सोनागाछी से पौलैंड का सफर
३ जुलाई २०१३बेघरों का विश्वकप फुटबॉल 10 अगस्त से पोलैंड में खेला जाएगा. सोनागाछी में यौनकर्मियों के लिए काम करने वाली संस्था दुर्बार महिला समन्वय समिति इन फुटबालरों की सहायता का प्रयास कर रही है. लेकिन सरकार या किसी दूसरे संगठन ने खास रुचि नहीं दिखाई है.
यौनकर्मी के बेटे
सोनागाछी की यौनकर्मी का पुत्र विश्वजीत नंदी 12वीं कक्षा का छात्र है तो सुरजीत भट्टाचार्य कॉलेज में फर्स्ट ईयर में पढ़ता है. दोनों बरसों से फुटबाल खेलते हैं. स्लम सॉकर नामक संगठन जब पोलैंड वाले टूर्नामेंट के लिए प्रतिभाओं की तलाश में कोलकाता पहुंचा तो उसने दुर्बार महिला समन्वय समिति से संपर्क किया. समिति ने इन दोनों के नाम सुझाए. कोई दो महीने पहले इन्हें चुन लिया गया.
इसके बाद दोनों के सपनों को पंख लग गए. विश्वजीत का कहना है, "यौनकर्मी का पुत्र होने की वजह से मैं उन लोगों के सामने खुद को साबित करना चहता था जो मुझे उपेक्षा की नजरों से देखते थे. इस प्रतियोगिता के जरिए मैं दुनिया को दिखाना चाहता हूं कि यौनकर्मी का पुत्र होना मेरी कमजोरी नहीं बल्कि मजबूती है." दूसरे युवक सुरजीत का कहना है, "मुझे यहां तक पहुंचाने के लिए मेरी मां ने काफी संघर्ष किया. अब उसे गर्व है कि मुझे विदेश में खेलने का मौका मिला है." लेकिन इसकी राह में धन एक बड़ी समस्या है. इन दोनों युवकों को कम से कम डेढ़-डेढ़ लाख रुपये का जुगाड़ करने को कहा गया है.
दुर्बार महिला समन्वय समिति
सोनागाछी में यौनकर्मियों के लिए काम करने वाली इस समिति के अध्यक्ष समरजीत जाना कहते हैं, "हम उन दोनों के लिए पैसों का जुगाड़ करने का प्रयास कर रहे हैं." दोनों युवकों के कोच विश्वजीत मजुमदार का कहना है, "यह पहला मौका है जब किसी यौनकर्मी का बेटा भारत का प्रतिनिधित्व करने विदेश जा रहा है.. यह पूरे यौनकर्मी समुदाय के लिए गर्व की बात है." वह कहते हैं कि इन दोनों में गजब की प्रतिभा है. उन्होंने इन दोनों को पहली बार लगभग पांच साल पहले खेलते हुए देखा. उसी समय उन्हें इनकी प्रतिभा का अहसास हुआ. लेकिन इसे सामने लाने को मौका अब मिला है.
प्रतिभावान फुटबालर
नंदी ने दुर्बार महिला समन्वय समिति की टीम के साथ पिछले साल दिसंबर में दिल्ली में आयोजित सल्म सॉकर टूर्नामेंट में हिस्सा लिया. वहां यह टीम सेमीफाइनल मुकाबले में हार गई. लेकिन दोनों फुटबालरों ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान 28 गोल दागे. पोलैंड में होने वाले टूर्नामेंट में भारतीय टीम में चयन की खबर मिलने पर पहले तो सुरजीत को पहले यकीन ही नहीं हुआ, "हमें तो भरोसा ही नहीं हुआ. हमारे पास पासपोर्ट भी नहीं थे. पहली बार विदेश जाने का मौका मिलने पर हम बेहद खुश हैं." अब इनके पासपोर्ट बन चुके हैं. दोनों फिलहाल जमशेदपुर में आयोजित प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा ले रहे हैं.
सरकारी समर्थन नहीं
इन युवकों के मामले में अब तक किसी गैरसरकारी संगठन या सरकार ने मदद का हाथ नहीं बढ़ाया है. स्लम सॉकर के सीआईओ अभिजीत बारसे कहते हैं, "बेघरों के विश्वकप को राष्ट्रीय स्तर पर कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती है. यह खेल यहां अभी शुरुआती दौर में है." वह बताते हैं कि इस टीम की रैंकिग लगातार सुधर रही है. पहले यह 48वें नंबर पर थी लेकिन अब 30वें नंबर पर पहुंच गई है.
बेघरों का विश्वकप
बेघरों के विश्वकप का आयोजन करने वाली संस्था का गठन साल 2001 में हुआ. ऐसा पहला सालाना टूर्नामेंट 2001 में ऑस्ट्रिया में आयोजित किया गया. इस साल टूर्नामेंट पौलैंड में हो रहा है. जाना कहते हैं, "इन दोनों युवकों के चयन से समाज में यौनकर्मियों को एक नई पहचान मिलेगी. इससे यह संदेश भी जाएगा कि यौनकर्मियों की संतान भी किसी मायने में दूसरों से कम नहीं."
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः ए जमाल