1947 में पाकिस्तान के बनने के बाद से ही पाकिस्तान की सरकार पर सेना का प्रभुत्व रहा है, मगर ये कितना सही है, और इस प्रभुत्व की वजह क्या है?
पाकिस्तान के सेना प्रमुख सैयद आसिम मुनीरतस्वीर: W.K. Yousufzai/AP/picture alliance
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पाकिस्तान में इस बार के चुनाव में मुख्य मुकाबला पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी, पीएमएल एन और बिलावल भुट्टो जरदारी की पार्टी, पीपीपी के बीच है. इससे पहले प्रधानमंत्री रहे इमरान खान जेल में हैं और उनकी पार्टी कानूनी अड़चनों में उलझी हुई है. कहा जा रहा है कि इस बार नवाज शरीफ विजेता बनकर उभरेंगे क्योंकि उनपर पाकिस्तानी सेना का हाथ है. यह वही नवाज शरीफ हैं जिन्हें दो बार देशनिकाला दिया जा चुका है.
एक बड़ा सवाल यह है कि पाकिस्तान जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रधानमंत्री बनने के लिए आर्मी की सरपरस्ती क्यों चाहिए? पाकिस्तान में सेना इतनी शक्तिशाली आखिर कैसे हुई? इसे जानने के लिए इतिहास के कुछ पन्नों को पलटना होगा.
1947 के बंटवारे के बाद से ही सेना ने थामी लगाम
आज तक पाकिस्तान के इतिहास में एक भी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया, या फिर कहिए कि उन्हें करने नहीं दिया गया. 1947 से ही पाकिस्तान एक तरह से सेना के शासन में ही रहा है. या तो देश सीधा सेना के शासन में होता था, या फिर सेना के अफसर ऐसा तरीका निकालते कि सरकार को उनके साथ सांठगांठ कर चलना पड़ता.
नवाज शरीफ को इस बार सेना की पसंद बताया जा रहा हैतस्वीर: Ali Kaifee/DW
दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एकेडमी ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में पढ़ाने वाले प्रोफेसर अजय दर्शन बेहेरा का कहना है, "पाकिस्तान की सेना का मानना है कि वो पाकिस्तान के अस्तित्व का केंद्र हैं. बंटवारे के बाद पाकिस्तान में दूरदर्शी नेताओं की कमी खलने लगी. मोहम्मद अली जिन्नाह के देहांत के बाद देश सेना के हवाले हो गया.”
बंटवारे के बाद जो एक चीज उन्हें अंग्रेजों से विरासत में मिली वो थी एक अनुशासित सेना.1951 तक ब्रिटिश जनरल पाकिस्तान की सेना का नेतृत्व करते रहे. इसके बाद सेना की कमान जनरल अयूब खान को सौंप दी गई थी. जानकारों का कहना है कि एक तरफ पाकिस्तान का संविधान लिखने में देरी हो रही थी, वहीं सेना अपनी पकड़ देश में मजबूत करती जा रही थी.
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार शाहजेब जिलानी का कहना है, "सिविल मिलिट्री नौकरशाही सेना के दबदबे की खास वजह रही है. चूंकि पाकिस्तान लंबे-लंबे अरसे तक सीधा सेना के अधीन रहा है, इस वजह से भी वहां लोकतंत्र कभी पनप नहीं पाया.”
पाकिस्तान की भू-राजनीतिक स्थिति
पाकिस्तान में जनरल जिया-उल-हक के शासन में धार्मिक उग्रवाद भी बढ़ने लगा. इसके चलते पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में भी ‘स्ट्रेटजिक डेप्थ पॉलिसी' के नाम पर हस्तक्षेप चालू कर दिया. अफगानिस्तान की अस्थिरता को भी पाकिस्तान ने अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश की है. 11 सितंबर के हमले के बाद जब अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया तब पाकिस्तान ने इसमें बड़ी मदद की. जाहिर है कि इस मदद के बदले सेना को बड़ा लाभ भी हासिल हुआ.
1971 में पूर्वी पाकिस्तान की जमीन पर पाकिस्तानी सेना के खिलाफ हमले करती भारत की सेना. इस युद्ध के बाद बांग्लादेश अलग देश बनातस्वीर: AFP
जनरल परवेज मुशर्रफ के शासन में पूर्व प्रधानमंत्री, बेनजीर भुट्टो की भी हत्या हुई. उस दौर में पाकिस्तान का आंतरिक खतरा कहे जाने वाला बलूचिस्तान मसला भी उफान पर था. पाकिस्तान की सेना भारत को भी एक बड़े खतरे के रूप में पेश करती है. पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश बन जाने के बाद सेना ने इस दावे को और मजबूती से रखा.
पाकिस्तानी सेना लगातार देश पर खतरों का हवाला दे कर अपने लिए सहानुभूति और समर्थन जुटाने की कोशिश करती है. आर्थिक मोर्चे पर परेशान देश के लोगों को सेना के अलावा और कोई मददगार नजर नहीं आता.
सेना या एक मल्टीनेशनल कम्पनी?
आमतौर पर सेनाओं का काम होता है देश की रक्षा करना. मगर बाकी देशों से विपरीत, पाकिस्तान की सेना ने कई गैर-सैन्य क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश किए हैं. प्रोफेसर बेहेरा ने डीडब्ल्यू से बातचीत में बताया "पाकिस्तान सेना एक मल्टीनेशनल कंपनी की तरह काम करने लगी है. उनके कई बड़े अफसरों ने रियल एस्टेट, फैक्ट्री, फर्टिलाइजर और बड़ी फूड-चेन जैसे उद्योगों में या तो निवेश किया है या फिर वो संस्थान पूरी तरीके से उनके संचालन में काम कर रहे हैं.”
बाढ़ प्रभावित लोगों तक मदद पहुंचाने गए सेना के जवानतस्वीर: Hussain Ali/AA/picture alliance
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2011 से 2015 के बीच पाकिस्तान की सेना की संपत्ति में 78% की वृद्धि हुई. 2016 तक, पाकिस्तान में सशस्त्र बलों ने 50 से अधिक वाणिज्यिक संस्थाओं को चलाया, जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन और 30 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर के रियल एस्टेट उद्योग शामिल थे. उनकी व्यावसायिक संपत्ति का मूल्य 40 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर से अधिक है.
पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और सेना के प्रवक्ता जनरल असीम सलीम बाजवा समेत शीर्ष सैन्य अधिकारियों पर बड़े आर्थिक लाभ उठाने के आरोप लगते आए हैं. बाजवा परिवार छह साल के भीतर ही देश के अरबपतियों में शामिल हो गया. बेहेरा ने बताया कि "मंदी झेल रहे पाकिस्तान में सेना के परिवारों और अफसरों के लिए कोई मंदी नहीं आती.”
जनरल असीम सलीम बाजवा और उनके भाई ने एक बड़ा कारोबार खड़ा किया है. इसमें चार देशों में कुल 133 रेस्तरां शामिल थे. पैंडोरा पेपर खुलासे में भी पाक सेना के कई बड़े अफसरों का नाम शामिल था.
सेना की सरपरस्ती में इमरान खान प्रधानमंत्री बने लेकिन अब जेल में हैंतस्वीर: DW
आम लोगों का साथ
प्रोफेसर बेहेरा कहते हैं, "कभी ऐसा लगा जैसे कि सभी नेता मिलकर सेना की मुखालफत करेंगे मगर यह भी विफल रहा. नेता भी भ्रष्ट थे, तो सेना ने जिसके सर पर अपना हाथ रखा दिया, वही प्रधानमंत्री हुआ.”
नेता भी अपने विपक्ष को कमजोर करने के लिए सेना की मदद लेते हैं. 2019 में सेना ने ही इमरान खान को चुनावी मैदान में उतारा था. उस वक्त मना जा रहा था कि इमरान और सेना साथ मिल कर काम करेंगे. भारत-पाकिस्तान में क्रिकेट-प्रेम को देखते हुए कयास लगाए जा रहे थे कि अब पूर्व क्रिकेटर खान दोनों देशों के रिश्तों को बेहतर करेंगे. हालांकि ऐसा हुआ नहीं बल्कि रिश्ते और खराब ही हुए.
पाकिस्तान की सेना अब फिर 4 साल पहले निर्वासित किए गए नवाज शरीफ को वापस लाई है. पाकिस्तान में सेना इसलिए भी सबसे ऊपर है क्योंकि उन्होंने नागरिकों को हमेशा इस भुलावे में रखा है कि राजनीति में सब भ्रष्ट हैं और एक वही हैं जो पाकिस्तान को उसकी बुलंदियों तक पहुंचा सकते हैं. इसी वजह से पाकिस्तान की जनता भी सेना का विरोध नहीं करती.
पाकिस्तान में कितने लंबे टिके सारे प्रधानमंत्री
पाकिस्तान में कोई भी प्रधानमंत्री आज तक अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है. एक नजर 1947 से अब तक पाकिस्तान में प्रधानमंत्री बनने वालों और उनके कार्यकाल पर.
तस्वीर: STF/AFP/GettyImages
लियाकत अली खान: 4 साल दो महीने
15 अगस्त, 1947 को लियाकत अली खान पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने, लेकिन वह अपना कार्यकाल पूरा न कर सके. 16 अक्टूबर, 1951 को रावलपिंडी में लियाकत अली खान की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
तस्वीर: Wikipedia/US Department of State
ख्वाजा नजीमुद्दीन: डेढ़ साल
लियाकत अली खान की हत्या के बाद अक्टूबर 1951 में ख्वाजा नजीमुद्दीन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. वह पूर्वी पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश) से ताल्लुक रखते थे. 17 अप्रैल, 1953 को गवर्नर जनरल ने नजीमुद्दीन को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया.
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मोहम्मद अली बोगरा: 2 साल 4 महीने
पूर्वी पाकिस्तान में पैदा हुए मोहम्मद अली बोगरा को देश का तीसरा पीएम नियुक्त किया गया. 17 अप्रैल, 1953 को ख्वाजा नजीमुद्दीन की छुट्टी के साथ बांग्ला भाषी बोगरा पीएम नियुक्त किए गए. लेकिन 12 अगस्त, 1955 को उन्हें भी पीएम पद से हटा दिया गया.
तस्वीर: gemeinfrei/wikipedia
चौधरी मोहम्मद अली: 13 महीने
12 अगस्त, 1955 को बोगरा की छुट्टी के साथ ही चौधरी मोहम्मद अली को पाकिस्तान का चौथा प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. 1956 के संविधान में उनकी भूमिका अहम मानी जाती है. लेकिन पार्टी के सदस्यों के साथ मतभेदों के कारण 12 सितंबर, 1956 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: akg images/picture alliance
हुसैन शहीद सुहरावर्दी: 13 महीने
सुहरावर्दी 12 सितंबर, 1956 को प्रधानमंत्री बने. सुहरावर्दी की मातृभाषा बांग्ला थी. उनका 13 महीने का कार्यकाल पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा के साथ अनबन में गुजरा. आखिरकार सुहरावर्दी ने 16 अक्टूबर, 1956 को इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: gemeinfrei/Wikipedia
इब्राहिम इस्माइल चुंदरीगर: 55 दिन
गुजरात के गोधरा में पैदा हुए और मुंबई में कानून की पढ़ाई करने वाले चुंदरीगर 16 अक्टूबर, 1956 को पाकिस्तान के छठे प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए. लेकिन जल्द ही उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया. 16 दिसंबर, 1956 को चुंदरीगर इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: gemeinfrei/wikimedia
फिरोज खान नून: 10 महीने से कम
16 दिसंबर, 1958 को फिरोज खान नून को राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने पाकिस्तान का अगला प्रधानमंत्री नियुक्त किया. उनके कार्यकाल में ही ग्वादर पाकिस्तान का हिस्सा बना. 6 अक्टूबर, 1956 को आर्मी चीफ जनरल अयूब खान ने मार्शल लॉ लागू करने के साथ ही सरकार को बर्खास्त कर दिया.
तस्वीर: Fox Photos/Hulton Archive/Getty Images
नूरुल अमीन: 13 दिन
पाकिस्तान के अंतिम बंगाली प्रधानमंत्री नूरुल अमीन सिर्फ 13 दिन प्रधानमंत्री रहे. वे पाकिस्तान के इतिहास में सबसे कम समय तक पीएम बनने वाले नेता है. दूसरे नंबर पर चुंदरीगर (55 दिन) आते हैं. अमीन 7 दिसंबर, 1971 से 20 दिसंबर, 1971 तक सत्ता में रहे, उसी दौरान पूर्वी पाकिस्तान में युद्ध हुआ और बांग्लादेश का जन्म हुआ.
तस्वीर: gemeinfrei/wikipedia
जुल्फिकार अली भुट्टो: 3 साल 11 माह
जुल्फिकार अली भुट्टो 14 अगस्त, 1973 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के संस्थापक जुल्फिकार अली भुट्टो 5 जुलाई, 1977 तक प्रधानमंत्री रहे. 5 जुलाई, 1977 को आर्मी चीफ जिया उल हक ने सैन्य तख्तापलट कर भुट्टो सरकार को बर्खास्त कर दिया. 24 मार्च, 1979 को रावलिपिंडी के जेल में भुट्टो को फांसी दे दी गई.
तस्वीर: imago/ZUMA/Keystone
मुहम्मद खान जुनेजो: 3 साल 2 महीने
सिंध के कद्दावर नेता मुहम्मद खान जुनेजो को 1985 में चुनाव जीतने के बाद जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान का 10वां प्रधानमंत्री नियुक्त किया. रावलपिंडी कैंट में भीषण विस्फोट में 100 लोगों की मौत के बाद उन्होंने जांच का आदेश दिया. राष्ट्रपति और जनरल जिया को यह बात पसंद नहीं आई और संविधान संशोधन कर संसद को भंग कर दिया गया.
तस्वीर: Sven Simon/IMAGO
बेनजीर भुट्टो: दो अधूरे कार्यकाल
जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो 2 दिसंबर, 1988 को पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. लेकिन 6 दिसंबर, 1990 को राष्ट्रपति ने उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया.
तस्वीर: ZUMA Wire/IMAGO
नवाज शरीफ: तीन अधूरे कार्यकाल
पंजाब के दिग्गज नेता नवाज शरीफ तीन बार पाकिस्तान के पीएम बने. उनका पहला कार्यकाल नवंबर 1990 से अप्रैल 1993 तक रहा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K. M. Chaudary
नवाज शरीफ: पार्ट 2
पंजाब के दिग्गज नेता नवाज शरीफ तीन बार पाकिस्तान के पीएम बने. उनके दूसरे कार्यकाल (फरवरी 1997 से अक्टूबर 1999) का अंत जनरल परवेज मुशर्रफ ने इमरजेंसी लगा कर किया.
तस्वीर: K.M. Chaudary/AP/dpa/picture alliance
जफरुल्लाह खान जमाली: 1 साल 6 महीने
नवंबर 2002 में जफरुल्लाह खान जमाली को सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ के नेतृत्व में प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. यह पारी 26 जून, 2004 को खत्म हो गई.
तस्वीर: Aamir Qureschi/AFP
चौधरी सुजात हुसैन: दो महीने
शौकत अजीज के अगला प्रधानमंत्री बनने तक चौधरी सुजात हुसैन को पाकिस्तान का 16वां पीएम बनाया गया. उनका कार्यकाल 30 जून, 2004 को शुरू हुआ 26 अगस्त, 2004 को खत्म.
तस्वीर: Bilawal Arbab/dpa/picture alliance
शौकत अजीज: 3 साल दो महीने
शौकत अजीज को 26 अगस्त, 2004 को प्रधान मंत्री नियुक्त किया गया. संसद का कार्यकाल पूरा होने के कारण 15 नवंबर, 2006 को अजीज ने इस्तीफा दे दिया. अजीज पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने संसद का कार्यकाल पूरा होने के कारण इस्तीफा दिया.
तस्वीर: Yu Jie/HPIC/picture alliance
यूसुफ रजा गिलानी: 4 साल 1 माह
दिसंबर 2007 में बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद फरवरी 2008 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए. इन चुनावों में बेनजीर की पार्टी, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को बहुमत मिला. पार्टी के नेता यूसुफ रजा गिलानी पीएम बने. बाद में अदालत की अवमानना के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण 2012 में उन्हें पीएम पद छोड़ना पड़ा.
तस्वीर: AP
राजा परवेज अशरफ: 9 महीने
गिलानी के पद से हटने के बाद सरकार के मंत्री राजा परवेज अशरफ ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सरकार के पीएम के रूप में कार्यकाल संभाला. वह 22 जून, 2012 से 24 मार्च, 2013 तक इस पद पर रहे.
तस्वीर: dapd
नवाज शरीफ: पार्ट 3
नवाज शरीफ तीसरी बार जून 2013 से अगस्त 2017 तक पीएम रहे. इस बार मुकदमे का कारण उन्हें पद के लिए अयोग्य करार दिया गया.
तस्वीर: Reuters/F. Mahmood
शाहिद खाकान अब्बासी: एक साल
2013 के चुनावों में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) की जीत हुई और नवाज शरीफ तीसरी बार 4 साल 53 दिन तक पीएम बने. कोर्ट केस के कारण नवाज को पद छोड़ना पड़ा, लेकिन संसद के शेष कार्यकाल के दौरान उन्हीं की पार्टी शाहिद खाकान अब्बासी प्रधानमंत्री रहे.
तस्वीर: Reuters/J. Moon
इमरान खान: 3 साल 6 महीने
नया पाकिस्तान बनाने का नारा देकर 2018 के चुनावों में इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ ने सबसे ज्यादा सीटें जीती. गठबंधन ने इमरान खान को पीएम चुना. लेकिन 9 और 10 अप्रैल की रात इमरान अविश्वास प्रस्ताव हार गए.
तस्वीर: Anjum Naveed/AP/dpa/picture alliance
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जिलानी ने डीडब्ल्यू हिंदी से बातचीत में कहा, "पाकिस्तानी सेना तख्तापलट की जवाबदेही में कहती कि हमारे आसपास भारत, अफगानिस्तान जैसे ‘दुश्मन' देश हैं और इसलिए सेना को मजबूत रहने की जरूरत है. पाकिस्तान की आम-जनता इस बात को मानती तो है लेकिन वो भी यह नहीं चाहती कि सेना नागरिक मामलों में दखल दे.”