36 साल के सफर के बाद अंतरिक्ष यान वॉयजर वन हमारे सौर मंडल से बाहर निकल गया है. पहली बार इंसान की बनाई कोई मशीन सौर मंडल से बाहर गहरे अंतरिक्ष में पहुंची है. वॉयजर करीब 18.51 अरब किलोमीटर दूर पहुंचकर भी सिग्नल भेज रहा है.
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अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक वॉयजर वन सूर्य के चारों ओर बने हॉट प्लाज्मा बबल से बाहर निकल गया है. हॉट प्लाज्मा बबल हमारे सौर मंडल और उसके काफी बाहर तक फैला हुआ गर्म गैसों का गोला सा है. इससे बाहर निकलने के बाद वॉयजर वन का हमारे सूर्य और सौर मंडल से कोई संबंध नहीं रह गया है.
वॉयजर वन अब अनंत की यात्रा पर है. यान इतना दूर जा चुका है कि वहां से पृथ्वी तक रेडियो सिग्नल आने में भी 17 घंटे लग रहे हैं. वॉयजर वन पांच सितंबर 1977 को हमारे सौर मंडल के दूर के ग्रहों की खोज के लिए भेजा गया था. वॉयजर ने बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण का अध्ययन 1989 में ही पूरा कर लिया था. यान की यात्रा इसके बाद भी जारी रही.
वॉयजर अभियान के मुखिया वैज्ञानिक प्रोफेसर एड स्टोन कहते हैं, "हम वहां पहुंच गए हैं, सौर सागर और तारों के बीच यात्रा कर रहे हैं. यह वाकई में एक मील का पत्थर है. जब 40 साल पहले हमने ये प्रोजेक्ट शुरू किया था, तो हमें उम्मीद थी कि यह यान एक दिन गहरे अंतरिक्ष में पहुंचेगा. यह विज्ञान और इतिहास की नजर से भी एक बड़ा मील का पत्थर है."
वॉयजर के सेंसर करीब साल भर से आस पास का माहौल बदलने के संकेत दे रहे थे लेकिन वैज्ञानिक इनसे कोई नतीजा नहीं निकाल सके. नासा के मुताबिक वास्तव में यान को सौर मंडल से बाहर निकले एक साल से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन वैज्ञानिक मानकों के आधार पर पहले इसकी पुष्टि नहीं हो पाई.
पुष्टि गुरुवार को ही हो सकी. यान के आस पास के चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव का पता चला. साल भर पहले यान ने जो सौर तूफान झेले और बीप की आवाज की, उसे नए डाटा से मिलाते ही उलझन खत्म हो गई.
वॉयजर प्लूटोनियम से चलने वाला यान है. प्लूटोनियम रिएक्टर से इसके 20 वॉट के ट्रांसमीटरों को ऊर्जा मिलती है. वॉयजर वन फिलहाल 45 किलोमीटर प्रति सेंकेड की रफ्तार से गतिमान है. सूर्य जैसे किसी और तारे तक पहुंचने में उसे अभी 40,000 साल और लगेंगे.
वॉयजर वन का एक भाई भी है, उसका नाम वॉयजर टू है. वह दूसरी दिशा में सूर्य से दूर जा रहा है. 20 अगस्त 1977 को छोड़ा गया वॉयजर टू फिलहाल धरती से 15.29 अरब किलोमीटर दूर है. हालांकि दोनों वॉयजरों की भी उम्र है. वैज्ञानिकों के मुताबिक 2025 में वॉयजरों पर लगे परमाणु संयंत्र काम करना बंद कर देंगे.
ब्लैक होल की दुनिया
ब्लैक होल यानि कृष्ण विवर के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है. घनघोर अंधेरे और उच्च द्रव्यमान वाले इन ब्लैक होल्स की तस्वीरें इस गैलेरी में.
तस्वीर: NASA
बहुत कुछ पर कुछ नहीं
ब्लैक होल वास्तव में कोई छेद नहीं है, यह तो मरे हुए तारों के अवशेष हैं. करोड़ों, अरबों सालों के गुजरने के बाद किसी तारे की जिंदगी खत्म होती है और ब्लैक होल का जन्म होता है.
तस्वीर: cc-by-sa 2.0/Ute Kraus
विशाल धमाका
यह तेज और चमकते सूरज या किसी दूसरे तारे के जीवन का आखिरी पल होता है और तब इसे सुपरनोवा कहा जाता है. तारे में हुआ विशाल धमाका उसे तबाह कर देता है और उसके पदार्थ अंतरिक्ष में फैल जाते हैं. इन पलों की चमक किसी गैलेक्सी जैसी होती है.
तस्वीर: NASA
सिमटा तारा
मरने वाले तारे में इतना आकर्षण होता है कि उसका सारा पदार्थ आपस में बहुत गहनता से सिमट जाता है और एक छोटे काले बॉल की आकृति ले लेता है. इसके बाद इसका कोई आयतन नहीं होता लेकिन घनत्व अनंत रहता है. यह घनत्व इतना ज्यादा है कि इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. सिर्फ सापेक्षता के सिद्धांत से ही इसकी व्याख्या हो सकती है.
तस्वीर: NASA and M. Weiss (Chandra X -ray Center)
ब्लैक होल का जन्म
यह ब्लैक होल इसके बाद ग्रह, चांद, सूरज समेत सभी अंतरिक्षीय पिंडों को अपनी ओर खींचता है. जितने ज्यादा पदार्थ इसके अंदर आते हैं इसका आकर्षण बढ़ता जाता है. यहां तक कि यह प्रकाश को भी सोख लेता है.
सभी तारे मरने के बाद ब्लैक होल नहीं बनते. पृथ्वी जितने छोटे तारे तो बस सफेद छोटे छोटे कण बन कर ही रह जाते हैं. इस मिल्की वे में दिख रहे बड़े तारे न्यूट्रॉन तारे हैं जो बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाले पिंड हैं.
तस्वीर: NASA and H. Richer (University of British Columbia)
विशालकाय दुनिया
अंतरिक्ष विज्ञानी ब्लैक होल को उनके आकार के आधार पर अलग करते हैं. छोटे ब्लैक होल स्टेलर ब्लैक होल कहे जाते हैं जबकि बड़े वालों को सुपरमैसिव ब्लैक होल कहा जाता है. इनका भार इतना ज्यादा होता है कि एक एक ब्लैक होल लाखों करोड़ों सूरज के बराबर हो जाए.
तस्वीर: NASA/CXC/MIT/F.K. Baganoff et al
छिपे रहते हैं
ब्लैक होल देखे नहीं जा सकते, इनका कोई आयतन नही होता और यह कोई पिंड नहीं होते. इनकी सिर्फ कल्पना की जाती है कि अंतरिक्ष में कोई जगह कैसी है. रहस्यमय ब्लैक होल को सिर्फ उसके आस पास चक्कर लगाते भंवर जैसी चीजों से पहचाना जाता है.
1972 में एक्स रे बाइनरी स्टार सिग्नस एक्स-1 के हिस्से के रूप मे सामने आया ब्लैक होल सबसे पहला था जिसकी पुष्टि हुई. शुरुआत में तो रिसर्चर इस पर एकमत ही नहीं थे कि यह कोई ब्लैक होल है या फिर बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाला कोई न्यूट्रॉन स्टार.
तस्वीर: NASA/CXC
पुष्ट हुई धारणा
सिग्नस एक्स-1 के बी स्टार की ब्लैक होल के रूप में पहचान हुई. पहले तो इसका द्रव्यमान न्यूट्रॉन स्टार के द्रव्यमान से ज्यादा निकला. दूसरे अंतरिक्ष में अचानक कोई चीज गायब हो जाती. यहां भौतिकी के रोजमर्रा के सिद्धांत लागू नहीं होते.
तस्वीर: NASA/CXC/M.Weiss
सबसे बड़ा ब्लैक होल
यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला के वैज्ञानिको ने हाल ही में अब तक का सबसे विशाल ब्लैक होल ढूंढ निकाला है. यह अपने मेजबान गैलेक्सी एडीसी 1277 का 14 फीसदी द्रव्यमान अपने अंदर लेता है.
तस्वीर: ESO/L. Calçada
अनसुलझे रहस्य
ब्लैक होल के पार देखना कभी खत्म नहीं होता. ये अंतरिक्ष विज्ञानियों को हमेशा नई पहेलियां देते रहते हैं.