स्टेडियम में खेल देखने के अरमान में गई ईरानी महिला की जान
१० सितम्बर २०१९
अपनी पसंदीदा टीम का फुटबॉल मैच स्टेडियम में जाकर देखने का अरमान पूरा करने की कोशिश में एक महिला ने अपनी जान गंवा दी. पाबंदियां और भेदभाव कब तक लेती रहेंगे जानें.
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इस महिला ने ईरान में महिलाओं को स्टेडियम में जाकर खेल देखने पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ दुनिया भर का ध्यान खींचा है. जीते जी वह केवल अपनी पसंदीदा टीम का मैच स्टेडियम में देखना चाहती थी. उसने ऐसा करने की कोशिश की तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया. इस जुर्म में उस पर पुलिस का अपमान करने का आरोप सिद्ध कर छह महीने की जेल की सजा सुनाई गई. एक हफ्ते पहले ही सजा के विरोध में अदालत के बाहर ही उस महिला ने खुद पर पेट्रोल छिड़क आत्मदाह कर लिया. अस्पताल ले जा कर उसका इलाज कराया गया लेकिन आज सुबह महिला की मौत की पक्की खबर आ गई.
दुनिया के तमाम युवा लोगों की तरह वह महिला भी अपनी फेवरेट टीम एस्तेघलाल तेहरान का खेल देखने की इच्छा रखने के कारण अब इस दुनिया में नहीं है. खेल ईरान की राजधानी के असादी स्टेडियम में आयोजित हुआ था. अब मरने के बाद उसकी कहानी सोशल मीडिया खूब शेयर हो रही है. हर तरह के लोग न्याय व्यवस्था से लेकर पुलिस की कार्रवाई तक की निंदा कर रहे हैं और ऐसी व्यवस्था को एक युवा की मौत के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. जिस क्लब का मैच वह देखना चाहती थी, उसने भी प्रतिक्रिया दी है. एस्तेघलाल तेहरान ने अपने पत्र में लिखा है कि अपना छोटा सा अरमान दिल में लेकर ही उसे कब्र में जाना पड़ा.
ईरान के मशहूर एक्टर आमिर जदीदी ने लिखा कि देश खुद अपना मखौल उड़वा रहा है.
ईरान में महिलाओं पर स्टेडियम में जाने पर लगी पाबंदी को लेकर पिछले चार दशकों में कितने ही विवाद हुए हैं. अब तो ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी भी इस प्रतिबंध को हटाने के पक्ष में लगते हैं. लेकिन ईरान में बेहद ताकतवर धर्मगुरुओं की इच्छा के विरुद्ध जाने की हिम्मत वे भी नहीं दिखा पाए हैं.
ईरान में कजार वंश के पहले शासक नासेर-अल-दिन शाह के शासन काल में कला, संगीत और नृत्य को खूब बढ़ावा मिला. उस वक्त महिलाएं भी सार्वजनिक आयोजनों में अपनी कला का प्रदर्शन करती थीं जिसकी आज के ईरान में कल्पना भी मुश्किल है.
तस्वीर: Gemeinfrei
शिराज के कलाकार
नासेर-अल-दिन शाह के शासन काल (1848-1896) में ना केवल पश्चिमी शिक्षा, विज्ञान बल्कि कला, संगीत और नृत्य को भी बढ़ावा मिला. शिराज शहर की महिलाएं सितार जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों के अलावा नृत्य में भी कुशल थीं.
तस्वीर: Gemeinfrei
'तार' यंत्र
ईरान के तार नामक यंत्र का आकार आज के वायलिन जैसा होता था और उसकी लंबी नली होती थी. दो तरह के तारों से जड़े इस इंस्ट्रुमेंट से मधुर आवाज निकलती थी. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रचलित सितार की ही तरह यह भी मध्ययुगीन काल से है.
तस्वीर: Gemeinfrei
प्रिंस के लिए डांस
म्युजिक इंस्ट्रुमेंट के अलावा कजार शाह के काल में डांस का भी खूब बोलबाला था. इस दौरान राजकुमार मोहम्मद हसन मिर्जा के सामने डांस पेश करने वाली नेगार खानम काफी प्रसिद्ध हुईं.
तस्वीर: Gemeinfrei
एक से बढ़ कर एक डांसर
यह डांसर फाती जंगी इस काल की सबसे मशहूर नर्तकियों में से एक थीं. 1979 में हुई ईरानी क्रांति के बाद से ही ईरान में चलने वाले कई संगीत अकादमियां बंद होने लगीं, खासकर महिलाओं के लिए उनके दरवाजे पहले बंद हो गए.
तस्वीर: Gemeinfrei
जगह बदलते कलाकार
सड़कों पर कई तरह के डांस पेश करने वाली कलाकारों का समूह एक जगह से दूसरे जगह जाने लगा. कई संगीतकार, डांसर रास्ते में भी प्रदर्शन करते चलते. कई सलमास नाम की जगह पहुंच गए.
तस्वीर: Gemeinfrei
कई तरह के वाद्य
किसी कला समूह में शामिल महिलाएं अलग अलग तरह के वादय यंत्र बजा सकती थीं. इस तस्वीर में उस समय प्रचलित कई यंत्र देखे जा सकते हैं.
तस्वीर: womenofmusic.ir
लड़का-लड़की साथ
ऐसे कलाकारों की मंडली में महिलाएं और पुरुष दोनों होते थे. वे साथ प्रदर्शन करते और मिल कर ही संगीत और नृत्य की नई प्रस्तुतियां तैयार करते.
तस्वीर: Gemeinfrei
संगीत की शिक्षा का केंद्र
सन 1862 में यूरोपीय देशों की तर्ज पर शाह ने मिलिट्री बैंड गठित करने का आदेश दिया. एक फ्रेंच संगीतकार अल्फ्रेड लेमायर नियुक्त हुआ. यह प्रयास इतना सफल रहा कि 19वीं सदी के अंत कर तेहरान का संगीत स्कूल पश्चिमी वाद्य यंत्र और संगीत की शिक्षा का केंद्र बन गया.
तस्वीर: Antoin Sevruguin
तार के अलावा भी यंत्र
सितार जैसे यंत्र तो थे ही. इसके अलावा परकशन इंस्ट्रुमेंट जैसे डफली भी बजाई जाती थी.
तस्वीर: Gemeinfrei
कला समूहों की भरमार
कजार शाह के शासन के दौरान बहुत सारे कला और संगीत समूह बने. इनका खूब विकास हुआ और ये दूर दूर पहुंचे.
तस्वीर: Gemeinfrei
अलग था वो वक्त
उस काल में महिलाएं आजादी से संगीत से जुड़ी होतीं. गातीं, बजातीं और नृत्य करतीं. यह सब कुछ सार्वजनिक रूप से होता था. जिसकी आज के ईरान में कल्पना नहीं की जा सकती.
तस्वीर: honardastan
संगीत का कद्रदान
19वीं सदी के शाह कजर को संगीत का कद्रदान माना जाता था. उन्होंने कई महान संगीतकारों को शाही शरण में रखा, जिन्होंने प्राचीन पर्शिया की संगीत परंपराओं को जिंदा किया और ईरानी संगीत रदीफ की नींव रखी.
तस्वीर: Gemeinfrei
पहनने की आजादी
इसी तस्वीर में दो लड़कियां पारंपरिक तो दो पश्चिमी वेशभूषा में दिख रही हैं. उस समय महिलाओं के पास अपनी पसंद के कपड़े पहनने की कहीं ज्यादा आजादी का पता चलता है.
तस्वीर: Gemeinfrei
सब बदल गया
अब तो ईरान में सड़कों पर क्या टेलीविजन तक पर कम दिखती हैं. टीवी पर भी इस्लामी नियमों का पालन करते हुए ही संगीत पेश किया जा सकता है. ईरानी दंड संहिता के अनुसार 1983 में सिर पर हिजाब ना पहनने पर 74 कोड़ों की सजा थी. 1996 में इसे बदल कर जेल और जुर्माना कर दिया गया.