लैंगिक सुरक्षा विशेषज्ञ लिसा अकीरो बताती हैं, "अगर सहायता एजेंसियां इन लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं कर सकेंगी तो जोखिम और बढ़ेगा."

देह व्यापार में उतरना

कई दिनों तक भूखी रहने के बाद रोमिदा को देह व्यापार में उतरने के अलावा और कोई रास्ता नजर नहीं आया. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से रोमिदा ने कहा, "मैंने खुद से कहा कि मैं कुछ भी करूंगी. मेरे पास कोई विकल्प नहीं था." उसका पहला ग्राहक एक बांग्लादेशी दोस्त था जिसने उसे करीब 1000 टका (700 रूपये) के बदले सेक्स करने पर रजामंद कर लिया. रोमिदा कहती है, "उसने मुझे अच्छे पैसे दिये. आम तौर पर 200 टका मिलते हैं जिनमें आधे पैसे दलाल ले लेता है." कारोबार मुख्य रूप से फोन पर चलता है. दलाल बता देते हैं कि कहां जाना है और किससे मिलना है. औसतन रोमिदा को हर हफ्ते तीन ग्राहक मिलते हैं और पकड़े जाने के डर के कारण वह इससे ज्यादा ग्राहकों से नहीं मिलती.

तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee

कई बार वह इस काम के लिए कॉक्स बाजार तक चली जाती है जहां पहुंचने में गाड़ी से दो घंटे लगते हैं. जब भी वह कैंप से बाहर जाती है तो उसके लिए कोई बहाना बनाना पड़ता है. अक्सर वह रिश्तेदारों से मिलने के बहाने बाहर निकलती है. रोहिंग्या महिलाएं हर तरह के पुरुषों से मिलती हैं. उनके ग्राहकों में यूनिवर्सिटी के छात्रों से लेकर स्थानीय नेता भी होते हैं. 23 साल के बांग्लादेशी छात्र अली ने बताया कि वह कभी कभी रोहिंग्या सेक्स वर्कर के साथ सोता है, उसने यह भी बताया कि जब उसकी शादी होगी तो वह अपने लिए एक कुंवारी दुल्हन चाहेगा.

महिलाओं ने बताया कि ज्यादातर पुरुष कंडोम का इस्तेमाल नहीं करते और गर्भ रोकने के लिए सेक्स वर्कर इंजेक्शन लेते हैं हालांकि वो हर रोज एचआईवी के खतरे से जूझती हैं.

सुरक्षित ठिकाने

मिट्टी के घरों और आसपास की भीड़भाड़ से आधे घंटे की दूरी पर हरे भरे धान के खेत हैं. यहां पर स्थानीय समाजसेवी संगठन पल्स ने शरणार्थियों के लिए एक सेफ हाउस बनाया जहां 30 महिलाएं रह सकती हैं. सामूहिक शयनागार वाले इस घर में एक मनोचिकित्सक भी मौजूद है. सेफ हाउस की मैनेजर खुर्शिदा अख्तर ने बताया, "यहां आने वाली महिलायें अपनी जिंदगी के बारे में दूसरों से बात नहीं कर पातीं क्योंकि इससे उन्हें खतरा हो सकता है." यहां हर तरह की महिला चाहे कोई बलात्कार पीड़ित हो, अकेली मां हो या फिर सेक्स वर्कर उसकी मदद करने की कोशिश की जाती है. उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए उन्हें बुनियादी सुविधायें देने, उन्हें कोई हुनर सिखाने की यहां कोशिश की जाती है.

हालांकि जिन चार महिलाओं ने अपने बारे में रॉयटर्स को बताया उन्हें इस तरह की सेवाओँ के बारे में कोई जानकारी नहीं है. कमरू इनमें सबसे कम उम्र की है. उसने बताया, "पकड़े जाने के डर से हम इसके बार में किसी से बात नहीं करते." जब भी वह घर से बाहर निकलती है बुर्का पहन लेती है जिसमें उसकी आंखों के सिवा और कुछ नहीं दिखता. कमरू ने कहा, "जब मैं बांग्लादेशी ग्राहक के साथ होती हूं तो बुर्का उतार देती हूं लेकिन कैंप में लोगों की नजर से बचने का मेरे पास यही तरीका है."

एनआर/एमजे (रॉयटर्स)

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