सेटेलाइट चला रहा है खेतों में ट्रैक्टर
२२ जुलाई २०१३![](https://static.dw.com/image/16391441_800.webp)
फसल कटने का समय पास आने के साथ ही जर्मन किसान क्लाउस मुंशहोफ के कर्मचारी सुनहरे खेतों में उतरने को तैयार ट्रैक्टर की आखिरी जांच में जुट गए हैं. यह ट्रैक्टर थोड़े अलग हैं, इनमें ड्राइवर नहीं और इन्हें सेटेलाइट के जरिए दिशा निर्देश मिलते हैं. यह ट्रैक्टर खेतों में इंच भर की बारीकी के साथ काम करने में सक्षम हैं. इन्हें न तो थकान होती है और न ही इनकी नजरों में कोई दिक्कत. ऐसे में हर ट्रैक्टर खेत में कम चल कर ही ज्यादा काम कर लेता है और अपने मालिक का ईंधन खर्च बचाता है.
मुंशहोफ ने पूर्वी राज्य सैक्सनी अनहाल्ट के डेरेनबुर्ग में अपने खेत को कोई एक दशक पहले उच्च तकनीक से लैस कर दिया और अब लोगों की दिलचस्पी उनके खेतों में बढ़ रही है. मुंशहोफ कहते हैं, "मेरा काम अब प्रबंधन है." भूरी दाढ़ी और पतले चश्मे वाले 60 साल के मुंशहोफ 1000 हेक्टेयर की फार्म के मालिक हैं जहां गेहूं और सरसों की फसल होती है. खेती उनका पारिवारिक काम है जो मुंशहोफ परिवार 200 साल से इस जमीन पर कर रहा है. हालांकि जब से उन्होंने नई तकनीकों के साथ "शुद्ध कृषि" को अपनाया है तब से काफी ज्यादा बदलाव हुए हैं.
खेती का यह नया तरीका 1980 के दशक में अमेरिका में शुरू हुआ और इसमें काफी उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है. पूरी जमीन को एक टुकड़ा मानने की बजाए अलग अलग हिस्से को अलग तरीके से उसकी खूबियों के मुताबिक इस्तेमाल किया जाता है. जीपीएस के सहारे चलने वाले ट्रैक्टरों के अलावा मुंशहोफ ने ऑप्टिकल सेंसर भी लगाए हैं जो जमीन के टुकडों के पोषण की स्थिति बताते हैं. इसके अलावा ऐसे स्कैनर हैं जो मिट्टी के घटकों का पता लगाते हैं. इन सब तकनीकों के इस्तेमाल की दूसरे वजहें भी हैं लेकिन मुख्य रूप से ध्यान तो आर्थिक पहलुओं पर ही है.
मुंशहोफ बताते हैं कि उन्होंने छह सालों में करीब डेढ़ लाख यूरो यानी करीब एक करोड़ रुपये सिर्फ फॉस्फोरस और पोटैशियम का इस्तेमाल घटा कर बचा लिए. ऐसे वक्त में जब कीमतें ऊपर जा रही हैं, यह एक बड़ा फायदा है. मुंशहोफ ने कहा, "20 साल पहले 100 हेक्टेयर खेत के लिए 10 टन फॉस्फोरस की जरूरत होती थी. आज हमें केवल दो से पांच टन की जरूरत पड़ती है."
मुंशहोफ अपने कंप्युटर पर चार्ट, टेबल्स, डिजिटल नक्शे और सेटेलाइट तस्वीरों को देखते और समझते रहते हैं, अब यही सब उनके औजार हैं. जर्मनी के करीब पौने तीन लाख खेतों में से 800-1000 ऐसे हैं जो ऑप्टिकल सेंसर का इस्तेमाल करते हैं हालांकि इसे शुरूआत करने का सेहरा तो उन्हीं के सिर बंधा है.
इस उच्च तकनीक वाली खेती में एक ही समस्या है कि उपकरण सस्ते में नहीं मिलते. कुछ उपकरणों की कीमत तो पांच लाख यूरो यानी करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये से भी अधिक है. हालांकि जानकारों का कहना है कि इस्तेमाल बढ़ने से कीमतें घटेंगी और छोटे किसान भी इसे अपना सकेंगे. मुंशहोफ का कहना है, "छोटे किसान पहले ही इन तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं. वे पड़ोसियों के साथ मिल कर बड़े फॉर्मों की तरह फायदेमंद हो सकते हैं."
इन आविष्कारों से यह उम्मीद मजबूत हो रही है कि दुनिया में बढ़ती आबादी के लिए भोजन जुटाने का काम भविष्य में मुमकिन हो सकेगा. इसके साथ ही कृषि के क्षेत्र में दक्ष और तकनीकी क्षमता से लैस कुशल कामगारों के लिए रोजगार के रास्ते खुलेंगे. मुंशहोफ नहीं मानते कि मशीनें खेतों से कामगारों को बाहर निकाल देंगी. उनका कहना है, "मशीनें काम को आसान बनाती है, फैसले नहीं करती, फैसला तो मुझे ही करना होता है."
एनआर/एमजी(एएफपी)