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समाज

सौ साल में बिल्कुल नहीं बदली यह ट्रेन

समीरात्मज मिश्र
२७ अप्रैल २०१८

बीते सौ साल में दुनिया बहुत बदल चुकी है. लेकिन कुछ चीजें अपनी जगह वैसी ही बनी हुई हैं. इन्हीं में से एक है बुदेलखंड में एक छोटे से रूट पर चलने वाली ट्रेन.

Indien Kurzstreckenzug zwischen Konch & Ait in Uttar Pradesh
तस्वीर: DW/S. Misra

 भारत में अब बुलेट ट्रेन चलाने की तैयारी हो रही है और लंबी दूरी की तेज रफ़्तार ट्रेनें सालों से रेल पटरियों पर दौड़ रही हैं, लेकिन एक ट्रेन आज भी ऐसी है जो 13 किमी की दूरी करीब चालीस मिनट में तय करती है और इस रास्ते में पड़ने वाले दो स्टेशनों के बीच इसके सिवा कोई और ट्रेन नहीं चलती. यानी ये ट्रेन इन दो कस्बों के लोगों के लिए ‘लाइफ़ लाइन' का काम करती है.

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के जालौन जिले में कोंच और एट स्टेशनों के बीच 115 साल पहले चलने वाली शटल ट्रेन जिसे यहां अददा ट्रेन कहा जाता है, आज भी उसी स्थिति में और उसी तरीके से चलती है जैसे कि एक शताब्दी पहले. इस ट्रेन में पहले भी तीन डिब्बे थे और आज भी तीन ही डिब्बे हैं. ट्रेन का इंजन भारत में रेलवे के शुरुआती दौर की याद दिलाता है तो ट्रेन में बैठने वालों को इस बात का भी गम नहीं रहता कि वे ट्रेन को पकड़ने के लिए स्टेशन पर समय से पहुंच पाए हैं या नहीं.

दरअसल, ट्रेन खुद में जितनी दिलचस्प है, इस पर सफर करना उससे भी कहीं दिलचस्प है. इस पर बैठने वालों को कोई जल्दी नहीं रहती और ट्रेन के चालक और ड्राइवर को अपने यात्रियों का पूरा ख्याल रहता है. रेलवे ट्रैक के किनारे चल रहे यात्रियों के हाथ दिखाने भर से ड्राइवर ब्रेक लगाकर ट्रेन रोक देता है और फिर गार्ड के हरे सिगनल के बाद ट्रेन आगे बढ़ जाती है. इस तरह से ये करीब चालीस मिनट में इन दो स्टेशनों के बीच की 13 किलोमीटर की दूरी तय करती है.

ट्रेन का किराया महज पांच रुपये है और इस पर सवारी करने के लिए दूर-दराज से लोग आकर इसके चलने का इंतजार करते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि इन दो कस्बों के बीच कोई और पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं चलता.

कोंच स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहे स्थानीय निवासी पंकज सिंह बताते हैं, "दोनों कस्बों के बीच और कोई साधन नहीं है. सड़क है लेकिन कच्ची है. ऐसे में गरीब लोग या तो साइकिल से जाएं या फिर इस ट्रेन से. साइकिल से जाने में और ज्यादा समय लगता है, इसलिए ट्रेन का सफर आसान होता है. तमाम छात्र, व्यापारी और दूसरे लोग भी इसी ट्रेन से जाते हैं. तीन डिब्बों की ये ट्रेन कभी खाली नहीं जाती.”

एट जंक्शन पर रेलवे के एक अधिकारी बताते हैं कि दोनों स्टेशनों के बीच का किराया पांच रुपये है और हर फेरे में करीब सौ टिकट बिक जाते हैं. अददा ट्रेन दिन भर में दोनों स्टेशनों के बीच पांच चक्कर लगाती है. उनकी मानें तो ज्यादातर यात्री बिना टिकट ही इस ट्रेन पर यात्रा करते हैं.

तस्वीर: DW/S. Misra

स्थानीय पत्रकार दिनेश शाक्य बताते हैं कि अंग्रेजों ने साल 1902 में तीन डिब्बे वाली कोंच-एट शटल की शुरुआत माल ढोने के लिए की थी. उनके मुताबिक, "जालौन जिले का कोंच कस्बा कभी देश में कपास उत्पादन और बिक्री का बड़ा केंद्र होता था. एट कस्बे में झांसी को कानपुर से जोड़ने वाली रेल लाइन मौजूद थी. ऐसे में इन दो कस्बों को जोड़ने के लिए पहले एक डिब्बे वाली मालगाड़ी की और फिर बाद में तीन डिब्बे वाली इस शटल की शुरुआत हुई.”

कोंच रेलवे स्टेशन के एक अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि कोंच स्टेशन पर सिर्फ यही एक ट्रेन आती है और इस ट्रेन से देखा जाए तो कर्मचारियों का वेतन तक नहीं निकल पाता. फिर भी इसे चलाया जा रहा है. बताया जाता है कि ये देश में सबसे कम दूरी तक चलने वाली ट्रेन है.

जालौन के बीजेपी नेता शैलेंद्र पांडेय कहते हैं कि ट्रेन को कई बार बंद करने की कोशिश की गई लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के चलते ऐसा नहीं हो पाया. वह बताते हैं कि बंद करने के फैसले के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए और ट्रैक जाम कर दिया गया था. मजबूर होकर रेलवे प्रशासन को फैसला बदलना पड़ा.

अभी कुछ दिन पहले ही इस ट्रेन में आग लग गई. आग भले ही तेज थी लेकिन उसे बुझा दिया गया और ट्रेन का परिचालन फिर से शुरू हो गया.

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