वैज्ञानिकों ने हमारे सौरमंडल के सबसे सुदूर ज्ञात खगोलीय पिंड को ढूंढ निकाला है. सौरमंडल में होते हुए भी यह इतना दूर है कि इसे आम बोलचाल में "फारआउट" नाम से जाना जाने लगा है.
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आहिस्ता आहिस्ता घूमता गुलाबी रंग का बर्फीला क्षुद्र ग्रह सौरमंडल में सूरज और पृथ्वी के बीच की दूरी से करीब 120 से 130 गुना ज्यादा दूर है. वॉशिंगटन में कार्नेगी इंस्टीट्यूटशन फॉर साइंस के खगोलविज्ञानी स्कॉट शेपर्ड ने बताया कि इस क्षुद्र ग्रह को आधिकारिक रुप से 2018 वीजी 18 नाम दिया गया है और अनुमान है कि इसका व्यास करीब 500-600 किलोमीटर है.
हमारे सौरमंडल में करीब 50 क्षुद्र ग्रह हैं. इनमें सबसे बड़ा प्लूटो है जिसका व्यास 2370 किलोमीटर है, इसके अलवा एक और क्षुद्र ग्रह है एरिस उसका व्यास करीब 2325 किलोमीटर है. शेपर्ड ने कहा, "जब मैंने पहली बार इस पिंड को देखा तो यह बेहद धीमी गति से घूम रहा था और मैंने इतनी धीमी गति कहीं और नहीं देखी थी, तो मैंने खुद से कहा यह 'दूर की चीज है' जैसे कि 'यह बहुत शानदार है.' लेकिन यह दूरी के मामले में भी बहुत दूर की चीज है, यही वजह है कि मैंने इसे फारआउट कहना शुरू किया."
ब्रह्मांड में अजूबों की भरमार
जितनी विविध पृथ्वी है, उतना ही विविध ब्रह्मांड भी है. वहां कई खूबियों वाले ग्रह हैं. कोई हीरों से भरा है तो कोई धधकता गोला सा है. एक नजर ऐसे ग्रहों पर.
तस्वीर: Reuters/Caltech/MIT/LIGO
विशाल छल्ला
पृथ्वी से 434 प्रकाश वर्ष दूर एक बड़ा ग्रह है. वैज्ञानिक इसे J1407B कहते है. यह बृहस्पति और शनि से भी 40 गुना बड़ा है. इस ग्रह के बाहर बना छल्ला 12 करोड़ किलोमीटर तक फैला है. वैज्ञानिकों को लगता है कि J1407B में चंद्रमा बनने जा रहा है.
तस्वीर: NASA/Ron Miller
पानी नहीं, सिर्फ बर्फ या गैस
सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन ग्लिश 436बी ग्रह अपने तारे के बेहत करीब घूमता है. इस वजह से इसकी सतह का तापमान 439 डिग्री तक पहुंच जाता है. अथाह गर्मी से बर्फ सीधे गैसों में टूट जाती है और ग्रह के आस पास हाइड्रोजन के बादल बनने लगते हैं.
तस्वीर: NASA/public domain
तारकोल से लबालब
बाहरी ब्रह्मांड में ट्रेस-2b नाम का ग्रह भी मिला. यह अपने तारे से मिलने वाली सिर्फ एक फीसदी रोशनी को परावर्तित करता है. इसे ब्रह्मांड का अब तक खोजा गया सबसे काला ग्रह माना जाता है. ग्रह की सतह में विषैला तारकोल और उससे निकलने वाली गैसें हैं.
तस्वीर: NASA/Kepler/TrES/David A. Aguilar (CfA)
तीन सूरज वाला ग्रह
HD 188 753 Ab पहला ऐसा ग्रह है जिसके पास तीन सूर्य हैं. इस ग्रह की खोज 2005 में पोलैंड के वैज्ञानिक ने की थी. वैज्ञानिकों ने ऐसे और ग्रह खोजने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
हीरों की खान
55 कैंक्री में अथाह मात्रा में कार्बन है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 55 कैंक्री की सतह हीरों से भरी है. लेकिन वहां तक पहुंचने के मतलब है 1,700 डिग्री का तापमान झेलना.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
सुंदर, लेकिन घातक
धरती की तरह नीले इस ग्रह का नाम है HD189733. लेकिन वहां जीवन के लिए कोई जगह नहीं. HD189733 का तापमान 1,000 डिग्री से ज्यादा है. वहां 7,000 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से खगोलीय बारिश भी होती है.
तस्वीर: NASA/ESA/M. Kornmesser
एक और धरती
ग्लिश 581 C की खोज ने विज्ञान जगत को कौतूहल से भर दिया था. इसे धरती का जोड़ीदार मानते हुए जीवन के लिए मुफीद करार दिया गया. लेकिन जैसे जैसे ज्यादा जानकारी मिली वैसे वैसे कौतूहल खत्म होता गया. यह ग्रह गुरुत्व बल के संघर्ष में फंसा हुआ है. इसकी वजह से ग्रह का एक ही हिस्सा हमेशा प्रकाश की तरफ रहता है.
तस्वीर: ESO
हॉट टब
GJ1214b गर्म पानी के टब की तरह है. 230 डिग्री सेल्सियस की गर्मी के चलते यह ग्रह ब्रह्मांड में लगातार भाप और बादल छोड़ता रहता है.
तस्वीर: ESO/L. Calçada
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सोमवार को इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन के माइनर प्लेनेट सेंटर ने इस क्षुद्र ग्रह के खोज की घोषणा की. शेपर्ड का कहना है, "हम इसके बारे में बहुत कुछ नहीं जानते, पिछले महीने ही हमने इसकी खोज की है. इसकी चमक से हम इसके आकार का पता लगा सकते हैं. हम इसका रंग जानते हैं, यह गुलाबी जैसा है जिसमें लालिमा भी है. अगर आप बर्फ को वहां रख दें और उसे सूरज की किरणों से चमकाएं तो बर्फ में लालिमायुक्त गुलाबी रंग दिखता है. तो हम सोचते हैं कि इसकी सतह शायद बर्फ से ढंकी है."
शेपर्ड और दूसरे वैज्ञानिकों को फारआउट का पता सौरमंडल के सुदूर पिंडों की खोज के दौरान चला. इसमें एक और संभावित ग्रह एक्स भी है जो आकार में पृथ्वी से 10 गुना बड़ा है. उनका कहना है कि फारआउट की गति इतनी धीमी है कि इसे सूरज का सिर्फ एक चक्कर लगाने में 1000 साल से ज्यादा का वक्त लगेगा.
सौरमंडल के दूसरे सबसे दूर पिंडों एरिस को वैज्ञानिक लंबे समय से देख रहे हैं. यह पृथ्वी और सूरज के बीच की दूरी से 96 गुना ज्यादा दूर है. इसके अलावा प्लूटो भी है जो करीब 34 गुना ज्यादा दूर है.
पहाड़ों में मंगल ग्रह का आनंद
वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर इंसान की यात्राओं को संभव बनाने के बहुत करीब पहुंच गए हैं. ऑस्ट्रिया की आल्प्स पहाड़ियों के ग्लेशियर में लाल ग्रह जैसी कठिन परिस्थितियों में वैज्ञानिक मंगल यात्रा के लिए तैयारी कर रहे हैं.
तस्वीर: Imago//K.-P. Wolf
अमादी-15
दो हफ्ते लंबे प्रोजेक्ट का नाम है अमादी-15. ऑस्ट्रियन स्पेस फोरम ने इसे 3 अगस्त 2015 को काउनेरटाल ग्लेशियर पर शुरु किया. एनालॉग एस्ट्रोनॉट्स कहे जाने वाले बर्लिन की कार्मेन कोएलर और स्पेन के मूनोज एलोर्जा ने मंगल जैसे माहौल वाले इस ग्लेशियर को अभ्यास के लिए चुना.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Röder
भारी भरकम कपड़े
एल्युमीनियम की परत और आग-रोधी केवलार से बने इस विशेष स्पेससूट का वजन करीब 48 किलोग्राम है. 5 महीने की कठिन ट्रेनिंग के बाद इस खास मिशन के लिए चुनी गई गणितज्ञ और मौसमविज्ञानी कार्मेन कोएलर बताती हैं कि सूट पहन कर, "झुकना और उठना मुश्किल है."
तस्वीर: Imago/Eibner Europa
मंगल जैसी चट्टानें और बजरी
गर्मियों में ग्लेशियर की चट्टानी सतह पर चलना लाल ग्रह जैसा ही मुश्किल होता है. यही कारण है कि मंगल पर चलने फिरने के अभ्यास के लिए यहां "आदर्श स्थिति" है. यहां दो मार्स-रोवर मॉडलों का भी परीक्षण हो रहा है, जो काफी बड़ी चट्टानों के ऊपर से भी अपना रास्ता बनाने में सक्षम हैं.
तस्वीर: Imago/Eibner Europa
स्नोकैट नहीं रोवर
इस मार्स रोवर के कई गुण ऑपर्चूनिटी से मिलते जुलते हैं. ऑपर्चूनिटी पिछले 11 साल से मंगल की जानकारियां जुटा रहा है. 2012 में उसका साथ देने के लिए क्यूरियोसिटी नाम के आधुनिक रोवर को भी मंगल भेजा गया. धरती से मार्स रोवर तक कोई भी सिग्नल पहुंचाने में नासा के वैज्ञानिकों को करीब 20 मिनट लगते हैं.
तस्वीर: Imago/Eibner Europa
लंबी यात्रा में परेशानी
मंगल तक जाने और वापस लौटने में करीब 3 साल लग जाएंगे. इस यात्रा के दौरान कुछ भी हो सकता है. उदाहरण के तौर पर, अगर किसी का दांत टूट जाए तो उसके लिए 3-डी प्रिंटर से डेंचर छापा जा सकेगा. उसका भी टेस्ट यहां हो रहा है.
तस्वीर: Imago/Eibner Europa
एस्ट्रोनॉट्स के लिए गर्म स्नान
इन परीक्षणों से 19 देशों के 100 रिसर्चर जुड़े हुए हैं, जो ट्रायल कर व्यावहारिक कार्यप्रणाली को परख रहे हैं. इसमें से एक परीक्षण स्टीम शावर को टेस्ट करने का भी है. यह एक ऐसी डिवाइस है जिनमें बहुत कम द्रव का इस्तेमाल कर अंतरिक्षयात्री स्नान कर सकेंगे. अभी तक वे केवल शरीर को पोंछ कर काम चलाते हैं.
तस्वीर: Imago/Eibner Europa
केबल रेल
ग्लेशियर तक इन सारी चीजों और लोगों को ले जाने का काम कुछ ही मिनटों में केबल रेलवे की मदद से हो गया. मंगल तक जाने में तो एक साल लग जाएगा. और हां, असली यात्रा में ब्रेक के दौरान इस तरह हेलमेट निकाल कर रह पाना भी संभव नहीं होगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Röder
मंगल पर बर्फ नहीं
ग्लेशियरों पर इन परीक्षणों के लिए गर्मियों के महीने उपयुक्त समय हैं. जाड़े के दिनों में पूरा काउनेरटाल ग्लेशियर बर्फ से ढका होता है. ग्लेशियर पर बर्फ के बहाव के कारण कोई भी मार्स रोवर काम नहीं कर पाएगा.