अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय सेना के मिशन के खत्म होने के बाद भी जर्मनी वहां शांति स्थापित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका देख रहा है. इस मुद्दे पर चांसलर अंगेला मर्केल और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने बात की.
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बुधवार को दोनों नेताओं के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत में इस बात पर चर्चा हुई कि जर्मन सेनाओं को अफगानिस्तान में और कितने समय तक रखने की जरूरत है. अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय सेनाओं का मिशन 2014 में खत्म होना है. समाचार एजेंसी डीपीए ने बर्लिन में सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया कि दोनों नेताओं ने जर्मनी के सैनिकों को और लंबे समय तक वहां बनाए रखने की संभावना पर चर्चा की. अफगानिस्तान में अभी जर्मन सेना के करीब 3,100 जवान तैनात हैं. अगर दोनों देश अतिरिक्त समय तक जर्मन सेना को वहां रखने के लिए सहमत होते हैं तो अंतरराष्ट्रीय मिशन के समाप्त होने के बाद भी जर्मन सेना की एक छोटी टुकड़ी वहां बनी रहेगी.
अफगानिस्तान से अंतरराष्ट्रीय सेनाओं की वापसी के बाद भी जर्मनी वहां की सरकारी अफगान सेनाओं को सलाह और ट्रेनिंग देगा. इसके लिए करीब 800 सैनिक मुहैया कराए जाने की योजना है. लेकिन यह योजना लागू करना कुछ हद तक इस बात पर भी निर्भर करता है कि अमेरिका और अफगानिस्तान के बीच सुरक्षा समझौते की बात आगे बढ़े. अमेरिका और अफगानिस्तान के बीच यह सुरक्षा समझौता नाटो का युद्ध अभियान खत्म होने के बाद अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की भूमिका तय करेगा.
अफगानिस्तान से विदा लेती जर्मन सेना
2014 के आखिर में जर्मन सेना अफगानिस्तान से लौट आएगी. सैनिकों के अलावा हजारों टन सामान भी जर्मनी लाना है- टेंट से लेकर टैंकरों तक. एक बड़ा काम.,
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हवाई जहाज से
जर्मनी के पास ऐसे कोई विमान नहीं हैं जो भारी और बड़ी गाड़ियों को ले जा सकें. इसलिए यूक्रेनी रुसी आन्तोनोव 124 विमान से इन्हें लाया जाता है. हर उड़ान में इसके 37 मीटर लंबे हिस्से में 150 टन सामान आ सकता है.
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अथाह लॉजिस्टिक्स
जर्मन सेना के करीब 4,500 सैनिक, 1,700 गाड़ियां और 6,000 कंटेनर अफगानिस्तान में हैं. आईसैफ का अफगानिस्तान मिशन 2014 के आखिर में खत्म हो रहा है. इसके साथ जर्मनी आने वाले सामान में भारी हथियारों से लेकर 50 टन के टैंकर भी हैं.
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तुर्की बंदरगाह
तुर्की का बंदरगाह शहर ट्राबजोन हिन्दुकुश से लौटने के लिए जर्मन सैनिकों के रास्ते में शामिल हैं. यहां से 29 जुलाई से जर्मन सेना की 200 गाड़ियां जर्मनी रवाना होंगी. उन्हें इस बंदरगाह तक पहुंचने के लिए बहुत लंबा रास्ता तय करना होगा.
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एक के बाद एक
जर्मन सेना 11 से भी ज्यादा साल से अफगानिस्तान में है और वह भी उसके उत्तरी हिस्से में. इस समय बगलान प्रांत को खाली किया जा रहा है.
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मिशन पर मिशन
2014 के आखिर में सभी जर्मन सैनिक घर नहीं लौट सकेंगे. जर्मनी अफगानिस्तान में पुनर्निमाण के कामों के लिए 800 सैनिक वहां रखना चाहता है.
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मुख्यालय
अफगानिस्तान में लाए गए सामान का कुछ हिस्सा वहीं रहेगा. अलग किया हुआ सामान या तो बेच दिया जाएगा या फिर कबाड़ में डाल दिया जाएगा. सामान पैक करके कंटेनर में रखा जा रहा है. अभी से ही आईसैफ की गाड़ियां सामान 180 किलोमीटर दूर मजार ए शरीफ ले जा रही हैं.
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मुख्य ठिकाना
अफगानिस्तान का चौथा सबसे बड़ा शहर मजार ए शरीफ सामान लाने ले जाने का अहम ठिकाना है. कैंप मारमाल के हवाई अड्डे से सारा माल विमानों में लाद दिया जाएगा. पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान के ऊपर से ये सामान अफगानिस्तान से बाहर निकलता है. पड़ोसी देश काफी अस्थिर हैं.
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रख रखाव और सफाई
जानवरों से पैदा होने वाले वायरस जर्मनी नहीं पहुंचे इसके लिए गाड़ियों की बहुत अच्छे से साफ सफाई की जाती है.
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सीधे जर्मनी
हथियार और तकनीकी तौर पर अहम सामान सुरक्षा कारणों से मजार ए शरीफ से सीधे जर्मनी लाया जाता है. जैसे यह टैंकर 2000.
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तुर्की से
बिना हथियार वाली गाड़ियां, वायरलैस सेट्स या टैंट 3000 किलोमीटर की यात्रा कर के तुर्की के ट्राबजोन पहुंचते हैं.
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जहाज से घर
ट्राबजोन में 30,000 वर्ग किलोमीटर के इलाके में 170 लोग अफगानिस्तान से आया सामान आगे भेजने का काम करते हैं. जहाज से सामान पहुंचने में दो हफ्ते लगते हैं. जहाज भूमध्यसागर, अटलांटिक और उत्तरी सागर से होते हुए जर्मनी आते हैं.
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पिछले साल नवंबर में काबुल में जुटे करीब ढाई हजार कबायली नेताओँ के लोया जिरगा में इस समझौते पर सहमति बनी थी. लोया जिरगा में कबीलों के नेताओं ने अमेरिका के साथ सुरक्षा समझौते का अनुमोदन कर दिया. लेकिन करजई ने फिलहाल इस पर दस्तखत नहीं किया है. उनका कहना है कि अमेरिका को पहले अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता लानी होगी. करजई अमेरिका से अफगानिस्तान में सैन्य तलाशियों को बंद करने और अगले साल के चुनाव में सहयोग देने की मांग कर रहे हैं. इससे पहले करजई ने कहा था कि वे अप्रैल 2014 में होने वाले चुनाव के बाद समझौते पर दस्तखत करेंगे.
जर्मनी की नई रक्षा मंत्री उर्सुला फॉन डेय लाएन ने पिछले महीने अफगानिस्तान के दौरे के समय कहा था कि वह चाहेंगी कि जर्मनी ने "जो शुरू किया है वह काम पूरा करे." नाटो की अंतरराष्ट्रीय सेनाएं अफगानिस्तान में शांति और सुव्यवस्था लाने की कोशिश में लगी हुई हैं.
इस बीच बृहस्पतिवार को एफ-पाक इंटरनेशनल कांटेक्ट ग्रुप (आईसीजी) फोरम की नई दिल्ली में एक बैठक हो रही है. इस बैठक का आयोजन जर्मनी ने किया है जहां 50 से भी अधिक देशों के प्रतिनिधि मिलकर अफगानिस्तान में शांति बहाल करने और चुनावी सुधारों के बारे में चर्चा करेंगे.