लाहौर के व्यस्त माल रोड पर रहने वाले राफे आलम के घर में चौबीसों घंटे तीन एयर प्यूरीफायर चलते रहते हैं. घर की खिड़कियां बंद रहती हैं और दरवाजों के खांचों में भी उन्होंने तौलिए फंसा रखे हैं ताकि बाहर की हवा अंदर ना आ पाए.
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आलम एक पर्यावरण कार्यकर्ता हैं. वे अपने शहर की आबोहवा को लेकर बहुत चिंतित हैं. वे कहते हैं कि जिस दिन लाहौर में बहुत ज्यादा स्मॉग होता है, उस दिन वह अपनी बेटी को स्कूल नहीं भेजते, "मैं नहीं चाहता कि हमेशा हमेशा के लिए उसके फेफड़ों को नुकसान हो जाए."
पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े शहर लाहौर का स्मॉग से दम घुट रहा है और इसकी वजह है ईंट के भट्टों और स्टील मिलों से उठता हुआ धुआं, पराली और कूड़े जलाना और सड़कों पर वाहनों की बढ़ती तादाद. शहर के लोग कहते हैं कि नई सड़कें और घर बनाने के लिए हाल के सालों में लाहौर में अंधाधुंध पेड़ काटे गए हैं.
शहर में रहने वाले 1.1 करोड़ लोगों में से ज्यादातर को सिर दर्द, आंखों और गले में जलन की शिकायत है क्योंकि इस बार सर्दियों में कुछ दिन तो ऐसे थे जब लाहौर में कानूनी सीमा से पांच गुना ज्यादा वायु प्रदूषण था. यह बात एक ग्लोबल एयर क्वॉलिटी इंडेक्स के सर्वे में सामने आई है जिसमें लोगों ने एक ऐप के जरिए हिस्सा लिया.
जब प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन की बात होती है बड़े और विकसित देश खूब हो हल्ला मचाते हैं, लेकिन यही देश दुनिया मे सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं.
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10. सऊदी अरब
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9. कनाडा
1.71%
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8. ईरान
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7. दक्षिण कोरिया
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6. जर्मनी
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5. जापान
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4. रूस
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3. भारत
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2. अमेरिका
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1. चीन
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आलम कहते हैं कि अब सरकार को प्रदूषण के लिहाज से सबसे बुरे दिनों पर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी का एलान कर देना चाहिए. ये ऐसे दिन होते हैं जब हवा में बहुत ज्यादा धूल और प्रदूषक तत्व होते हैं, जिनसे अस्थमा, फेफड़ों में दिक्कत, श्वसन इंफेक्शन और हृदय संबंधी समस्याएं होती हैं.
वह कहते हैं, "लाहौर में पूरे साल वायु प्रदूषण की स्थिति बहुत खराब रहती है लेकिन सर्दियों में चूंकि गर्म हवा ऊपर नहीं जा पाती तो प्रदूषण फैलाने वाले तत्व नीचे ही रह जाते हैं." लाहौर की पहचान कभी बागों के शहर के तौर पर होती थी लेकिन अब यह दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल है. उसकी सड़कों पर दौड़ती बेशुमार गाड़ियां शहर की सांस फुला रही है. इस प्रदूषण से जलवायु परिवर्तन को भी बढ़ावा मिल रहा है.
प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार ने लाहौर में हवा की मॉनिटरिंग व्यवस्था को बहाल किया है. जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री के सलाहकार मलिक अमीन असलम कहते हैं कि पिछली सरकार ने दो साल पहले इस मॉनिटरिंग को रोक दिया. वह कहते हैं कि फंडिंग और कर्मचारियों की कमी की वजह से पंजाब में एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग स्टेशन बंद रहे.
दुनिया की आधी आबादी पानी की किल्लत झेल रही है. जलवायु परिवर्तन और तेजी से बढ़ती आबादी को देखते हुए आने वाले सालों में समस्या और विकट हो सकती है. लेकिन सबसे ज्यादा पानी की किल्लत से जूझने वाले देश कौन से हैं, जानिए.
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नाइजर
अफ्रीकी देश नाइजर की आबादी लगभग दो करोड़ है जिसमें से आधे लोगों को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं है. वहां हर 10 लोगों में से सिर्फ एक व्यक्ति के पास शौचालय की ठीक ठाक सुविधा है. नाइजर में दुनिया की सबसे ऊंची प्रजनन दर है जहां प्रति महिला सात बच्चों का औसत है. वहां हर साल डायरिया की वजह से 12 हजार से ज्यादा बच्चे मारे जाते हैं.
तस्वीर: Fatoumata Diabate
पाकिस्तान
पाकिस्तान की दस प्रतिशत आबादी के पास पीने का पर्याप्त साफ पानी नहीं है. देश की आबादी 2.4 प्रतिशत सालाना की रफ्तार से बढ़ रही है. प्रति व्यक्ति पानी की मात्रा वहां दशकों से लगातार घट रही है. 1947 में बंटवारे के वक्त पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति पांच हजार क्यूबिक मीटर पानी था जो अब घट कर एक हजार क्यूबिक मीटर रह गया है.
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सोमालिया
सोमालिया में पानी के मौजूदा संकट की सबसे बड़ी वजह वहां सालों से पड़ रहा सूखा है. इससे खेती और खाद्य उत्पादन पर सीधा असर पड़ा है. देश की सिर्फ 45 प्रतिशत आबादी की पीने के पानी के सुरक्षित स्रोतों तक पहुंच है. इससे वहां गंदे पानी से होने वाली बीमारियों खास कर हैजा फैलने का खतरा पैदा हो गया है.
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सूडान
सूडान की आबादी 4.3 करोड़ है और वहां घरेलू इस्तेमाल का सिर्फ दो प्रतिशत पानी ही उपलब्ध है. सूडान का ज्यादातर पानी इथोपिया से आता है और उसकी उलब्धता सिर्फ जलवायु परिवर्तन से नहीं, बल्कि जल प्रबंधन को लेकर इथोपिया की सरकार के फैसलों से भी निर्धारित होती है.
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सूखता पानी
पौलेंड के काटोवित्से में जलवायु सम्मेलन के दौरान जल संकट एक बड़ी चिंता का विषय है. दुनिया की तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और खेती में पानी की बढ़ती मांग के कारण जल आपूर्ति के स्रोतों पर बहुत दबाव है. पर्यावरण कार्यकर्ता तुरंत जल संकट से निपटने के लिए उपायों पर जोर देते हैं.
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खुद लाहौर में पले बढ़े इमरान खान कहते हैं कि शहर में स्मॉग की समस्या को दूर करना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है. उन्होंने अपने कैबिनेट से कहा, "यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है."
नवंबर में लाहौर हाई कोर्ट ने पंजाब की प्रांतीय सरकार को स्मॉग कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का आदेश दिया. 2017 में बनाए गए इस आयोग को स्मॉग की वजह तलाशने और फिर उन्हें दूर करने के उपाय सुझाने का काम सौंपा गया था.
आयोग ने कहा है कि उन फैक्ट्रियों और ईंट के भट्टों को बंद किया जाए जो ईको फ्रेंडली ईंधन टेक्नोलॉजी नहीं इस्तेमाल कर रहे हैं. साथ ही वाहनों की संख्या घटाने, पराली जलाने और महीन प्रदूषण तत्वों से निपटने की भी सिफारिश की गई है. आयोग ने पेड़ लगाने और स्कूलों में जाकर जागरूकता बढ़ाने के लिए मुहिम चलाने को भी कहा है.
एके/एमजे (थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन)
शानदार नहीं बेहद गंदे हैं ये क्रूज शिप
विलासिता की तमाम सुविधाओं से लैस लग्जरी जहाज उद्योग को पर्यावरणवादी संगठन वर्षों से निशाना बनाते आ रहे हैं. इसके पीछे वजह वो प्रदूषण है जो इन जहाजों से वायुमंडल में पहुंच रहा है. .
तस्वीर: picture-alliance / John Bolt / S
सागर की यात्रा या धरती का सर्वनाश
जर्मनी की नेचर एंड बायोडाइवर्सिटी कंजर्वेशन यूनियन यानी एनएबीयू ने 2017 के लिए शिपों की रैकिंग जारी की है. इससे पता चलता है कि क्रूज शिप उद्योग में प्रदूषण के मामले में कोई बेहतरी नहीं आई है.
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जहरीला ईंधन
जिन 77 सागरयानों का सर्वे किया गया उनमें से 76 में जहरीले भारी ईंधन का इस्तेमाल होता है. एनएबीयू का कहना है कि इस ईंधन का इस्तेमाल से सिर्फ एक जहज जितना प्रदूषण फैला रहा है, उतने में 50 लाख कारें उस रास्ते से गुजर सकती हैं.
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भीड़ में अकेला
एआईडी अनोवा अकेला ऐसा जहाज है जो कम नुकसानदेह लिक्विफाइड नेचुरल गैस यानी एलएनजी से चलता है. यह बाजार में नया जहाज है जिसे मेयर शिपयार्ड ने बनाया है. समंदर में सैरसपाटे कराने वाली कंपनी कार्नीवाल ने अगली पीढ़ी के जिन सात जहाजों का ऑर्डर दिया है, उनमें यह पहला है. ये सभी एलएनजी से चलेंगे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H.-C. Dittrich
कम नुकसानदेह जहाज
टीयूआई क्रूज और हापाग लॉयड क्रूज की पोर्टफोलियो में कुछ नए जहाज शामिल हुए हैं, जो कैटेलिटिक रिडक्शन के जरिए कम से कम नाइट्रिक ऑक्साइ़ड रिडक्शन तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. जब ये बंदरगाहों पर होते हैं, तो वहां तटवर्ती इलेक्ट्रिक पावर का इस्तेमाल करते हैं.
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ताजा समुद्री हवा?
कई सागरयानों में डीजल पार्टिकुलेट फिल्टर या सूट पार्टिकल फिल्टर नहीं होते. इसके कारण सागरयानों के ठीक ऊपर मौजूद हवा में ताजगी और सफाई दोनों का नितांत अभाव होता है. कई बार तो डेक पर मौजूद हवा में किसी व्यस्त सड़क की तुलना में 20 गुना ज्यादा महीन कण मौजूद होते हैं.
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सांस लेने के लिए
एनएबीयू के सर्वे में एआईडी एनोवा की नई खोज के लिए तारीफ की गई है. उनकी सलाह है कि दूसरे जहाजों को भी इसे अपनाने की कोशिश करनी चाहिए. अगर क्रूज शिप एलपीजी में तब्दील हो जाएं तो तटवर्ती इलाके के लोगों को सांस लेने के लिए बेहतर हवा मिल सकती है.
तस्वीर: Colourbox
साफ धरती?
हालांकि ऐसा भी नहीं कि एलएनजी सारी मुश्किलों का हल है. हाल ही में ट्रांसपोर्ट और पर्यावरण संगठनों ने एक सर्वे कराया है. पर्यावरण की सुरक्षा की बात हो तो एलएनजी डीजल के मामले में बहुत ज्यादा अच्छा नहीं है. जाहिर है कि शिपिंग की दुनिया में भारी तकनीकी बदलाव की जरूरत है.
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यहां जहाज नहीं चलेंगे
एनएबीयू के प्रमुख लाइफ मिलर का विचार है कि गंदे जहाजों के लिए नो इंट्री का बोर्ड लगा दिया जाए क्योंकि यह उद्योग बड़े तकनीकी बदलाव करने की दिशा में नहीं जा रहा है. गंदे जहाजों पर रहने वालों की सेहत उन्हीं खतरों से जूझ रही जिनसे कि किसी सड़क किनारे रहने वाले लोग जूझते हैं.