1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सैटेलाइट से तेंदुए की निगरानी

१९ दिसम्बर २०१३

बर्फ में पाए जाने वाले एक खास तरह के तेंदुए क्यों गायब हो रहे हैं और कहां जा रहे हैं? इस सवाल ने नेपाल में लोगों को इतना उलझाया कि इसका पता लगाने के लिए रिसर्चरों ने एक नई तरकीब निकाली.

तस्वीर: Lakshmi Narayan

रिसर्चरों ने तेंदुओं पर निगाह रखने के लिए तेंदुए की गर्दन में एक विशेष कॉलर पहनाया है. कॉलर की मदद से वैज्ञानिकों के लिए तेंदुए की जासूसी आसान हो रही है.

पर्यावरण परिवर्तन ने पशुओं के जीवन पर काफी बुरा असर डाला है. कई प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं और कई धीरे धीरे गायब होती जा रही हैं. इन्हीं में से एक है बर्फीले इलाकों में पाया जाने वाला तेंदुआ जिसे 'स्नो लेपर्ड' भी कहते हैं.

तेंदुए की जासूसी

वैज्ञानिकों का कहना है कि पर्यावरण परिवर्तन के साथ ये स्नो लेपर्ड पहाड़ों पर और ऊपर की दिशा में बसेरा करने लगे हैं. नेपाल के रिसर्चरों ने इनके नए आवास को समझने के लिए सैटेलाइट से संपर्क वाले कॉलर का उपाय निकाला है.

पिछले महीने भारत नेपाल सीमा पर कंचनजंगा पहाड़ी की तलहटी से एक तेंदुए को पकड़ा गया था. उसके गले में एक ऐसा सैटेलाइट लिंक वाला कॉलर पहनाया गया है जो जीपीआरएस सिस्टम की मदद से यह बताएगा कि वह किस तरफ बढ़ रहा है.

नेपाली वन विभाग के महानिदेशक मेघ बहादुर पांडेय ने बताया, "यह जानने में कि पर्यावरण परिवर्तन और मानव गतिविधियों का पशुओं के प्राकृतिक आवास पर क्या असर पड़ा है, यह बड़ी उपलब्धि होगी. पशुओं के रेडियो कॉलर की मदद से हमें उनके ठिकाने को समझने में मदद मिलेगी."

तस्वीर: AP

पर्यावरण परिवर्तन से तापमान में वृद्धि हो रही है यानि ठंडे वातावरण में रहने वाले तेंदुए पहाड़ों पर और ऊपर की दिशा में रहने के लिए आगे बढ़ते जा रहे हैं. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि वहां तेंदुओं के लिए शिकार की बहुत कम संभावना है जिसकी वजह से उनके लिए खाना खोज पाना मुश्किल होता जा रहा है.

नए ठिकाने की मुश्किलें

कई बार स्नो लेपर्ड शिकारियों की भेंट भी चढ़ जाते हैं. उनकी खाल का इस्तेमाल कोट बनाने के लिए होता है. इसके अलावा कई बार किसान इन्हें अपने जानवरों के लिए खतरा मान कर मार देते हैं. पारंपरिक एशियाई दवाइयां बनाने में भी बर्फ में पाए जाने वाले तेंदुओं की हड्डी का इस्तेमाल होता है.

पांच साल के जिस तेंदुए को यह कॉलर पहनाया गया है उसे घांजेनज्वेंगा नाम दिया गया है. यह उत्तर पूर्वी नेपाल की 7774 मीटर ऊंची पहाड़ी का भी नाम है. कॉलर की मदद से वैज्ञानिकों को हर चार घंटे में घांजेनज्वेंगा की स्थिति की जानकारी मिल रही है.

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के मुताबिक दुनिया भर में बर्फ में रहने वाले इस खास तरह के तेंदुओं की संख्या 4080 से 6590 के बीच है. उनके अनुसार यह उन प्रजातियों में शुमार है जिन पर विलुप्ति का खतरा है.

जानकारों का मानना है कि नेपाल में केवल 300 से 500 ही ऐसे तेंदुए बचे हैं. इस कार्यक्रम को अंजाम देने के लिए नेपाली और विदेशी पशु संरक्षकों की 10 लोगों की टीम पांच दिन तक चढ़ाई कर कंचनजंगा कंजरवेशन एरिया पहुंची जहां स्नो लेपर्ड रहते हैं. इस कार्यक्रम में उन्हें विश्व वन्य जीव संस्था डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने सहयोग दिया. अगले साल तक पांच और तेंदुओं के गले में इस तरह के कॉलर पहनाए जाने की योजना है.

एसएफ/एमजे (एएफपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें