सोशल मीडिया में नफरत के प्रसार पर जर्मनी और ईयू बंटे
२७ अक्टूबर २०१७
सोशल मीडिया के प्रसार के साथ घृणा और हिंसा के प्रसार में भी उसका इस्तेमाल होने लगा है. तो फिर कैसे रोका जाए सोशल मीडिया में नफरत फैलाने वालों को? हाल ही में जर्मनी में एक कानून लागू हुआ है.
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जर्मनी ने यहूदियों और विदेशियों के खिलाफ प्रचार अभियान को देखते हुए नया कानून पास किया है लेकिन यूरोपीय आयोग उसमें जोखिम देखता है. यूरोपीय आयोग के उप प्रमुख आंद्रुस अंसिप ने जर्मनी द्वारा अकेले कदम उठाए जाने की निंदा की है और कहा है, "यूरोपीय संघ के लिए सचमुच बुरा है कि हर सदस्य देश खुद अपना कानून बनाना शुरू करें."
डिजीटल घरेलू बाजार के लिए जिम्मेदार अंसिप का कहना है कि यूरोप के लोगों और उद्यमों के अलावा फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब जैसे डिजीटल प्लेटफार्मों के लिए अलग अलग नियमों को समझना मुश्किल होगा. उन्होंने कहा कि लक्ष्य विभाजन से बचना होना चाहिए.
अंसिप का इशारा जर्मनी के नये कानून की ओर था जिसमें इंटरनेट में नफरल फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है. अक्टूबर से लागू नये कानून का मकसद यह है कि आपराधिक सामग्रियों को सोशल मीडिया नेटवर्क जल्द से जल्द मिटा देंगे. पहली जनवरी से आम मामलों में 24 घंटे के अंदर और जटिल मामलों में एक हफ्ते के अंदर ऐसा करना होगा.
नियमों के व्यवस्थित हनन की स्थिति में 5 करोड़ यूरो के जुर्माने का प्रावधान है. यूरोपीय आयोग के उप प्रमुख ने इस बात के कोई संकेत नहीं दिये कि यूरोपीय आयोग जर्मन कानून के अनुरूप क्या यूरोपीय कानून लायेगा ताकि नियमों की उलझन को दूर किया जा सके.
अंसिप ने स्वीकार किया कि इंटरनेट पर घृणा और नफरत फैलाना एक गंभीर समस्या है, लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को उनपर कार्रवाई करने के लिए समय दिया जाना चाहिए. एस्तोनिया के अंसिप ने चिंता जतायी कि जर्मनी जैसे कानून का इस्तेमाल दूसरे देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करने में किया जा सकता है. हालांकि उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया लेकिन यूरोपीय आयोग पोलैंड और हंगरी जैसे देशों में हो रहे घटनाक्रम की आलोचना करता रहा है.
एमजे/एके (डीपीए)
परवान चढ़ता उग्र दक्षिणपंथ
इस्लामी कट्टरपंथ और शरणार्थी संकट ने पश्चिमी देशों में उग्र दक्षिणपंथ का खतरा बढ़ाया. कट्टरपंथी हमलों और शरणार्थियों से घबराए लोगों का गुस्सा इस्लाम और सरकारों पर उतर रहा है. मुख्य धारा की पार्टियां समर्थन खो रही हैं.
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बढ़ता असर
उग्र दक्षिणपंथी पार्टियों का पॉपुलिज्म यूरोप के लिए नया नहीं है, पिछले कुछ सालों से ईयू की कथित मनमानियों और आर्थिक मुश्किलों के कारण उग्र दक्षिणपंथ के लिए समर्थन बढ़ रहा था लेकिन शरणार्थियों के आने से उसमें और इजाफा हुआ है.
तस्वीर: DW
फ्रांस में ले पेन
पेरिस पर आतंकी हमलों के तुरंत बाद फ्रांस में हुए स्थानीय चुनावों में मारी ले पेन की उग्र दक्षिणपंथी नेशनल फ्रंट पार्टी को फायदा पहुंचा है और वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद की सोशलिस्ट पार्टी तीसरे नंबर पर खिसक गई है.
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स्विट्जरलैंड पर भी असर
स्विट्रजरलैंड कभी भी उग्र दक्षिणपंथ का गढ़ नहीं रहा. लेकिन यूरोप के शरणार्थी संकट के बीच अक्टूबर में हुए चुनावों में आप्रवासन विरोधी स्विस पीपुल्स पार्टी एसवीपी को 11 अतिरिक्त सीटें मिली और उसने संसद की 200 में से 65 सीटें जीत लीं.
तस्वीर: Reuters/A. Wiegmann
जर्मनी में पेगीडा
जर्मनी में पिछले कई महीनों से आप्रवासन विरोधी ड्रेसडेन शहर में हर सोमवार को प्रदर्शन कर रहे हैं. हालांकि प्रदर्शनों को हर शहर में ले जाने का उनका प्रयास विफल रहा है लेकिन आप्रवासन विरोधी एएफडी पार्टी के लिए समर्थन बढ़ रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Arno Burgi
फिनलैंड में जीत
इस साल फिनलैंड में हुए चुनावों में राष्ट्रवादी फिन्स पार्टी संसद में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. कुछ लोगों का कहना है कि आप्रवासी विरोधी भावना से शरणार्थियों का बड़ी संख्या में आना उग्र दक्षिणपंथ को बढ़ावा दे रहा है.
तस्वीर: Reuters/Mikko Stig/Lehtikuva
पोलैंड का रास्ता
पोलैंड में पिछले दिनों हुए चुनावों में अति दक्षिणपंथी पार्टी की जीत हुई है और प्रधानमंत्री बेयाटा सीडलो की सरकार ने ईयू के कोटे के अनुसार शरणार्थियों को लेने से साफ मना कर दिया है. वह पिछले सरकार के फैसले को मानने के लिए तैयार नहीं हैं.
तस्वीर: picture-alliance/epa/T. Gzell
हंगरी में राष्ट्रवाद
हंगरी में विक्टर ओरबान की अनुदारवादी पार्टी 2010 में ही भारी बहुमत से सत्ता में आ गई थी. तब से वह अति राष्ट्रवादी फैसले लेती रही है और यूरोपीय मूल्यों से दूर होती रही है. देश में राष्ट्रवाद और अल्पसंख्यकों पर संदेह का बोलबाला है.
तस्वीर: Reuters/M. Dalder
डेनमार्क में प्रभाव
जून में हुए संसदीय चुनावों में डेनमार्क की उग्र दक्षिणपंथी पार्टी डैनिश पीपुल्स पार्टी संसद में दूसरे नंबर पर रही है. शरण को पूरी तरह बंद करने की मांग करने वाली पार्टी को 21 प्रतिशत मत मिले. सोशल डेमोक्रैट्स भी वहां शरण पर सीमा का समर्थन करते हैं.
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ग्रीस में सात प्रतिशत
ग्रीस में पिछले सितंबर में हुए संसदीय चुनावों में उग्र दक्षिणपंथी पार्टी गोल्डन डाउन को महत्वपूर्ण सफलता मिली. उसे 7 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिला और नई संसद में वह तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.