भारत में राजनीतिक दलों को आदेश दिए गए हैं कि वे अपने सोशल मीडिया अकाउंट से अभद्र भाषा और गलत जानकारियों को साफ करें. वहीं विशेषज्ञ मान रहे हैं कि सोशल मीडिया में आचार संहिता लागू करना आसान नहीं होगा.
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भारत में इस बार आम चुनावों से पहले राजनीतिक मुद्दों से अलग जिस मुद्दे पर सबसे अधिक बात हो रही है वह है सोशल मीडिया और फेक न्यूज. हाल में चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया कंपनियां मसलन फेसबुक, व्हाट्सऐप, गूगल, टिकटॉक और टि्वटर के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की. चुनावों के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का गलत इस्तेमाल न हो इस पर भी खास चर्चा की गई.
दो दिन तक चले ऐसे सत्र का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार अपने एकाउंट से सोशल मीडिया पर अपुष्ट विज्ञापन, अभद्र भाषा और आपत्तिजनक मीम और फर्जी खबरें न डाल सकें. मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "हम चाहते हैं कि सोशल मीडिया क्षेत्र में सक्रिय कंपनियां अपने मंच के सही इस्तेमाल के लिए एक आचार संहिता बनाएं. साथ ही कंपनियां अपने प्लेटफॉर्मों का गलत इस्तेमाल न होने दें."
देश दुनिया में हुए अब तक कई चुनावों में फेक न्यूज और गलत जानकारियों का दखल बढ़ा है. कई मौकों पर सोशल मीडिया पर चलने वाली जानकारियों और खबरों ने समाज में हलचल और हिंसा को भी हवा दी है. ऐसे में माना जा रहा है कि भारत में सोशल मीडिया एक आम मतदाता को प्रभावित करने में काफी हद तक अहम भूमिका निभा सकता है.
चुनावों से पहले क्या सोच रहे हैं भारतीय
अमेरिकी थिंक टैंक पीयू रिसर्च के हालिया सर्वे बताते हैं कि भारतीयों के लिए बेरोजगारी और महंगाई दो सबसे अहम मुद्दे हैं. वहीं आम लोग सोशल मीडिया के जरिए मिलने वाली जानकारी को लेकर चिंतित भी है.
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सबसे बड़े मुद्दे
सर्वे में शामिल करीब 76 फीसदी भारतीय मानते हैं कि देश में रोजगार की कमी अब भी सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है. इसके बाद लोगों को महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, अपराध जैसे मुद्दे सताते हैं. लोग यह भी मानते हैं तमाम दावों के बावजूद देश में अमीर-गरीब के बीच पैदा खाई और सांप्रदायिक तनाव को कम करने के लिए ज्यादा कुछ काम नहीं किया गया है.
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नेता हैं भ्रष्ट
सर्वे के नतीजे बताते हैं कि अधिकतर भारतीय नेताओं को भ्रष्ट मानते हैं. सर्वे में हिस्सा लेने वाले करीब 64 फीसदी लोगों ने कहा कि नेता भ्रष्ट होते हैं. इतना ही नहीं 58 फीसदी भारतीय मानते हैं कि कोई भी पार्टी या नेता चुनाव जीत जाए लेकिन हालात नहीं बदलेंगे.
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लोकतंत्र अच्छा
नेताओं से निराशा के बावजूद भारतीय मानते हैं कि देश में अन्य लोकतांत्रिक मूल्यों को जगह मिलती है. 47 फीसदी लोग मानते हैं कि भारतीय न्यायपालिका सभी के साथ समान व्यवहार रखती है. हालांकि 54 फीसदी लोग ही भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था से संतुष्ट हैं, वहीं कुछ लोग इस व्यवस्था के प्रति असंतुष्टि भी जाहिर करते हैं.
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पाकिस्तान से चिंता
सर्वे में शामिल 76 फीसदी भारतीयों ने कहा कि पाकिस्तान उनके देश के लिए बड़ा खतरा है, जिसमें से 63 फीसदी इसे बहुत गंभीर खतरा मानते हैं. यह सोच ग्रामीण और शहरी क्षेत्र दोनों ही जगह नजर आती है. वहीं 65 फीसदी लोग मानते हैं कि भारत में आतंकवाद भी एक बहुत बड़ी समस्या है.
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कश्मीर पर नजरिया
कश्मीर मुद्दे पर 55 फीसदी भारतीयों ने कहा कि ये बहुत बड़ी समस्या है. वहीं 53 फीसदी मानते हैं कि पिछले पांच सालों में कश्मीर मुद्दा बिगड़ता गया है. कश्मीर से जुड़े एक अन्य सवाल पर 58 फीसदी लोगों ने कहा कि भारत सरकार को कश्मीर में बनी तनाव की स्थिति से निपटने के लिए अधिक सैन्य बल का प्रयोग करना चाहिए.
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इंटरनेट का इस्तेमाल
सर्वे में हिस्सा लेने वाले 80 फीसदी भारतीय कहते हैं कि उनके पास मोबाइल फोन है या वह किसी अन्य के मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं. 81 फीसदी यूजर्स कहते हैं कि मोबाइल फोन उनके लिए समाचार पाने का बड़ा जरिया है. लेकिन राजनीति पर मोबाइल फोन पर आने वाली खबरों का क्या असर होगा इस पर राय बंटी हुई है.
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मोबाइल पर शक
बीजेपी को समर्थन देने वाले 49 फीसदी वयस्क तो कांग्रेस के 33 फीसदी समर्थक मानते हैं कि मोबाइल फोन का राजनीति में सकारात्मक प्रभाव होता है. वहीं 77 फीसदी मानते हैं कि वे मोबाइल पर आने वाली जानकारी के सही या गलत होने पर कुछ हद तक चिंता होती है. लेकिन इनमें से 45 फीसदी इस मुद्दे पर काफी चिंतित हैं.
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लोकप्रिय सोशल मीडिया
सर्वे में कुल सात सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफॉर्मों को शामिल किया गया. नतीजे बताते हैं कि व्हट्सऐप (29 फीसदी) और फेसबुक (24 फीसदी) का भारतीय सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. हालांकि एक बड़ा तबका अब भी सोशल मीडिया से दूर है इसके बावजूद 1.3 अरब लोगों के देश में फेसबुक और व्हट्सऐप के सबसे अधिक यूजर्स हैं.
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सर्वे में शामिल
पीयू रिसर्च सेंटर के इस सर्वे में करीब 2,521 भारतीयों को शामिल किया गया था. यह सर्वे साल 2018 में 23 मई से 23 जुलाई के बीच करवाया गया.
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भारत में तकरीबन 46 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. चीन के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाइन बाजार है. कयास हैं कि साल 2021 तक देश में तकरीबन 63.5 करोड़ लोग इंटरनेट के दायरे में होंगे. मोबाइल कंपनियों के हालिया अध्ययन बताते हैं कि भारत में 80 फीसदी शहरी लोग तो वहीं 92 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों के लोग ऑनलाइन आने के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं. वहीं मैसेजिंग ऐप व्हाट्सऐप के भारत में करीब 20 करोड़ सक्रिय यूजर हैं तो यही कुछ आंकड़ा फेसबुक यूजरों का भी है. टि्वटर का इस्तेमाल करीब तीन करोड़ भारतीय करते हैं. तेजी से ऑनलाइन होती दुनिया में अब नियामकों को चिंता है कि कैसे फेक न्यूज से पार पाया जा सके.
कौन तय करेगा?
फैक्ट चेकिंग वेबसाइट आल्टन्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने डीडब्ल्यू से कहा, "क्या सही है और क्या गलत ये तय करना मुश्किल है. यह सब काफी पहले सोचा जाना चाहिए था, तब नहीं जब चुनाव सिर पर हैं." प्रतीक कहते हैं कंटेट जांचने के चुनाव आयोग के नियम कायदे स्पष्ट नहीं हैं. ऐसे में यह कौन तय करेगा कि क्या आपत्तिजनक है और क्या नहीं? प्रतीक की ही तरह कई लोग व्हॉट्सऐप पर आने वाले मैसेजों पर नियम कायदे तय करने में संशय व्यक्त करते हैं. डिजिटल एक्सपर्ट सुनील प्रभाकर कहते हैं, "जो भी सोशल मीडिया पर पोस्ट किया जाता है उसे वायरल होने में चंद सेंकडों का वक्त लगता है. जब तक किसी पोस्ट की सच्चाई का पता किया जाता है तब तक उसका नुकसान हो चुका होता है."
फेसबुक के साथ पार्टनरशिप में काम करने वाल वेबसाइट बूम के मैनेजिंग एडिटर जेंसी जैकब कहते हैं कि यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म चुनाव आयोग के अनुरोधों का कैसे जवाब देगा. बूम फेसबुक के साथ मिलकर सोशल मीडिया पोस्ट को जांचने का काम करती है. उन्होंने कहा कि अब तक काफी कुछ अस्पष्ट है.
फेसबुक और व्हॉट्सऐप
फेसबुक ने कहा है कि वह दिल्ली में एक ऑपरेशन सेंटर शुरू करने की योजना बना रहा है जो चुनाव संबंधी सामग्री की निगरानी करेगा. कंपनी के मुताबिक नया ऑफिस डबलिन और सिंगापुर में फेक न्यूज के खिलाफ काम रहे दफ्तरों के साथ मिलकर काम करेगा. भारत और दक्षिण एशिया क्षेत्र में फेसबुक के पब्लिक पॉलिसी डायरेक्टर शिवनाथ ठुकराल ने कहा, "चुनाव आयोग के साथ करीब से काम करके हम जान सकेंगे कि कैसे चुनावों के दौरान किसी भी गलत जानकारी को रोका जा सकता है."
इतना ही नहीं फेसबुक ने कई सारी मीडिया कंपनियों और तथ्यों को जांचने के लिए लोगों को अपने साथ जोड़ा है. हालांकि इन सब के बावजूद कई सोशल मीडिया एक्सपर्ट मानते हैं कि आपत्तिजनक कंटेट को रोकना और उसे ब्लॉक करना कंपनियों के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि सोशल मीडिया का दखल भी कई स्तर पर है. कुछ अकाउंट्स किसी भी राजनीतिक दल से आधिकारिक तौर पर नहीं जुड़े हैं लेकिन फिर भी वे राजनीतिक हित पहुंचाने वाले संदेश लिखते हैं.
वहीं व्हाट्सऐप भी दो ऐसे नए फीचर को टेस्ट कर रहा है जो गलत जानकारियों को आगे बढ़ने से रोक सकते हैं. पिछले कुछ महीनों से व्हाट्सऐप मैसेजों पर फॉरवर्ड का लेबल भी लगा रहा है, ताकि यूजर यह समझ सकें कि मैसेज उसे भेजने वाले ने तैयार नहीं किया है. व्हाट्सऐप इंडिया के प्रमुख अभिजीत बोस ने कहा, "साफ-सुथरे चुनाव हमारी प्राथमिकता है और इसलिए हम चुनाव आयोग और अन्य पार्टनरों के साथ करीब से काम कर रहे हैं."
यूजर भी कम नहीं
स्थानीय रिपोर्टों के मुताबिक सत्ता में काबिज बीजेपी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस व्हाट्सऐप पर पहले ही अपने अभियान छेड़ चुकी है. एक अनुमान के मुताबिक बीजेपी के तकरीबन दो से तीन लाख व्हाट्सऐप ग्रुप हैं वहीं कांग्रेस के वाट्सऐप ग्रुप की संख्या 80 हजार से एक लाख के करीब बैठती है. सोशल मीडिया विश्लेषक जिग्नेश तिवारी कहते हैं, "ऑनलाइन यूजरों की बढ़ती संख्या के बीच सोशल मीडिया ने राजनीतिक प्रचार के तौर-तरीकों को ही बदल कर रख दिया है. अब देश के राजनीतिक दल और उनसे जुड़े संगठन अपने मतलब का समाचार फैलाने में काफी आगे हो गए हैं और आचार संहिता देर से आई है."
2019 के चुनावों में ये सब पहली बार हो रहा है
भारतीय चुनाव आयोग अब तक 16 आम चुनाव करवा चुका है. लेकिन आयोग चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष रखने के लिए समय-समय पर कई चीजें आजमाता रहा है. लोकसभा चुनाव 2019 में आयोग ये नए कदम उठाने जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उम्मीदवारों की तस्वीरें
देश के कुल वोटरों में से 30 करोड़ निरक्षर हैं. आयोग ने इनका ध्यान रखते हुए अब राजनीतिक दल के चिन्हों के साथ वोटिंग मशीन में उम्मीदवारों की तस्वीर लगाने का फीचर भी जोड़ा है. साथ ही धांधली और वोटिंग मशीन में किसी भी गड़बड़ी से बचने के लिए मतदाता को वोट डालने के बाद एक चिट दी जाएगी. इसके अलावा वोटिंग मशीन ले जाने वाले वाहनों की निगरानी के लिए उन्हें जीपीएस से जोड़ा गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
आरोपों की स्वघोषणा
मौजूदा संसद के करीब 186 सांसदों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं. इसमें से 112 ऐसे हैं जिन पर हत्या और बलात्कार जैसे संगीन आरोप लगे हैं. इस बार कानूनी मामलों में फंसे उम्मीदवार को कम से कम तीन अखबार या टीवी विज्ञापनों के जरिए अपने ऊपर चल रहे मामलों के बारे में आम लोगों को बताना होगा. ये विवरण उस इलाके के लोगों को देना होगा, जहां से उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.
तस्वीर: Press information department of India
दागी नेताओं के रिकॉर्ड
भारतीय थिंक टैंक 'द एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म' (एडीआर) ने 2014 की एक रिपोर्ट में कहा था कि ऐसे उम्मीदवार जिन पर संगीन आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं उनकी जीतने की संभावनाएं काफी प्रबल होती हैं. इस साल सभी उम्मीदवारों को अपने पिछले पांच साल के इनकम टैक्स रिटर्न का ब्यौरा भी सार्वजनिक करना होगा. साथ ही विदेश में अपनी संपत्ति और देनदारियों का ब्यौरा देना भी उम्मीदवारों के लिए अनिवार्य किया गया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Strdel
ऑनलाइन निगरानी
वेब कैमरों के जरिए इंटरनेट पर पांच हजार से अधिक मतदान और गिनती केंद्रों की लाइव स्ट्रीमिंग की जाएगी. इसके अलावा एक स्मार्टफोन ऐप के जरिए नागरिक मतदान केंद्र पर हुए किसी भी प्रकार के अभद्र व्यवहार, चुनावी गड़बड़ी, शराब या ड्रग्स जैसी बातों की शिकायत कर सकेंगे. गुमनाम शिकायतकर्ता किसी भी फोटो और वीडियो को इस ऐप कर अपलोड कर सकेंगे जिस पर अधिकारियों को 100 मिनट के भीतर कार्रवाई करनी होगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
फीडबैक और सोशल मीडिया
आयोग ने इस बार एक टोल-फ्री हेल्पलाइन भी शुरू की है. इस हेल्पलाइन के जरिए मतदाता कोई जानकारी और शिकायत दर्ज कराने के अलावा वोटिंग से जुड़ा अपना फीडबैक भी दे सकेंगे. इस बार उम्मीदवारों को अपने चुनावी दस्तावेज में सोशल मीडिया खातों की भी जानकारी देनी होगी. इस नए कदम का मकसद चुनावों में सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाना है.
तस्वीर: DW/S.Waheed
ऑनलाइन विज्ञापन
अब चुनाव आयोग सोशल मीडिया के विज्ञापनों पर भी नजर रखेगा. साथ ही राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों के चुनावी विज्ञापन को उनके चुनावी खर्च के साथ जोड़ा जाएगा. फेसबुक ने साफ किया है कि पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से वह राजनीतिक विज्ञापनों में उसे छपवाने वाले की जानकारी देगा. यह नई नीति फोटो शेयरिंग ऐप इंस्टाग्राम पर भी लागू होगी.
तस्वीर: Reuters
थर्ड जेंडर
यह पहला मौका है जब भारत के तकरीबन 39,000 नागरिकों ने स्वयं को बतौर "थर्ड जेंडर" रजिस्टर किया है. देश में ट्रांसजेंडर्स लोगों की आबादी करीब 50 हजार है, लेकिन अब से पहले उन्हें पुरुष या महिला के रूप में स्वयं को रजिस्टर करना होता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
महिलाओं का बूथ
इन चुनावों में पहली बार हर निर्वाचन क्षेत्र को एक मतदान केंद्र सिर्फ महिलाओं के लिए तैयार करना होगा. हालांकि कर्नाटक में यह संख्या कहीं ज्यादा है. राज्य में ऐसे तकरीबन 600 मतदान केंद्र होंगे, जहां स्टाफ से लेकर सुरक्षा तक की सारी जिम्मेदारी महिलाएं संभालेंगी. (एएफपी/एए)