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सैलानियों की पंहुच में चेर्नोबिल भी

२५ सितम्बर २०१०

घूमने फिरने का शौक कहां न ले जाए. महानगरों और हसीन वादियों से लेकर खतरनाक जगहों तक कहीं भी. लेकिन सैलानी अगर चेर्नोबिल तक जा पंहुचें तो चौंकना लाजमी है.

तस्वीर: AP

बिल्कुल सही पहचाना आपने. हम बात कर रहे हैं उसी चेर्नोबिल की जहां 1986 में सोवियत रूस के समय के परमाणु रिएक्टर में विस्फोट के बाद आसपास का इलाका रेडिएशन के प्रभाव में आ गया था. अब यह इलाका यूक्रेन की सरहद का हिस्सा है. रेडिएशन की मात्रा बताते यंत्र हाथ में लिए सैलानी अब यहां भी आसानी से दिख जाते हैं. यह जानने के बावजूद कि इस इलाके में रेडिएशन सामान्य से 35 गुना ज्यादा है. 25 साल पहले अचानक दुनिया की नजरों में आया यह इलाका अब उन जिज्ञासु सैलानियों को अपनी ओर खींच रहा है जो हर रहस्य को बेपर्दा करने को तैयार रहते हैं.

तस्वीर: picture alliance/dpa

इनमें वैज्ञानिकों से लेकर एडवेंचर के शौकीन सैलानी होते हैं जो 160 अमेरिकी डॉलर यानी 122 यूरो चुका कर इस जोखिम भरे इलाके को करीब से देख सकते हैं.

अमेरिकी पत्रिका फोर्ब्स में घूमने लायक दुनिया के अनसुने पर्यटन स्थलों से जुड़े एक लेख में चेर्नोबिवल यह जिक्र किया गया है. इसके मुताबिक पिछले साल चेर्नोबिल घूमने वाले सैलानियों की संख्या 7500 थी. इसे घूमने का तरीका भी बड़ा निराला है. एक बस में सैलानियों को लेकर इस जगह पर लाया जाता है. हालांकि इसकी पहले कोई अनुमति नहीं ली गई होती है. परमाणु संयंत्र के सबसे बाहरी छोर पर इन्हें बस से उतार दिया जाता है और प्रवेश द्वार पर एक फार्म पर दस्तखत करने होते हैं जिसमें नियमों का पालन करने की रजामंदी होती है. नियमों के तहत इस इलाके में खाना पीना, धूम्रपान, किसी भी चीज को छूने, जमीन में बैठने और जमीन में गिरी अपनी ही किसी भी चीज को उठाने की मनाही है.

ढंक दिया गया है संयंत्रतस्वीर: AP

यात्रा संस्मरण के रूप में प्रकाशित इस लेख के मुताबिक सैलानी अक्सर चेर्नोबिल से लौटने पर अपना पूरा सामान नष्ट कर देते हैं जिससे रेडिएशन का यात्रियों के साथ जाने का खतरा समाप्त कहो जाता है. हादसे के बाद इस कुख्यात परमाणु संयत्र को सीमेंट के खोल से पूरी तरह ढक दिया गया है. हालांकि इस तरह के तमाम प्रयासों के बावजूद साल भर बर्फ से ढके इस इलाके में रेडिएशन अभी भी बरकरार है.

इस जगह की तस्वीरें लेने के बाद सैलानी तीन किलोमीटर दूर प्रिपयात गांव का रूख कर लेते हैं. अब इस उजड़े हुए गांव में इंसानी बसेरे के अंश मात्र बचे हैं. 26 अप्रैल 1986 की दोपहर 1 बजकर 23 मिनट पर परमाणु संयत्र के एक रिएक्टर में विस्फोट के बाद इस गांव के लगभग 50 हजार लोगों को अगले ही दिन ही हटा कर सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया गया था. इस हादसे में 4000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी जबकि 23 लाख लोग अब तक प्रभावित हुए हैं.

रिपोर्टः एएफपी/निर्मल

संपादनः एन रंजन

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