1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

स्कूल नहीं खुले तो कामकाजी मांओं का करियर बिगड़ जाएगा

९ जून २०२०

तीन हजार लोगों की ग्लोबल टीम को संभालना उतना मुश्किल नहीं जितना कि चार बच्चों को, क्या सचमुच? एक सॉफ्टवेयर कंपनी में ऊंचे पद पर काम करने वाली कातरीन लेमन का तो यही मानना है, खासकर लॉकडाउन में.

Deutschland Corona-Pandemie | Eltern demonstrieren für Öffnung von Kitas und Schulen in Berlin
तस्वीर: Reuters/F. Bensch

कोरोना वायरस के चलते तालाबंदी में घर से दफ्तर संभाल रही कातरीन लेमन अब उब चुकी हैं. जर्मन बिजनेस सॉफ्टवेयर कंपनी, एसएपी की कस्टमर इनोवेशन एंड मेंटेनेंस की प्रमुख लेमन इन दिनों घर से काम कर रही हैं. घर में उनके साथ चार बच्चे भी हैं. वो कहती हैं, "मैं जोकर बन गई हूं. सारे अलग अलग चीजें खाते हैं और फिर शिकायत करते हैं, चाहे आप कुछ भी कर लो. मैंने कहा, ठीक है फिर अब लंच में कॉर्नफ्लेक्स मिलेगा."

दूसरे बड़े यूरोपीय देशों की तुलना में जर्मनी में कोरोना वायरस के कारण लोगों की मौत का आंकड़ा कम रहा. इसके साथ ही पूरी तरह से तालाबंदी भी नहीं हुई. जो कुछ बंद था वो अब धीरे धीरे खुलने लगा है. स्कूलों के खुलने की रफ्तार धीमी है और कामकाजी मां बाप उब चुके हैं. मंगलवार को दर्जनों ऐसे मां बाप बर्लिन में सड़कों पर अपने बच्चों के साथ प्रदर्शन करने निकले. सिटी हॉल के बाहर प्रदर्शन करने आए मां बाप स्थानीय प्रशासन से परिवारों की ज्यादा मदद करने की मांग कर रहे हैं. इन लोगों ने हाथ में तख्तियां ले रखी थीं जिन पर लिखा था, "ओपेन द स्कूल्स ऑर मम विल लूज हर कूल (स्कूलों को खोलिए नहीं तो मां अपना आपा खो देगी)."

तस्वीर: Reuters/F. Bensch

स्कूल खोलने का व्यापक समर्थन

संसदीय रिसर्चर और दो बच्चों की मां सबीने पोनाथ कहती हैं, "हम इस तरह से नहीं चल सकते. हमें राहत चाहिए." जर्मनी के स्कूल धीरे धीरे अप्रैल के आखिर में खुलने शुरू हुए. हालांकि छात्र ज्यादातर वक्त अब भी घर में ही बिता रहे हैं क्योंकि सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए क्लास को कई हिस्सों में बांट दिया गया है. बच्चों को कम ही वक्त के लिए स्कूल जाना होता है. डेकेयर सेंटरों में भी छोटे बच्चों को सीमित समय के लिए ही रखा जा रहा है.

पिछले हफ्ते डीएके हेल्थ इंश्योरेंस ग्रुप के एक सर्वे से पता चला कि 81 फीसदी मां बाप और 62 फीसदी बच्चे धीरे धीरे स्कूलों को खोलने का समर्थन कर रहे हैं. आधे से ज्यादा मां बाप का कहना है कि होम स्कूलिंग की वजह से वो पूरी तरह से थक चुके हैं. इडियालो में ब्रैंड मैनेजमेंट के प्रमुख मिषाएल स्टेंपिन का कहना है कि स्कूलों को खुल जाना चाहिए, "सिर्फ इसलिए नहीं कि मैं काम कर सकूं बल्कि बच्चों के लिए भी यह जरूरी है. उनकी दिनचर्या पूरी तरह बिगड़ चुकी है." स्टेंपिन हर रोज दो घंटे होम स्कूलिंग में बिताते हैं.

इंस्टीट्यूट ऑफ इम्प्लॉयमेंट रिसर्च का अनुमान है अप्रैल के आखिर तक करीब 5.6 करोड़ काम के दिनों का नुकसान केवल स्कूलों और नर्सरी के बंद होने की वजह से हुआ.

तस्वीर: Reuters/F. Bensch

मां का करियर जोखिम में

सर्वे के मुताबिक होम स्कूलिंग और अतिरिक्त घरेलू काम का सबसे ज्यादा खामियाजा महिलाओं को उठाना पड़ रहा है. इससे विविधता बढ़ाने और वेतन में लिंग आधारित भेदभाव घटाने की कोशिशों को नुकसान हुआ है. संकट के दौर में महिलाओं को काम से मिलने वाला संतोष पुरुषों के मुकाबले 5 अंक नीचे गिर गया है. बर्लिन सोशल साइंस सेंटर (डब्ल्यूजेडबी) के सर्वे के मुताबिक इस बात की बहुत आशंका है कि या तो उन्हें अपने काम के घंटे कम करने होंगे या फिर काम पूरी तरह से बंद कर देना होगा. 

डब्ल्यूजेडबी की सोशल साइंस प्रोफेसर लेना हिप्प तीन छोटे बच्चों को संभालते हुए अपना काम करने की कोशिश कर रही हैं. उनका कहना है, "संकट के पहले भी अकसर महिलाएं ही बच्चों के लिए अपना करियर छोड़ती रही हैं." एसएपी की सह मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेनिफर मॉर्गन दो बच्चों की मां हैं. उन्होंने अप्रैल में इस्तीफा दे दिया. वह किसी जर्मन ब्लूचिप कंपनी की पहली महिला प्रमुख थीं लेकिन छह महीने के बाद ही उन्होंने नौकरी छोड़ कर अपनी जिम्मेदारियां क्रिश्चियान क्लाइन को सौंप दी. एसएपी ने उनके इस्तीफे के पीछे कोई कारण नहीं बताया. चेयरमैन हासो प्लाटनर का सुझाव था कि संकट के दौर में एक लीडर की जरूरत थी. हालांकि क्लाइन ने बोर्ड की मीटिंग में अपने बच्चों का जिक्र किया था.

तस्वीर: Reuters/F. Bensch

एसएपी, लैंगिक अनुपात पर इस संकट के असर का आकलन कर रही है. कंपनी का कहना है कि मार्च और अप्रैल के महीने में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की तरक्की कम हुई है. जर्मनी में एसएपी की मानव संसाधन प्रमुख कावा यूनोसी का कहना है, "उत्पादकता तो रुकी है लेकिन लोग कोरोना संकट से पहले के दौर की तुलना में ज्यादा कीमत चुका रहे हैं और वो यह कब तक कर पाएंगे यह इस बात पर निर्भर करेगा कि स्कूल कब खुलते हैं और मां बाप को कितनी राहत मिलती है." 

जर्मन शहर हाइडलबर्ग में घर से काम कर रही कातरीना लेमन इस पूरे संकट में एक सकारात्मक चीज देख रही हैं. इस संकट ने लोगों को करियर और परिवार एक साथ संभालने की चुनौतियों के बारे में ईमानदारी से फैसला करने का मौका दिया है. लेमन ने कहा, "अगर पीछे से कोई बच्चा रो रहा है या फिर कुत्ता दौड़ रहा है तो कोई बात नहीं. अब मैं अपने बच्चों के बारे में अपनी टीम से बहुत ज्यादा बात कर रही हूं ताकि वो यह देख सकें कि क्या बच्चे और कंपनी की जिम्मेदारी साथ साथ चल सकती है."

एनआर/एमजे (रॉयटर्स)

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें