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स्पेन में आज वोटिंग, लेकिन उत्साह गायब

१९ नवम्बर २०११

स्पेन में आज संसदीय चुनाव हैं. चुनाव यानी बदलाव. सरकार बदले न बदले, कुछ तो बदलता ही है. लेकिन स्पेन के लोग मानकर चल रहे हैं कि सरकार बदले न बदले, उनकी जिंदगियां नहीं बदलेंगी.

तस्वीर: dapd

आर्थिक संकट से जूझ रहे स्पेन में विपक्षी नेता मारियानो राखोय की दक्षिणपंथी पीपल्स पार्टी की जीत लगभग तय मानी जा रही है. और अहम सवाल यह है कि मारियानो राखोय वित्तीय संकट को हल करने के लिए किस तरह के कदम उठा सकते हैं. लेकिन इन सवालों ने देश का उत्साह खत्म कर दिया है. चुनाव के दिन से पहले की शाम, शनिवार को कहीं भी वोटिंग का उत्साह नजर नहीं आ रहा था.

तस्वीर: dapd

क्या होगा जनता का

बढ़ती बेरोजगारी, सार्वजनिक खर्चों में कटौती और यह डर कि स्पेन यूरो जोन का अगला ऐसा देश हो सकता है जिसे राहत पैकेज की जरूरत होगी. कर्ज में डूबे देश के लोगों के उत्साह को इन बातों ने तोड़कर रख दिया है. चुनाव प्रचार के दौरान भी तो यही बातें बार बार सुनाई देती रहीं.

शनिवार की सुबह मैड्रिड में एक जगह लंबी लाइन नजर आई. यह लाइन वोटिंग की तैयारी में नहीं बल्कि राष्ट्रीय क्रिसमस लॉटरी अल गोर्डो के टिकट की लाइन थी. जो लोग चुनावों को लेकर उत्साहित नहीं हैं वे भी इस लाइन का हिस्सा हैं, इस उम्मीद में कि शायद एक लॉटरी उन्हें रातोंरात करोड़पति बना दे. 42 साल की गृहिणी एना मारिया गोमेज कहती हैं, "बस हम देखना चाहते हैं कि जीतते हैं या नहीं. क्योंकि हमारी जिंदगियां इसी तरीके से बदल सकती हैं. हर कोई निराशावादी हो गया है. कोई काम नहीं है. कोई उम्मीद नहीं है."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

मैड्रिड के मुख्य मैदान पुएर्ता डेल सोल पर 82 साल के अंपारो गार्सिया खड़े हैं. वह कहते हैं, "मैं तो उम्मीद करता हूं कि हालात सुधर जाएं. मेरे दो पोते हैं जिनके पास काम नहीं है. उनमें से एक तो तीन बच्चों का बाप है. नौकरियां बहुत जरूरी हैं, खासतौर पर उन लोगों के लिए जिनके परिवार हैं." बुजुर्गों की अपनी भी शिकायतें हैं. मसलन मौजूदा सरकार ने उनकी पेंशन फ्रीज कर दी है.

आसान नहीं पीपल्स पार्टी के लिए

हाल ही में जो चुनाव पूर्व मत सर्वेक्षण हुए हैं उनमें तो पीपल्स पार्टी को सोशलिस्ट पार्टी पर तगड़ी बढ़त मिलती दिख रही है. इसकी बड़ी वजह यह है कि देश की आर्थिक हालत सोशलिस्ट पार्टी की सरकार के दौरान ही खस्ता हुई है. होजे लुइस रोड्रिग्ज जपाटेरो की लोकप्रियता एकदम खत्म हो चुकी है. इसलिए उन्होंने तो चुनाव न लड़ने का ही फैसला किया. उनके उत्तराधिकारी अल्फ्रेड पेरेज रुबालकाबा ने भी हार लगभग मान ही ली है. पिछले हफ्तों के दौरान उन्होंने चुनाव प्रचार में सिर्फ इसी बात पर जोर रखा कि जरूरत से ज्यादा ताकतवर दक्षिणपंथी सरकार के क्या क्या खतरे हैं. यानी वह लोगों से बस यही कह रहे हैं कि पीपल्स पार्टी को इतनी सीटें न जिता दें कि वे जरूरत से ज्यादा ताकतवर हो जाएं.

तस्वीर: picture alliance/EFE

लेकिन पीपल्स पार्टी भी जीतने के बाद कोई बहुत अच्छे दिन नहीं देखने वाली है. अगर उसकी सरकार बनती है तो उसे चालाना राहोय के लिए बेहद मुश्किल काम साबित होगा. उन्हें न सिर्फ अपनी जनता को आर्थिक मुश्किलों से निकालना है, बल्कि वित्तीय बाजारों को भी खुश करना है.

रिपोर्टः रॉयटर्स/वी कुमार

संपादनः एन रंजन

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