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स्नोडेन की जान को खतरा

Mark Hallam२७ जनवरी २०१४

अमेरिकी खुफिया एजेंसी की कारगुजारियों को दुनिया के सामने लाने वाले पूर्व एजेंट एडवर्ड स्नोडेन का दावा है कि उनकी जिंदगी को भारी खतरा है. उनके मुताबिक जानाकारी लीक करने की वजह से अमेरिका उन्हें मरवाना चाहता है.

Edward Snowden
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

अमेरिकी खुफिया एजेंसी एनएसए के लिए काम कर चुके स्नोडेन को रूस में अस्थायी शरण मिली हुई है. मॉस्को के एक होटल के कमरे में उन्होंने जर्मनी के एआरडी चैनल से लगभग छह घंटे तक बातचीत की. एआरडी ने इस इंटरव्यू से करीब 40 मिनट का प्रसारण किया है. रूस में शरण मिलने के बाद से यह अब तक का उनका पहला टीवी इंटरव्यू है.

स्नोडेन का कहना है कि उनकी जिंदगी को भारी खतरा है लेकिन इसके बावजूद वह आराम से सोते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्होंने जो किया, ठीक किया, "मैं अभी भी जिंदा हूं और मेरी नींद नहीं बिगड़ती क्योंकि जो किया, वही सही था." स्नोडेन ने इस खतरे के बारे में कहा, "ये लोग सरकारी अधिकारी हैं, जिन्होंने मुझे कहा कि अगर मैं सुपर मार्केट में निकलूंगा, तो वे मेरी खोपड़ी में गोली मारने या मुझे जहर देने में कोई एतराज नहीं करेंगे."

अमेरिका के पूर्व खुफिया एजेंट ने कहा, "इस बारे में तो कोई शक ही नहीं है कि एनएसए ने औद्योगिक स्तर पर जासूसी की. उन्होंने हाल में छपे उस आर्टिकल का भी जिक्र किया जिसमें एक अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों के हवाले से कहा गया था कि वे स्नोडेन को मरा हुआ देखना चाहते थे."

उन्होंने बताया, "उस वक्त मेरा इरादा पक्का हो गया, जब मैंने देखा कि किस तरह राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी के प्रमुख जेम्स क्लैपर शपथ लेने के बाद भी अमेरिकी संसद में झूठ बोल रहे हैं. उस खुफिया तंत्र के लिए बचाव का कोई रास्ता नहीं, जो समझता है कि वह जनता और उसके प्रतिनिधियों से झूठ बोल सकता है. इन प्रतिनिधियों को तो उन पर विश्वास करना ही होता है, ताकि इनकी कार्रवाइयों को नियंत्रित किया जा सके."

क्या सिर्फ मैर्केल की जासूसी?

स्नोडेन ने कहा कि उनके पास अब और विवादास्पद जानकारी नहीं है. पिछले साल उन्हीं की मुहैया की गई जानकारी से एनएसए का भंडाफोड़ हुआ था. उन्होंने कहा उनके पास ऐसी जितनी भी सामग्री थी, उन्होंने चुनिंदा पत्रकारों को सौंप दी. गहरे रंग के सूट और ढीली ढाली सफेद कमीज में बैठे स्नोडेन ने कहा कि उन्होंने इस बात का फैसला भी पत्रकारों पर छोड़ दिया कि इसमें से कौन सी जानकारी लोगों तक पहुंचनी जरूरी है और किन्हें छपनी चाहिए.

एनएसए ने मैर्केल की जासूसी की थीतस्वीर: Reuters

स्नोडेन से जब पूछा गया कि क्या सिर्फ जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के ही फोन की जासूसी हुई या इससे पहले की सरकारों के साथ भी ऐसा हुआ, उन्होंने इस "मुश्किल सवाल" के बारे में कहा, "मैं इतना कह सकता हूं कि हमें इस बात की जानकारी है कि एनएसए ने अंगेला मैर्केल की जासूसी की. मैं कहना चाहता हूं कि जो कोई भी जर्मन सरकार की निगरानी कर रहा था, वह सिर्फ मैर्केल पर नजर रख रहा था और उनके सलाहकारों या दूसरे सरकारी अधिकारियों या मंत्रियों पर नहीं रख रहा था. या फिर औद्योगिक प्रमुखों और मैं तो कहता हूं कि स्थानीय सरकारी अधिकारियों पर नहीं नजर रखी जा रही हो." उन्होंने एनएसए के बारे में जानकारी हासिल करने में बीएनडी के सामर्थ्य का भी जिक्र किया.

किसे धोखा दिया?

स्नोडेन ने दावा किया कि जासूसी का भंडाभोड़ करने के मामले में वह अकेले काम कर रहे थे. उन्होंने स्पष्ट किया कि उसके लिए उन्होंने सरकारों के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया. खास कर रूस के साथ ताकि उन्हें शरण मिल जाए, जैसा कि अमेरिका ने उन पर आरोप लगाया है.

उन्होंने कहा, "अगर मैं देशद्रोही हूं, तो मैंने किसे धोखा दिया? मैंने सारी जानकारी अमेरिकी जनता और अमेरिकी पत्रकारों के हवाले कर दी." स्नोडेन से जब पूछा गया कि उन्होंने यूरोप में और कहां कहां शरण मांगी, उन्होंने कहा उन्हें अब पूरी लिस्ट तो याद नहीं लेकिन इन देशों में जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन थे जिन्होंने इनकार कर दिया.

अमेरिका लौटने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अगर उन पर देशद्रोह कानून के आधार पर मुकदमा चलाया जाएगा तो वह नहीं लौटना चाहेंगे. क्योंकि वह न्यायाधीशों को यह विश्वास नहीं दिला सकेंगे कि जो उन्होंने किया वह उन सबके हित में था.

उन्होंने काफी देर सोचने के बाद कहा, "यह लंबी चौड़ी बात है. राष्ट्रपति कहें कि आओ और संगीत का आनंद लो, जबकि मुझे पता है कि यह संगीत मुझ पर चलाया जाने वाला मुकदमा होगा."

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस महीने एनएसए की कार्यप्रणाली में कुछ बदलाव करने की बात कही है. स्नोडेन के एनएसए के खुलासों के बाद जर्मनी और अमेरिका के रिश्तों में काफी कड़वाहट आई है. इसके बाद दोनों के बीच रिश्तों को सुधारने के लिए "नो स्पाई" समझौते की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन इस दिशा में अब तक कुछ हो नहीं पाया है.

रिपोर्ट: मार्क हल्लम/एसएफ, रॉयटर्स

संपादन: ए जमाल

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