साहित्य के नोबेल पुरस्कार को स्थगित कर दिया गया है. नोबेल पुरस्कार प्रदान करने वाली संस्था एक सेक्स स्कैंडल में फंस गई है. इसके बाद 2018 का साहित्य का नोबेल अब 2019 में प्रदान किया जाएगा.
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फ्रेंच फोटोग्राफर जौं क्लोड अरनॉल्ट के कथित यौन दुराचार को लेकर स्वीडिश एकेडमी आलोचनाओं के घेरे में है. एकेडमी ने फैसला किया है कि इस साल यह पुरस्कार प्रदान नहीं किया जाएगा क्योंकि एकेडमी के कुछ सदस्य पुरस्कार प्रदान करने को लेकर चिंतित हैं और वे इसके लिए स्थिति को अनुकूल नहीं बता रहे हैं.
दरअसल पिछले साल नवंबर में 18 महिलाओं ने 'मी टू' आंदोलन के माध्यम से अरनॉल्ट पर यौन हमला व उत्पीड़न के आरोप लगाए थे. एकेडमी की परिसंपत्ति को लेकर भी कथित तौर पर कई आरोप लगाए गए हैं. हालांकि अरनॉल्ट ने सभी आरोपों से इनकार किया है.
इन भारतीयों को मिला है नोबेल पुरस्कार
नोबेल पुरस्कार को दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है. चलिए जानते हैं अलग अलग क्षेत्रों में अब तक कितने भारतीय या भारतीय मूल के लोगों को यह पुरस्कार मिला है.
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रवींद्रनाथ टैगोर
टैगोर एक कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे. गुरुदेव के नाम से मशहूर रवींद्रनाथ टैगोर साहित्य का नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे. उनके कविता संग्रह गीतांजलि के लिए उन्हें 1913 में यह पुरस्कार दिया गया. 1901 में उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की, जो बाद में विश्वभारती विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
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चंद्रशेखर वेंकटरमन
डॉ. चंद्रशेखर वेंकटरमन भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे. तमिलनाडु के तिरुवाइक्कावल में जन्मे वेंकटरमन ने बताया कि जब कोई प्रकाश किसी पारदर्शी पदार्थ में से होकर गुजरता है तो कुछ परावर्तित प्रकाश अपना तरंगदैर्ध्य बदल लेता है. इस खोज को 'रमन प्रभाव' का नाम दिया गया और इसी के लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार मिला.
हरगोबिंद खुराना को चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया. भारतीय मूल के डॉ. खुराना का जन्म पंजाब में रायपुर (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था. 1960 में वह विस्कॉसिन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बने. उन्होंने अपनी खोज से आनुवांशिक कोड की व्याख्या की और प्रोटीन संश्लेषण में इसकी भूमिका का पता लगाया.
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मदर टेरेसा
मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला. उनका जन्म अल्बानिया में हुआ था. 1928 में वह मिशनरी बनकर 1929 में कोलकाता आ गईं. गरीब और बीमार लोगों की सेवा के लिए उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी नाम की संस्था बनाई. कुष्ठ रोगियों, नशीले पदार्थों की लत के शिकार और दीन-दुखियों के लिए निर्मल हृदय नाम की संस्था बनाई.
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सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर
1983 में भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता बने भारत के डॉ. सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर. वह नोबेल विजेता सर सीवी रमन के भतीजे थे. उनकी शिक्षा चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में हुई. बाद में चंद्रशेखर अमेरिका चले गए, जहां उन्होंने खगोल शास्त्र तथा सौरमंडल से संबंधित विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं.
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अमर्त्य सेन
1998 में अमर्त्य सेन को अर्थशास्त्र का नोबेल दिया गया. यह पुरस्कार पाने वाले न सिर्फ पहले भारतीय, बल्कि पहले एशियाई भी रहे. उन्होंने लोक कल्याणकारी अर्थशास्त्र की अवधारणा का प्रतिपादन किया है. उन्होंने कल्याण और विकास के विभिन्न पक्षों पर अनेक किताबें लिखी हैं. इसके अलावा उन्होंने गरीबी और भुखमरी जैसे विषयों पर काफी काम किया.
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वी एस नायपॉल
मूल के ब्रिटिश लेखक वीएस नायपॉल को 2001 में साहित्य के नोबेल से नवाजा गया. उनका जन्म त्रिनिडाड में हुआ जहां भारत से जाकर उनके पू्र्वज बसे थे. 2008 में द टाइम्स ने उन्हें 50 महान ब्रिटिश साहित्यकारो की सूची में सातवां स्थान दिया. ए हाउस फॉर मिस्टर विस्वास, इन फ्री स्टेट, ए बेंड इन द रिवर और द एनिग्मा ऑफ अराइवल उनकी मशहूर कृतियां हैं.
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वेंकटरमण रामकृष्णन
मूल के अमेरिकी विज्ञानी वेंकटरमण रामकृष्णन को रसायन विज्ञान के क्षेत्र में साल 2009 का नोबेल पुरस्कार दिया गया. यह पुरस्कार उन्हें अमेरिकी वैज्ञानिक थॉमस ए. स्टेट्ज और इस्राएल की अदा ई. योनथ के साथ संयुक्त रूप से दिया गया. इन वैज्ञानिकों को राइबोसोम की संरचना और कार्यप्रणाली पर अध्ययन के लिए इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा गया.
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कैलाश सत्यार्थी
भारत में बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कैलाश सत्यार्थी को 2014 में शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्होंने बचपन बचाओ आंदोलन नाम की संस्था बनाई है. उन्हें पाकिस्तान में लड़कियों के हक की आवाज उठाने वाली मलाला यूसुफजई के साथ साझा तौर पर यह सम्मान दिया गया.
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अरनॉल्ट की पत्नी लंबे समय से एकेडमी की सदस्य रही हैं. लेकिन मामला सामने आने के बाद संगठन ने उनकी पत्नी और कवयित्री व लेखिका कटरीना फ्रोस्टेनसन को निकालने का फैसला किया. 18 सदस्यीय कमेटी ने इसके पक्ष में वोट किया.
इसके अगले दिन एकेडमी की स्थायी सदस्य सारा डेनिअस ने कहा कि संस्थान ने कथित आरोपों के बाद अरनॉल्ट से पूरी तरह संबंध तोड़ लिया है. उन पर एकेडमी के कर्मचारी व सदस्यों के रिश्तेदारों के साथ अवांछित यौन संबंध बनाने के आरोप हैं. डेनिअस समेत अब तक एकेडमी के छह सदस्यों ने अपना इस्तीफा दे दिया है.
इससे पहले केवल एक बार साहित्य के नोबेल पुरस्कार को स्थगित किया जा चुका है. 1943 में द्वितीय विश्व युद्ध के कारण ऐसा करना पड़ा था.
आईएएनएस/आईबी
साहित्य का नोबेल
पिछले सालों में साहित्य का नोबेल पुरस्कार भावनाओं की विविधता दिखाने वाले लेखकों को मिला है. 2021 का पुरस्कार ब्रिटेन में रहने वाले और तंजानिया में जन्मे लेखक अब्दुलरजाक गुरना को दिया गया है.
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2021 अब्दुलरजाक गुरना
तंजानिया में जन्मे अब्दुर्रज्जाक गुरना को 2021 के साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है. 72 साल के गुरना के लेखन में उस यात्रा का दर्द दिखता है जो वह बतौर एक शरणार्थी तमाम जिंदगी करते रहे हैं.
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2020 लुइज ग्लुक
अमेरिकी लेखिका लुइज ग्लुक को उनके काव्य संग्रह एवेर्नो के लिए 2020 का नोबेल साहित्य पुरस्कार दिया जाएगा.
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2019 पीटर हांडके
ऑस्ट्रियाई लेखक पीटर हांडके को 2019 के नोबेल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित दिया गया.
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2018 ओल्गा तोकार्जुक
2018 के लिए पोलिश लेखिका ओल्गा तोकार्जुक को साहित्य का बेल पुरस्कार दिया गया.
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2017 का नोबेल काजुओ इशिगुरो को
साल 2017 के साहित्य का नोबेल पुरस्कार ब्रिटिश लेखक काजुओ इशिगुरो को दिया गया. "द रिमेंस ऑफ द डे" से मशहूर हुए उपन्यासकार काजुओ इशिगिरो का जन्म तो जापान में हुआ लेकिन वह अब ब्रिटेन में रहते हैं और अंग्रेजी में लिखते हैं.
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2016 बॉब डिलन
अमेरिकी गायक और गीत लेखक बॉल डिलन को 2016 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया.
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स्वेतलाना अलेक्सिएविच
2015 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार बेलारूस की महिला पत्रकार स्वेतलाना अलेक्सिएविच को मिला है. वे यह पुरस्कार पाने वाली पहली पत्रकार हैं. उन्हें भावनाओं के इतिहास को संकलित करने वाली उनकी खोजी किताबों के लिए सम्मानित किया गया है.
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पाट्रीक मोदियानो
2014 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार फ्रांसीसी लेखक मोदियानो ने जीता है. फ्रांस में 1940 से 1944 तक रही जर्मन सत्ता के दौर के बारे मे उन्होंने काफी लिखा है.
इस बार की विजेता हैं कनाडा की एलिस मुनरो. हर साल साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार देने वाली स्वीडिश अकादमी ने उन्हें समकालीन लघुकथा का मास्टर बताया. आलोचक उन्हें कनाडा का चेखव कहते हैं.
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2012: मो यान
मो यान के नाम से प्रख्यात गुआन मोए को नोबेल पुरस्कार देते हुए स्वीडिश अकादमी ने उनकी प्रशंसा में कहा था कि वे जनकथाओं, इतिहास और वर्तमान को भ्रामक हकीकत के साथ जोड़ देते हैं.
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2011: टोमास ट्रांसट्रोएमर
अकादमी ने ट्रांसट्रोएमर का चुनाव इसलिए किया कि वे "अपनी गहरी और निर्मल छविओं से हमारा हकीकत के साथ मेल कराते हैं." मनोवैज्ञानिक रहे कवि की रचनाओं का 60 भाषाओं में अनुवाद हुआ है.
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2010: मारिया वार्गास ल्योसा
पेरू के उपन्यासकार को सत्ता के ढांचे का नक्शा बनाने और हर एक के प्रतिरोध, विद्रोह और पराजय को रेखांकित करने के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया. उन्हें उनके बेबाक बयानों के लिए भी जाना जाता है.
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2009: हैर्टा मुलर
जर्मन-रोमेनियन लेखिका को पुरस्कार देते हुए अकादमी ने उन्हें ऐसी लेखिका बताया "जो पद्य के संकेंद्रन और गद्य की बेबाकी से विस्थापितों के लैंडस्केप का वर्णन करती हैं." वे 1987 से बर्लिन में रहती हैं.
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2008: ले क्लेजियो
फ्रांस के जां मारी गुस्ताव ले क्लेजियो को स्वीडिश अकादमी ने "लीक से हटकर लिखने वाला, काव्यात्मक साहस और संवेदनात्मक आनंद का लेखक बताया जो सभ्यता के बाहर की मानवता की खोज करता है."
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2007: डोरिस लेसिंग
ब्रिटिश लेखिका डोरिस लेसिंग ने उपन्यास, नाटक और लघु कथाएं लिखी है. अकादमी ने 93 साल की लेखिका को संशय, जोश और दूरदर्शी ताकत के साथ विभाजित सभ्यता की छानबीन करने वाला लेखक बताया.
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2006: ओरहान पामुक
नोबेल पुरस्कार देते हुए अकादमी ने कहा, "अपने शहर की उदास आत्मा की खोज में निकले पामुक ने संस्कृतियों के संघर्ष के नए प्रतीक पाए." ओरहान पामुक नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले तुर्क लेखक हैं.
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2005: हैरॉल्ड पिंटर
"उत्पीड़न के बंद कमरों में जबरदस्ती घुसने वाले" पिंटर ने अपने नाटकों पर बनी फिल्मों में भी काम किया.