जल्द ही ब्रिटेन में आम चुनाव होने की संभावना प्रबल होने के चलते जॉनसन लगातार अलग अलग मदों पर सार्वजनिक खर्च को बढ़ाने की बातें कर रहे हैं.
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ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन शुक्रवार को स्कॉटलैंड पहुंचे. उन्होंने वहां घोषणा की कि कृषि क्षेत्र में फंडिंग को बढ़ाया जाएगा. 31 अक्टूबर की अंतिम समयसीमा तक ब्रिटेन को यूरोपीय संघ, ईयू से बाहर निकालने की तारीख में अब दो महीने से भी कम बचे हैं. इधर ईयू के साथ उनके किसी समझौते पर सहमति नहीं बन रही है तो दूसरी ओर समझौते को बार बार ब्रिटिश संसद में अस्वीकार करने वाली लेबर पार्टी के सामने उन्होंने देश में मध्यावधि आम चुनाव कराने की चुनौती पेश कर दी है. जॉनसन का तर्क है कि जनता को एक बार फिर निर्णय लेने का मौका मिलना चाहिए कि वे ब्रेक्जिट को लेकर किसकी योजना का समर्थन करते हैं.
ब्रिटिश संसद में मुख्य विपक्षी दल लेबर पार्टी अब तक ईयू के साथ समझौते का समर्थन करने से इनकार करती आई है. उनका कहना है कि उन्हें पहले इस बात का भरोसा चाहिए कि देश बिना किसी एक्जिट-डील के ईयू से बार नहीं निकलेगा. जॉनसन कहते आए हैं कि डील हो या न हो, समयसीमा पर ब्रिटेन बाहर निकलेगा ही.
जुलाई में देश की कमान संभालने के बाद से जॉनसन ने परोक्ष रूप से चुनाव प्रचार अभियान चला रखा है. वे हमेशा पुलिस, शिक्षा या घरेलू नीतियों से जुड़े दूसरे मुद्दों पर अपने विचार रखते रहते हैं. ब्रिटेन के वित्त मंत्री ने कहा है कि जॉनसन द्वारा की गई सरकारी खर्च में बढ़ोत्तरी की योजना के साथ ही बीते एक दशक से जारी खर्च में कटौती का दौर खत्म होगा. स्कॉटलैंड के एबरडीनशर में जॉनसन ने स्कॉटिश किसानों के लिए फंडिंग राशि में 21.1 करोड़ पाउंड बढ़ाने की घोषणा की. यह उस योजना का हिस्सा है जिसके जरिए ब्रिटेन के अलग अलग हिस्सों में कृषि क्षेत्र में अलग अलग मात्रा में होने वाले सरकारी खर्च को थोड़ा संतुलित करने की कोशिश हो रही है.
आगामी सोमवार को जॉनसन एक बार फिर ब्रिटिश संसद के सामने चुनाव कराए जाने का प्रस्ताव रखेंगे. अब तक साफ नहीं हो सका है कि क्या इस बार विपक्षी लेबर दल उनके इस प्रस्ताव का समर्थन करेंगे. जॉनसन 15 अक्टूबर को देश में आम चुनाव करवाना चाहते हैं.
कभी यूके, कभी ग्रेट ब्रिटेन तो कभी इंग्लैंड, आखिर ये चक्कर क्या है. चलिए इस समझते हैं ताकि आगे ये कंफ्यूजन न रहे.
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यूनाइटेड किंगडम (यूके)
असल में इसका पूरा नाम यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड नॉदर्न आयरलैंड है. यूके में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, उत्तरी आयरलैंड और वेल्स आते हैं. इन चारों के समूह को ही यूके कहा जाता है.
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ग्रेट ब्रिटेन
इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स के संघ को ग्रेट ब्रिटेन कहा जाता है. तीनों अलग अलग प्रांत हैं. तीनों प्रांतों की अपनी संसद है लेकिन विदेश नीति और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर फैसला ग्रेट ब्रिटेन की संघीय संसद करती है. तस्वीर में बायीं तरफ इंग्लैंड का झंडा है, दायीं तरफ स्कॉटलैंड का. बीच में ग्रेट ब्रिटेन का झंडा है.
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ब्रिटेन
यह नाम रोमन काल में इस्तेमाल हुए शब्द ब्रिटानिया से आया है. ब्रिटेन इंग्लैंड और वेल्स को मिलाकर बनता है. हालांकि अब सिर्फ ब्रिटेन शब्द का इस्तेमाल कम होता है. यूरो 2016 में इंग्लैंड बनाम वेल्स का मैच.
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इंग्लैंड
इंग्लैंड एक देश है. जिसकी राजधानी लंदन है. स्काटलैंड और वेल्स की तरह इंग्लैंड की अपनी फुटबॉल और क्रिकेट टीम हैं. इन टीमों में दूसरे प्रांतों के खिलाड़ी शामिल नहीं होते हैं.
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राजधानियां
उत्तरी आयरलैंड की राजधानी बेलफास्ट है. स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबरा है और वेल्स की राजधानी कार्डिफ है.
भाषा
अंग्रेजी भाषा होने के बावजूद इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, उत्तरी आयरलैंड और वेल्स में लहजे का फर्क है. आम तौर पर मजाक में लोग एक दूसरे इलाके के लहजे का मजाक भी उड़ाते हैं.
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खासियत
स्कॉटलैंड के लोगों को अपनी विश्वप्रसिद्ध स्कॉच पर गर्व है. बैगपाइपर का संगीत स्कॉटलैंड की पहचान है. वहीं आयरलैंड के लोग आयरिश व्हिस्की और बियर का गुणगान करते हैं. इंग्लैंड मछली और चिप्स के लिए मशहूर है.
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मतभेद
राजस्व के आवंटन के अलावा ग्रेट ब्रिटेन (इंग्लैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड) के प्रांतों के बीच विदेश नीति को लेकर भी मतभेद रहते हैं. यूरोपीय संघ की सदस्यता को लेकर मतभेद सामने भी आ चुके हैं. अगर ग्रेट ब्रिटेन यूरोपीय संघ से निकला तो स्कॉटलैंड स्वतंत्र देश बनने का एलान कर चुका है.
तस्वीर: Andy Buchanan/AFP/Getty Images
ईयू से मतभेद
यूरोपीय संघ के आलोचकों का कहना है कि ईयू की सदस्यता से ब्रिटेन को आर्थिक और सामाजिक क्षति पहुंची है. तटीय इलाकों में रहने वाले मछुआरे करीब करीब बर्बाद हो चुके हैं. बड़ी संख्या में पोलैंड से आए प्रवासियों का मुद्दा भी समय समय पर उठता रहा है.
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राजनैतिक खींचतान
यूरोपीय संघ की नीतियां सदस्य देशों को लागू करनी पड़ती हैं. चाहे वह बजट का वित्तीय घाटा हो, शरणार्थियों का मुद्दा हो या फिर मार्केट रेग्युलेशन. ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन इसे राजनीतिक हस्तक्षेप करार दे चुके हैं.